देखे 'जिन्दगी' के विभिन्न 'रूप', शायरों-कवियों की 'नजरों' से!

life with poets
पाठकजनों!! "जिन्दगी" हमें "र्इश्वर" का दिया हुआ एक सुन्दर पुरस्कार है। हर इन्सान अपनी मानसिक स्थिति के अनुसार "जिन्दगी" को भिन्न-भिन्न रूपों में देखता है। मैंने अपने इस ब्लॉग में आपके ज्ञानार्थ  कवि-शायरों की 'कविताओं' व 'शेरों' का संकलन किया है, जो अपने-अपने अन्दाज में "जिन्दगी" की व्याख्या कर रहे हैं। आशा है "ब्लॉगिंग" के क्षेत्र में, मेरा ये नया प्रयोग आपको पसन्द आयेगा!
* एक वाइज (धर्मगुरू) से पूछा! जिन्दगी क्या है? तो जोश मलिहाबादी ने कहा-
क्या  शेख  की  खुश्क जिन्दगानी गुजरी
बेचारे   की  इक  सब  न  सुहानी गुजरी
दोजख  के   तख्युल  में   बुढ़ापा   बीता              (नर्क)
जन्नत की दुआओं में जिन्दगानी गुजरी।
* एक निराशावादी से पूछा! जिन्दगी क्या है? तो अहकर काशीपुरी ने कहा-
ऐश की छाँव हो या गम की धूप
जिन्दगी  को  कही पनाह  नहीं
एक   वीरान   राह  है   दुनिया
जिसमें कोर्इ   कयामगाह  नहीं।        (विश्रामग्रह)
* एक आशावादी से पूछा! जिन्दगी क्या है? तो एक शायर साहब बोले-
जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है
मुर्दा दिल  खाक जिया करते हैं।
* एक स्वप्न में खोये हुए से पूछा! जिन्दगी क्या है? तो चकबस्त साहब बोले-
जिन्दगी और जिन्दगी की यादगार
परदा और परदे पे कुछ परछार्इयाँ।
* एक आशिक से पूछा! जिन्दगी क्या है? तो हरि कृष्ण प्रेमी ने कहा-
किसी के प्यार की मदिरा जवानी जिन्दगी की है,
हमेशा  प्रेमियों की  ऋतु सुहानी जिन्दगी  की है,
प्रणय के पंथ  पर  प्रेमी  प्रलय-पर्यन्त चलता है
किसी के प्यार में मरना निशानी जिन्दगी की है।
* एक नाकाम आशिक से पूछा! जिन्दगी क्या है? तो एक शायर साहब बोले-
खुदा   से   मांगी  थी  चार   दिन     उम्रे-दराज,        (चार दिन लम्बी उम्र)
दो हिम्मते-सवाल में गुजरी, दो उम्मीदे-जवाब में।
* एक शहरी से पूछा! जिन्दगी क्या है? तो बशीर मेरठी  बोले-
है अजब शहर की जिन्दगी, न सफर रहा न कयाम है,
कहीं कारोबार सी दोपहर, कही बदमिजाज सी शाम है।
* एक फकीर से पूछा! जिन्दगी क्या है? तो बशीर मेरठी  बोले-
मैकदा रात गम का घर  निकला,
दिल हवेली  तले  खंडहर निकला
जिन्दगी  एक फकीर  की  चादर
जब ढके पांव हमने, सर निकला।
* एक रिन्द (शराबी) से पूछा? तो अनवर साहब ने कहा-
जिन्दगी एक नशे के सिवा कुछ  नहीं,
तुमको पीना ना आये तो मैं क्या करूं।
* और अदम साहब ने कहा-
मैं मयकदे की राह से होकर निकल गया,
वर्ना  सफर हयात का काफी  तवील  था।         (जिदगी) (लम्बा)
* एक तन्हा से पूछा? तो इकबाल सफीपुरी ने कहा-
आरजु भी हसरत भी, दर्द भी मसर्रत भी,        (खुशी)
सैंकड़ों  हैं  हंगामे  मगर जिन्दगी तन्हा।
* एक वतनपरस्त से पूछा? जिन्दगी क्या है? तो कान्ता शर्मा जी ने कहा-
सांस की हर सुमन है, वतन के लिए,
जिन्दगी ही हवन है, वतन के  लिए
कह गयी  फाँसियों  में फंसी  गर्दनें,
यह  हमारा नमन है वतन के लिए।
* एक प्यासे से पूूछा? तो कुंवर बेचैन जी ने कहा-
जन्म से अमर प्यास  है  जिन्दगी
प्यास की आखिरी सांस है जिन्दगी
मौत ने ही  जिसे बस निकाला यहां
उंगलियों में फंसी फाँस है जिन्दगी।
* जिन्दगी को कटु सत्य मानने वाले से पूछा? तो पदमसिंह शर्मा जी ने कहा-
जिन्दगी कटु सत्य है सपना नहीं है
खेल इसकी आग में, तपना  नहीं है
कौन देगा साथ  इस भूखी  धरा  पर
जबकि अपना श्वास भी अपना नहीं है।
* जिन्दगी को महबूबा मानने वाले फिराक गोरखपुरी ने कहा-
बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं
तुझे  ऐ! जिन्दगी  हम  दूर से  पहचान  लेते हैं
तबियत अपनी घबराती है, जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में  तेरी  यादों की, चादर तान  लेते  हैं।
* जिन्दगी की नश्वरता में विश्वास रखने वाले मीर अनीस ने कहा-
जिन्दगी भी अजब ,सरायफानी देखी
हर चीज यहां की ,आनी जानी  देखी
जो आ के ना जाये, वह बुढ़ापा  देखा
जो जा के न आये,  वो जवानी देखी।
* अब मैंने जिन्दगी के मायने मधुशाला से पूछे? तो बच्चन साहब ने कहा-
छोटे से जीवन में कितना  प्यार करूं, पीलूं हाला,
आने के ही साथ जगत में, कहलायेगा जाने वाला
स्वागत के ही साथ, विदा  की  होती देखी तैयारी
बन्द लगी, होने खुलते ही, मेरी जीवन मधुशाला।
* जिन्दगी भर 'गालिब' साहब को यही 'गम' रहा-
  उम्र  भर 'गालिब' यही  भूल  करता रहा,
  धूल चेहरे पे थी, आर्इना साफ करता रहा!
* जिन्दगी को कैद मानने वाले आगा जी ने कहा-
पहरा  बिठा  दिया है, ये  कैदे-हयात ने         
साया भी साथ-साथ है, जाऊं जहां कही।      (जीवन रूपी कैद)
* जिन्दगी को हादसा मानने वाले असगर गोडवी ने कहा-
चला जाता हूँ हँसता खेलता मौजे-हवादिस से,        (दुर्घटनाओं की लहर)
अगर आसानियां हो जिन्दगी दुश्वार हो जाये।
* जिन्दगी के बारे में तपिश साहब ने कहा है-
फिरती है पीछे-पीछे अजल, उफ री जिन्दगी         (मौत)
मिलता  नहीं  है  दर्द,   दवा की  तलाश है।
* अन्त में 'मैं' अपने जज्बात नीरज जी के 'मुक्तक' से व्यक्त करना चाहता हूँ-
पंच तत्व के सत, रज, तम से बनी जिन्दगी
अर्थ-काम  रत,  धर्म-मोक्ष से  डरी जिन्दगी
आवागमन   अव्यक्त   अनेक  रूप  है   तेरे,
कुछ तो अपना  अता-पता दे  अरी जिन्दगी!

