अफवाहें कैसी-कैसी |
अफवाहों
से मनुष्य का पुराना रिश्ता रहा है, क्योंकि मनुष्य को कहानी-किस्से सुनने
व घढ़ने में आनन्द आता है। संसार का इतिहास एक से एक बढ़कर अफवाहों से भरा
पड़ा है, कहा जाता है कि अफवाहों के सिर-पैर नहीं होते परन्तु इनकी गति
तीव्रतम होती है। मनोविज्ञान की भाषा में अफवाहों को "मास हिस्टीरिया" और "मास सोशियोजेनिक इलनेस"
भी कहा जाता है। इसमें व्यक्तियों का ध्यान एक काल्पनिक घटनाक्रम पर
केन्द्रित हो जाता है, इसके बाद भ्रम की एक ऐसी स्थिती पैदा हो जाती है कि
पूरा समाज उस कल्पित कल्पना को यथार्थ मान बैठता है। इन अफवाहों का शिकार
कमजोर व गरीब तबका सबसे जल्दी होता है, क्योंकि इस तबके में रोजी-रोटी के
प्रति असुरक्षा की भावना सबसे अधिक होती है।
* सन् 2001 के इसी माह में मंकी मैन
की अफवाह पूर्वी दिल्ली, गाजियाबाद, नोयडा और उसके आसपास के क्षेत्रों में
फैली थी। इस मंकी मैन की दहशत से करीब 6 व्यक्तियों को अपनी जान से हाथ
धोना पड़ा था। किसी ने बताया, यह बन्दर लंबी-लंबी छलांगे लगा सकता है, इसके
तीखे नाखून है, इसके शरीर में बिजली दौड़ती है, किसी को ये बंगाल का जादू
लगा तो किसी को पाकिस्तानी साजिश। जितने मुँह उतनी बातें। यहां तक की
दिल्ली पुलिस भी इस से भ्रमित हो गयी, उसने इस बंदर को पकड़ने वाले को पचास
हजार रूपये के इनाम की घोषणा कर डाली। मीडिया ने इन खबरों का खण्डन करने
की बजाय इन्हें हवा देने का ही काम किया। बहुत मुश्किल से इस अफवाह को
विराम मिल पाया।
* उसी समय में असम में उग्रवाद प्रभावित क्षैत्र में भेडि़यानुमा एक आकृति की अफवाह उड़ी थी। ग्रामीणों का कहना था यह आकृति बन्द दरवाजे में घुस जाती है और लोगों पर हमला करके उन्हे घायल कर देती हैै। उग्रवादियों से ज्यादा ग्रामीण इस काल्पनिेक भेडि़ये से डरने लगे। उग्रवाद की घटनाओं में भी कमी आयी, शायद उग्रवादी रूपी "इन्सानी भेडि़ये" भी इस "काल्पनिक भेडि़ये" से डरने लगे थे।
* 1996 में बेग्लूर शहर की मध्यवर्गीय बस्तियों व झुग्गियों में एक बुढि़या के भूत की अफवाह फैली थी। इस अफवाह ने भी महीनों तक लोगों का जीना मुश्किल कर दिया था, लोग दरवाजे पर आहट होते ही बुढि़या के भय से पीले हो जाते थे।
* मुंम्बई और दिल्ली में नब्बे के ही दशक में एक अफवाह उड़ी थी कि एड्स पीडितों का एक समूह भीड़ में घुस कर लोगों को "एचआईवी" संक्रमित सुई चुभो देता है। कुछ सिरफिरों द्वारा, लोगो को डराने के लिए ’’वेलकम इन एड्स क्लब’’ के स्टीकर उनके वस्त्रों पर चिपका दिये जाते थे। व्यक्ति सिनेमा हाल, बसों व भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाने से कतराने लगे थे।
* सन् 1995 में गणेश मूर्तियों के द्वारा दूध पीने की अफवाह कुछ ही घंटों में न केवल पूरे देश में बल्कि पूरे एशिया महाद्धीप में फैल गयी। इस के फैलने की गति से तो यही लगता था कि ये अफवाह नियोजित तरीके से उड़ाई गयी थी। कुछ व्यक्तियों का मानना था कि इस घटना के पीछे एक विवादास्पद तांत्रिक का हाथ था। परन्तु अन्य अफवाहों की तरह ही इस घटना के फैलने का स्रोत भी पता नहीं लग सका।
* बड़े नेताओं की मौत की अफवाहें भी फैलती रहती हैं। अस्सी के दशक में लोकमान्य जयप्रकाश नारायण के निधन की अफवाह ने संसद को भी अपने लपेटे में ले लिया था। इस अफवाह का आलम यह था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देेसाई ने संसद को यह दुखद सूचना देकर उन्हे श्रद्धांजलि भी अर्पित कर डाली थी। बाद में खबर का खंडन आने पर विपक्षी दलों ने सत्ता पक्ष की खूब खिंचाई की थी।
* पाकिस्तान से युद्ध के समय के साल भी अफवाहों से भरे रहे थे। पानी की टंकी में जहर मिलाने व ट्रांसमीटर पकड़े जाने की अफवाहें विशेष रूप से रही।
* आपातकाल के समय में भी ये अफवाह तेजी से फैली कि स्कूल जाने वाले बच्चों की जबरदस्ती नसबन्दी की जा रही है। जिससे पूरे देश में जन आक्रोश फैल गया, जिसके कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री को अपनी सत्ता तक गवानी पड़ी थी।
