वास्तु के अनुसार कैसा हो अध्ययन कक्ष?

वास्तु के अनुसार अध्ययन कक्ष
अध्ययन कक्ष से मेरा तात्पर्य उस कक्ष से है जहां हम ज्ञानार्जन करने के लिये, छात्र परीक्षा के लिये तथा नवयुवक अच्छी नौकरी पाने के लिये प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। उपरोक्त सभी के लिये एकाग्रता, लग्न व प्र्याप्त परिश्रम की आवश्यकता होती है, इसके लिये यदि हम सही दिशा का चयन करें, तो हमारी दशा में भी पर्याप्त परिवर्तन संभव है। क्योंकि सही दिशा से ही सही दशा प्राप्त होती है, प्रस्तुत हैं अध्ययन कक्ष के लिये कुछ वास्तु संबंधी जानकारी-

1-अध्ययन कक्ष के लिये, पूर्व (E), उत्तर (N), और ईशान (NE) दिशा श्रेष्ठ है, इसमें ईशान दिशा सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि ये दिशायें एकाग्रता बढ़ाने वाली दिशायें हैं। यदि हम इन दिशाओं की ओर मुंह करके अध्ययन करते हैं तो हमारी एकाग्रता व स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। याद रहे जिस दिशा विशेष की ओर मुंह करके पढ़ा जाता है, उस दिशा विशेष के गुण-अवगुण हमारा मस्तिष्क ग्रहण करने लगता है। वास्तु-ज्योतिष का अध्ययन करने से पहले, अनुचित दिशा की ओर मुंह करके अध्ययन करके मुझे स्वयं बड़ी हानि उठानी पडी थी, यहां तक की भूत-प्रेतों तक से मेरा सामना हो गया था, इसका विस्तृत वर्णन मैंने अपने एक आलेख में भी किया था।
लेखक-संजय कुमार गर्ग  sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)

2-यदि उपरोक्त दिशाओं में अध्ययन कक्षा न बन पाये तो भी किसी भी दिशा के अध्ययन कक्ष में उपरोक्त दिशा में बैठकर व उपरोक्त दिशाओं की ओर मुंह करके अध्ययन करना चाहिये।

3-अध्ययन कक्ष में टायलेट (Toilet) नहीं होना चाहिये, चाहे तो स्नानघर (Bath Room) बना सकते हैं।
बाबा बख्तावर नाथ के मन्दिर में बाबा सहित सभी विग्रहों के 
दिव्य दर्शन कीजिये और धर्म लाभ उठाइये!


  4-अध्ययन कक्ष में सरस्वती जी, गणेश जी आदि देवी-देवताओं की तस्वीरें लगानी चाहिये, हम महापुरुषों की तस्वीरें भी लगा सकते हैं, जिनसे हमें प्रेरणा मिलती है, विकृत या डरावनी, अभिनेता-अभिनेत्रियों की अश्लील तस्वीरें नहीं लगानी चाहिये। याद रहे चित्र से चरित्र बनता है, हम जैसी तस्वीरे देखते हैं उनसे संबंधित गुण-अवगुण धीरे-धीरे हमारे मस्तिष्क में बीजरूप में रोपित होने लगते हैं, जिनके आधार पर ही हमारे चरित्र का निर्माण होता है।
लेखक-संजय कुमार गर्ग  sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
5-अध्ययन कक्ष में पुस्तकों की अलमारी रखने की यही दिशा नैरूत (SW), पश्चिम (W) व दक्षिण (S) है। ईशान (NE) में पुस्तकों की अलमारी न रखें।

6-अध्ययन कक्ष में दरवाजा उत्तर (N) या पूर्व (E) या फिर ईशान (NE) दिशा में रखना चाहिये।

7-अध्ययन कक्ष की दीवारों का रंग हल्का नीला (Blue), क्रीम (Cream), सफेद (White) या हल्का हरा (Light Green) रखा जा सकता है।

[पाठकगण! यदि उपरोक्त विषय पर कुछ पूछना चाहें तो कमेंटस कर सकते हैं, या मुझे मेल कर सकते हैं!]        
लेखक-संजय कुमार गर्ग  sanjay.garg2008@mail.com
 (चित्र गूगल-इमेज से साभार!)

8 टिप्‍पणियां :

  1. गहरी जानकारी ... वास्तु का दखल हर विषय में है ...

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    1. आदरणीय दिगम्बर जी, पोस्ट को पढ़ने व् कमेंट्स करने के लिए धन्यवाद!

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    2. बेनामी5/30/2016

      why we set book shelf in west ,South and WestSouth direction.pl give me reason Thanks

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    3. अनाम जी, नमस्कार! पुस्तकों की अलमारी रखने की सही दिशा नैरूत (SW), पश्चिम (W) व दक्षिण (S) ही होती है, क्योंकि वास्तु के काल पुरूष इस ओर हाथ, पैर होते हैं, इसलिए ये दिशाएं वजन सहन करने की स्थिति में होती हैं, ईशान में काल पुरूष का मुख होता है, इसलिए इस दिशा को हल्का या खाली रखा जाता है, कमेंट्स करते समय अपना नाम अवश्य लिखें, धन्यवाद!


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  2. अशोक सोनकर भावसार (पंंडीत"जी")
    सर"जी"
    आपकी पोष्ट पढी बहोतही मौलीक विचार पढनेमे मिले आपके आभारी है।

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    1. आदरणीय पंडित जी, नमस्कार! आपको आलेख अच्छा लगा उसके लिए धन्यवाद!

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    1. आदरणीय राजू जी! हरिओम ! कमेंट्स के लिए धन्यवाद!

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