वास्तु के अनुसार मुख्य द्वार!


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Vastu for Main Gate
जिस प्रकार किसी व्यक्ति का मुख और भावभंगिमा देखकर उसके व्यक्तित्व के बारे में काफी सटीक अनुमान लगाया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार किसी भवन के मुख्य द्वार व उसकी बनावट को देखकर उस भवन के अन्दर की स्थिति के बारे में भी काफी सही अनुमान लगाया जा सकता है। इस प्रकार किसी व्यक्ति का मुख, व भवन का मुख्य द्वार इन दोनों को प्रथमद्रष्टा मापने का पैमाना होता है। इसलिये हमें किसी भवन को बनाते समय उसके मुख्य द्वार को वास्तु अनुरूप (According Vastu) बनाने में विशेष सावधानी रखनी चाहिये। प्रस्तुत हैं किसी भवन के मुख्य द्वार के संबंध में कुछ वास्तु जानकारियां-

-सम्पूर्ण भूखण्ड  चित्रानुसार  दिशानुसार 9 बराबर भागों में बांट लेना चाहिये, उसके बाद निम्न प्रकार मुख्य द्वार बनाने चाहिये- 

* पूर्व दिशा में मुख्य द्वार ईशान से दो हिस्से छोड़कर बनाया जाना चाहिये।

* पश्चिम दिशा में मुख्य द्वार नैरूत से तीन भाग छोड़कर बनाना उचित रहता है।

* दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार आग्नेय कोण से तीन भाग छोड़कर बनाया जाना चाहिये।

* उत्तर दिशा में मुख्य द्वार की उत्तम स्थिति वायव्य कोण से तीन हिस्से छोड़कर बनाने की होती है।

* दरवाजे खोलते समय आवाज उत्पन्न न करें वे भय उत्पन्न करने वाले हो जाते हैं।

* दरवाजे बाहर की खोलने वाला नहीं होना चाहिये, इससे परिवार में रोग बढ़ने की संभावना रहती है।

* दरवाजे में देहली का निर्माण अवश्य किया जाना चाहिये।

* यदि मुख्य द्वार का ज्यादा बढ़ा हो तो राज्य द्वारा नुकसान (सरकार द्वारा दंडित) होने का भय रहता है।

* इसके विपरित यदि मुख्य द्वार ज्यादा छोटा रखा गया है चोरी होने का भय उत्पन्न हो सकता है।

* मुख्य द्वार के सामने किसी दूसरे घर का दरवाजा नहीं होना चाहिये।

* भीतर की ओर झुका हुआ दरवाजा गृह स्वामी के लिये घातक हो सकता है।

* बाहर की ओर झुका दरवाजा गृह स्वामी का घर से पलायन करा सकता है।

* भवन के मुख्य द्वार की समय-समय पर कलश, श्रीफल, पुष्प आदि से सजावट करते रहना चाहिये।

* पूरे घर के दरवाजे सम संख्या में होने चाहिये किन्तु दशक में नहीं होने चाहिये अर्थात 2, 4, 8, 12 तो हों किन्तु 10 या 20 आदि न हों। ऐसा शास्त्रों में वर्णित हैं परन्तु इस तर्क का आधार नहीं दिखायी देता, पाठकजन!! अपनी बुद्धि विवेक से निर्णय ले सकते हैं। अन्त में मैं कहना चाहूंगा कि भवन का प्रत्येक द्वार 90 डिग्री कोण पर केन्द्रीत होना चाहिये जो न तो अन्दर की ओर झुका हो न हीं बाहर की ओर। द्वार के चारों कोण 90 डिग्री कोण में ही केन्द्रीत होने चाहिये। यही द्वार श्रेष्ठफल को प्रदान करने वाले होते हैं।
[पाठकगण! यदि उपरोक्त विषय पर कुछ पूछना चाहें तो कमेंटस कर सकते हैं, या मुझे मेल कर सकते हैं!]        
-लेखक-संजय कुमार गर्ग  sanjay.garg2008@gmail.com
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4 टिप्‍पणियां :

  1. bahut achhi jankari....agar neritya badha ho aur neecha ho ....sath hi neritya me hi chardeevari ke bahar nali ho to kya dosh hota hai upay kya hai....

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    1. आदरणीया उपासना जी! नैऋत बढने से गृहस्वामी बीमार हो सकता हैं दुश्मनों व् अदालतों से कष्ट की सम्भावना होती हैं, यदि जन्मकुंडली में भी राहु अकेला हो तो गृहस्वामी को आर्थिक तंगी रहेगी! घर में राहु यंत्र स्थापित करके विधिवत पूजा करे, मुख्य द्वार पर मिश्रित रंग के गणपति लगाये!

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  2. Daksin mukhi me agney se 3 or 4 pad me mukhya dwar Rakh sakte he kya

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