इस प्रकार इन अफवाहों की लम्बी लिस्ट है, कुछ अफवाहें ऐसी होती हैं जो चार-पांच साल में लौटकर बार-बार आती रहती है। भूत, डायन, स्टोनकिलर, बच्चाचोर आदि की अफवाहों ने हर शहर को कभी न कभी पीडि़त अवश्य किया है। इसके कारण भिखारी, साधु और इधर-उधर भटकने वाले विक्षिप्त व्यक्ति उन्मादी भीड़ का शिकार होते रहते हैं। वास्तव में हम सब इन अफवाहों के बीच पले और बड़े हुए हैं, हमें इनसे सबक लेना चाहिए और "चक्षुर्वे सत्यम" वाली उक्ति का पालन करना चाहिए।
* उसी समय में असम में उग्रवाद प्रभावित क्षैत्र में भेडि़यानुमा एक आकृति की अफवाह उड़ी थी। ग्रामीणों का कहना था यह आकृति बन्द दरवाजे में घुस जाती है और लोगों पर हमला करके उन्हे घायल कर देती हैै। उग्रवादियों से ज्यादा ग्रामीण इस काल्पनिेक भेडि़ये से डरने लगे। उग्रवाद की घटनाओं में भी कमी आयी, शायद उग्रवादी रूपी "इन्सानी भेडि़ये" भी इस "काल्पनिक भेडि़ये" से डरने लगे थे।
* 1996 में बेग्लूर शहर की मध्यवर्गीय बस्तियों व झुग्गियों में एक बुढि़या के भूत की अफवाह फैली थी। इस अफवाह ने भी महीनों तक लोगों का जीना मुश्किल कर दिया था, लोग दरवाजे पर आहट होते ही बुढि़या के भय से पीले हो जाते थे।
* मुंम्बई और दिल्ली में नब्बे के ही दशक में एक अफवाह उड़ी थी कि एड्स पीडितों का एक समूह भीड़ में घुस कर लोगों को "एचआईवी" संक्रमित सुई चुभो देता है। कुछ सिरफिरों द्वारा, लोगो को डराने के लिए ’’वेलकम इन एड्स क्लब’’ के स्टीकर उनके वस्त्रों पर चिपका दिये जाते थे। व्यक्ति सिनेमा हाल, बसों व भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाने से कतराने लगे थे।
* सन् 1995 में गणेश मूर्तियों के द्वारा दूध पीने की अफवाह कुछ ही घंटों में न केवल पूरे देश में बल्कि पूरे एशिया महाद्धीप में फैल गयी। इस के फैलने की गति से तो यही लगता था कि ये अफवाह नियोजित तरीके से उड़ाई गयी थी। कुछ व्यक्तियों का मानना था कि इस घटना के पीछे एक विवादास्पद तांत्रिक का हाथ था। परन्तु अन्य अफवाहों की तरह ही इस घटना के फैलने का स्रोत भी पता नहीं लग सका।
* बड़े नेताओं की मौत की अफवाहें भी फैलती रहती हैं। अस्सी के दशक में लोकमान्य जयप्रकाश नारायण के निधन की अफवाह ने संसद को भी अपने लपेटे में ले लिया था। इस अफवाह का आलम यह था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देेसाई ने संसद को यह दुखद सूचना देकर उन्हे श्रद्धांजलि भी अर्पित कर डाली थी। बाद में खबर का खंडन आने पर विपक्षी दलों ने सत्ता पक्ष की खूब खिंचाई की थी।
* पाकिस्तान से युद्ध के समय के साल भी अफवाहों से भरे रहे थे। पानी की टंकी में जहर मिलाने व ट्रांसमीटर पकड़े जाने की अफवाहें विशेष रूप से रही।
* आपातकाल के समय में भी ये अफवाह तेजी से फैली कि स्कूल जाने वाले बच्चों की जबरदस्ती नसबन्दी की जा रही है। जिससे पूरे देश में जन आक्रोश फैल गया, जिसके कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री को अपनी सत्ता तक गवानी पड़ी थी।
इस प्रकार इन अफवाहों की लम्बी लिस्ट है, कुछ अफवाहें ऐसी होती हैं जो चार-पांच साल में लौटकर बार-बार आती रहती है। भूत, डायन, स्टोनकिलर, बच्चाचोर आदि की अफवाहों ने हर शहर को कभी न कभी पीडि़त अवश्य किया है। इसके कारण भिखारी, साधु और इधर-उधर भटकने वाले विक्षिप्त व्यक्ति उन्मादी भीड़ का शिकार होते रहते हैं। वास्तव में हम सब इन अफवाहों के बीच पले और बड़े हुए हैं, हमें इनसे सबक लेना चाहिए और "चक्षुर्वे सत्यम" वाली उक्ति का पालन करना चाहिए।
-लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)
Afwaahein saty se kayi kadam age chalti hai... Bahut sateek lekh.....
जवाब देंहटाएंकॉमेंट्स करने के लिए सादर आभार! आदरणिया परी जी!
हटाएंjagrukta ka abhav hi afwahon ke failne ka mool karan hai ....sundar alekh
जवाब देंहटाएंआदरणीया उपासना जी! मैं आप की बात से सहमत हूँ! कमेंट्स के लिए धन्यवाद!
हटाएंकुछ अफवाहें देखी और पढ़ी हैं लेकिन ज्यादातर बिलकुल नई हैं मेरे लिए ! दिल्ली , गाजियाबाद के मंकी मेन पर तो एक फिल्म भी आई थी अभिषेक बच्चन की दिल्ली -6 ! बहुत ही बढ़िया और रोचक पोस्ट लिखी है आपने संजय जी !
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