डायरी लेखन |
मैंने अपने शहर की सबसे पुरानी लायब्रेरी में उपलब्ध सभी आत्मकथाओं को पढ़ा । जिसमें गांधी जी, वीर सावरकर, नेहरू जी, शहीद रामप्रसाद ''बिस्मिल'', हिटलर, चैकोस्लोवाकिया के शहीद फूचिक आदि प्रमुख थे। यदि मुझे इनमें से एक सर्वश्रेष्ठ आत्मकथा चुनने का अवसर दिया जाये तो मैं निश्चित ही इसमें से शहीद राम प्रसाद ''बिस्मिल'' को चुनुंगा, क्योकि ये वो महान ''आत्मकथा'' है, जिसे इस ''शहीद शिरोमणी'' ने फांसी लगने के दो दिन पहले पूरा किया था। पाठकगण! सोचें, कैसी विपरित परिस्थितियों में लिखी गयी, "आत्मकथा" होगी और उसे लिखने वाले का ''व्यक्तित्व'' कैसा होगा! शहीद राम प्रसाद ''बिस्मिल'' पर मैं एक अलग ब्लॉग इनकी पुण्य तिथि दिसम्बर में लिखुंगा।
-लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
डायरी लेखन |
-लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
-आत्म कथा (डायरी) लेखन एक सच्चे मित्र की तरह है, जो गलत काम करने पर ''आत्मग्लानि'' रूपी दण्ड तथा अच्छा काम करने पर ''आत्म सम्मान'' रूपी पुरस्कार देती है, साथ ही शुभ संकल्पों के पूरा न कर पाने पर ''विकल्प'' भी उपलब्ध कराती है, यदि हम अपना अवलोकन सच्चे मन से करते हैं।
-कहा जाता है कि दुख: बांटने से आधा और खुशी बांटने से दोगुनी हो जाती है। यदि हमारा कोई मित्र नहीं है, या हम मित्र से उस सुख-दुख को शेयर नहीं करना चाहते, तो डायरी से बढ़कर हमारा कोई मित्र नहीं हो सकता। जिससे हम अपने दिल की बात 'बेहिचक' कह सकते हैं।
-कहा जाता है कि दुख: बांटने से आधा और खुशी बांटने से दोगुनी हो जाती है। यदि हमारा कोई मित्र नहीं है, या हम मित्र से उस सुख-दुख को शेयर नहीं करना चाहते, तो डायरी से बढ़कर हमारा कोई मित्र नहीं हो सकता। जिससे हम अपने दिल की बात 'बेहिचक' कह सकते हैं।
-डायरी जो हमारे मन का "केन्द्र बिन्दु" है, जिसमें हम अपनी 'खुशी' और 'गम' का लेखन करते हैं और 'जिन्दगी' एक 'बगिया' की तरह है, जिसमें सारे मौसम आते हैं। डायरी लिखने-पढ़ने से हम जिस मौसम का चाहें आनन्द ले सकते हैं। किसी शायर ने कहा भी है-
ठन्डी आहें गर्म आँसू, मन में क्या-क्या मौसम हैं,
इस बगिया के भेद न खोलो, सैर करो खामोश रहो।
-हम अपने मन की व्यथा, परेशानी दूसरे से कहने में हिचकते हैं ''कहीं वह रो के सुने और हँस के न उड़ाये'', इसलिए उस व्यथा को कम करने के लिए 'डायरी लेखन' से बढ़कर कोई सर्वोत्तम उपाय नहीं है। कवि शिरोमणी रहीम ने कहा भी है-
रहिमन निज मन की व्यथा मन ही राखो गोह।
सुनि अठलैहैं लोग सब बाटि न लैहें कोह।।
ठन्डी आहें गर्म आँसू, मन में क्या-क्या मौसम हैं,
इस बगिया के भेद न खोलो, सैर करो खामोश रहो।
-हम अपने मन की व्यथा, परेशानी दूसरे से कहने में हिचकते हैं ''कहीं वह रो के सुने और हँस के न उड़ाये'', इसलिए उस व्यथा को कम करने के लिए 'डायरी लेखन' से बढ़कर कोई सर्वोत्तम उपाय नहीं है। कवि शिरोमणी रहीम ने कहा भी है-
रहिमन निज मन की व्यथा मन ही राखो गोह।
सुनि अठलैहैं लोग सब बाटि न लैहें कोह।।
-डायरी में हम जब अपने भविष्य के टारगेटस (लक्ष्यों) को लिखते हैं और
लक्ष्यों को पाने के लिए संकल्पबद्ध हो जाते है, तो बार-बार उसे
पढ़ने-लिखने से हमारे संकल्पों को मजबूती मिलती है और हम लक्ष्यों के निकट
पहुंचते जाते हैं।