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                                संकलन -संजय कुमार गर्ग  sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)

14 टिप्‍पणियां :

  1. आदरणीय हरीश जी, ब्लॉग पर कॉमेंट्स करने के लिए धन्यवाद!

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  2. आपने योगी सारस्वत जी से नहीं पूछा ? वो कुछ यूँ बयाँ करते
    जिंदगी जवानी है जिंदगी एक कहानी है ​

    रुक जाए तो बर्फ है बह जाए तो पानी है
    गज़ब का संकलन दिया है संजय जी आपने

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    1. जिंदगी जवानी है जिंदगी एक कहानी है ​
      ​रुक जाए तो बर्फ है बह जाए तो पानी है.. वाह जी मज़ा आ गया! कॉमेंट्स के लिए आभार! आदरणीय योगी जी!

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  3. Bahut hi khubsurat peshkash jindagi ki ...

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    1. आदरणिया परी जी, सादर नमन! ब्लॉग पर आने व कॉमेंट्स करने के लिए सादर धन्यवाद!

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  4. बहुत ही जबरदस्त संकलन किया है आपने । बहुत साधुवाद ।
    एक शेर ये भी है
    जिंदगी की दूसरी करवट थी मौत
    और जिंदगी करवट बदल कर के रह गयी

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    1. बहुत सुन्दर शेर, कमेंट्स के लिए सादर आभार! आदरणीय शिवराज जी!

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  5. वाह बेहद खुबसूरत ढंग से जिंदगी के इन्द्रधनुषी रंगों से वाकिफ़ करवाया आपने~~!!!

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    1. आदरणीया निभा जी! ब्लॉग को पढ़ने व् कमेंट्स करने के लिए धन्यवाद!

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  6. किस खूबसूरती से जबरदस्त संकलन किया है आपने मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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    1. संजय जी! ब्लॉग को पढ़ने व् कमेंट्स करने के लिए सादर आभार!

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  7. Aapka blog padhkar dil ko bahut khusi huyi.

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    उत्तर
    1. युवराज जी, ब्लॉग को पढ़ने व् कमेंट्स करने के लिए धन्यवाद!

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