-डायरी लेखन उस भाषा में किया जाये, जिसे घर के अन्य सदस्य न पढ़ सकें। जेसे, मैं अपनी डायरी 'उर्दू' में लिखता हूँ। जो मेने अपने 'पूज्य नाना जी' से सीखी थी. यदि हमें ऐसी भाषा नहीं आती तो हम अपनी डायरी को तालें में रखें, ताकि उसमें लिखी अपनी किसी कमजोरी या व्यक्तिगत बातों की भनक दूसरों को न पड़े़ और अपनी किसी कमजोरी के कारण दूसरों के आगे शर्मिन्दा न होना पड़े।
-लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
-प्रतिदिन के कार्यों, घटनाओं का वर्णन डायरी में करने से हमारी ''याददाश्त'' भी मजबूत होती है। यदि कभी किसी ''घटना विशेष'' के बारे में जानना हो या अचानक उसकी आवश्यकता पड़ जाये, तो डायरी के पूर्व पृष्ठों से हमें उसकी जानकारी मिल जाती है।
इस प्रकार मेरी राय में डायरी लेखन "व्यक्तित्व निर्माण" का सर्वोत्तम साधन है। अन्त में एक 'शेर' के साथ अपना ब्लॉग समाप्त करता हूं-
किताबें *माजी के सफें उलट के देख,
ना जाने कौन सा सफा* मुडा निकले
जो देखने में सबसे करीब लगता था
उसी के बारे में सोचा, तो फासले निकले।
*माजी-बीता हुआ समय, *सफे-पन्ने
-लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
-डायरी लेखन उस भाषा में किया जाये, जिसे घर के अन्य सदस्य न पढ़ सकें। जेसे, मैं अपनी डायरी 'उर्दू' में लिखता हूँ। जो मेने अपने 'पूज्य नाना जी' से सीखी थी. यदि हमें ऐसी भाषा नहीं आती तो हम अपनी डायरी को तालें में रखें, ताकि उसमें लिखी अपनी किसी कमजोरी या व्यक्तिगत बातों की भनक दूसरों को न पड़े़ और अपनी किसी कमजोरी के कारण दूसरों के आगे शर्मिन्दा न होना पड़े।
-लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
-प्रतिदिन के कार्यों, घटनाओं का वर्णन डायरी में करने से हमारी ''याददाश्त'' भी मजबूत होती है। यदि कभी किसी ''घटना विशेष'' के बारे में जानना हो या अचानक उसकी आवश्यकता पड़ जाये, तो डायरी के पूर्व पृष्ठों से हमें उसकी जानकारी मिल जाती है।
इस प्रकार मेरी राय में डायरी लेखन "व्यक्तित्व निर्माण" का सर्वोत्तम साधन है। अन्त में एक 'शेर' के साथ अपना ब्लॉग समाप्त करता हूं-
किताबें *माजी के सफें उलट के देख,
ना जाने कौन सा सफा* मुडा निकले
जो देखने में सबसे करीब लगता था
उसी के बारे में सोचा, तो फासले निकले।
*माजी-बीता हुआ समय, *सफे-पन्ने
-लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)
डायरी में हम जब अपने भविष्य के टारगेटस (लक्ष्यों) को लिखते हैं और लक्ष्यों को पाने के लिए संकल्पबद्ध हो जाते है, तो बार-बार उसे पढ़ने-लिखने से हमारे संकल्पों को मजबूती मिलती है और हम लक्ष्यों के निकट पहुंचते जाते हैं। बिलकुल सही कहा आपने श्री संजय जी ! डायरी अपने लिए होती है सार्वजनिक नहीं और उसमें जो लिखा है वो हमें हमारे उद्देश्य और लक्ष्य बताने के लिए है या अपनी घटनाएं ! बेहतरीन पोस्ट
जवाब देंहटाएंआदरणीय योगी जी, सादर नमन! पोस्ट पर कॉमेंट्स करने के लिए सादर आभार व धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंbahut badiya ..vakai diary lekhan ek achchhi aadat hai ..
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही, हमें डायरी अवश्य लिखनी चाहिए,कमेंट्स के लिए धन्यवाद! कविता जी!
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