Dead man |
राष्ट्रीय राजमार्ग 24 (पुराना) पर टू-व्हीलर सवार दुर्घटना में मारा गया, किसी बड़े वाहन ने उसे कुचल दिया था। सर्दियों के दिन थे शाम को दुर्घटना हुई थी। उसका क्षत-विक्षत शव को एक चादर से ढक कर सड़क के किनारे एक खेत में रख दिया गया। शव का पंचनामा भरा जाना शेष था, इसलिए शव को पोस्टमार्टम के लिए न भेजा जा सका। सिपाई खाना खाने के लिए चौकी में चले गये, जो दुर्घटना स्थल से थोड़ी ही दूरी पर थी।
खाना खाने के बाद तीनों सिपाई रात में वापस लौटे, अंधेरा हो गया था, केवल
सड़क पर चलने वाले वाहनों का प्रकाश था। वे अंधेरे में ही शव के नजदीक एक
पुलिया पर बैठ गये। एक ने बीड़ी निकाली और जलाने लगा।
दूसरा बोला-एक बीड़ी मेरी भी लगा लेना!
तभी आवाज आयी- भाई! एक बीड़ी म्हारी भी लगाय दो!
तीनों ने एक दूसरे के मुंह को देखा, मानों एक दूसरे से पूछ रहे हों कि कौंन बोला? क्योकि तीसरा सिपाई बीड़ी नहीं पीता था।
तभी उन्होने देखा कि मुर्दे ने अपना हाथ ऊपर कर रखा है, और वह फिर बोला- भाई! एक बीड़ी म्हारी भी लगा दो!
दूसरा बोला-एक बीड़ी मेरी भी लगा लेना!
तभी आवाज आयी- भाई! एक बीड़ी म्हारी भी लगाय दो!
तीनों ने एक दूसरे के मुंह को देखा, मानों एक दूसरे से पूछ रहे हों कि कौंन बोला? क्योकि तीसरा सिपाई बीड़ी नहीं पीता था।
तभी उन्होने देखा कि मुर्दे ने अपना हाथ ऊपर कर रखा है, और वह फिर बोला- भाई! एक बीड़ी म्हारी भी लगा दो!
पाठकगण! अन्दाजा लगाये, यदि ऐसी परिस्थिति आप के साथ होती जो आप क्या करते?
अधिकतर का जवाब होगा- हम वहां से भाग लेते!
वहीं हुआ तीनों सिपाई डर व खोफ से, वहां से बेतहाशा भागे। सड़क पर चलते
वाहनों का भी ध्यान नहीं दिया। एक सिपाई सामने आते वाहन से टकरा गया, बचे
दो सिपाईयों ने पीछे मुडकर भी नहीं देखा, कि हमारे साथी का क्या हुआ सीधे चौकी में जाकर ही होश लिया।
उन दो में से एक सिपाई का हार्टफेल हो गया, वो चौकी में ही गिर गया। तीसरे
बचे सिपाई ने सारी घटना, चौकी इंचार्ज को बतायी।
चौकी इंचार्ज एक नवयुवक था, उसने फौरन अपनी गन लगाई और एक सिपाई को लेकर घटना स्थल की तरफ दौड़ा।
रास्ते में पहले सिपाई का किसी वाहन से कुचला शव मिला, उसे उन्होने खींचकर सड़क के किनारे किया। सिपाई डर के कारण पीछे ही रहा, धीरे से बोला-सर! इन भूत-बलाओं से दूर रहो तो अच्छा है, रात में वहां जाना ठीक नहीं है, हम सुबह आकर देखते हैं?
चौकी इंचार्ज ने उसे जोर से डांटा-चुप रहो, एक सिपाई हार्टफेल से मर गया, एक दुर्घटना से मर गया, मेरे दो सिपाई मर गये हैं! मैं उस भूत को देखना चाहता हूँ! तुम्हे डर लग रहा है, तो तुम वापस जा सकते हो। सिपाई कुछ नहीं बोला, डरता हुआ धीरे-धीरे उसके पीछे अपनी रायफल सम्भाले चलता रहा।
दुर्घटना स्थल पर पहुंच कर, उन्होने खेत की तरफ टार्च मारी, तो वहां का दृश्य देखकर, एक बारगी चौकी इंचार्ज भी घबरा गया, देखा मुर्दा लेटा हुआ बीड़ी पी रहा है।
सिपाई तो इस दृश्य को देखकर उल्टा भाग गया।
चौकी इंचार्ज ने अपने डर व घबराहट पर काबू करके अपनी गन उस पर तानते हुए, आवाज लगायी-तुम कौन हो खड़े हो जाओ, नहीं तो गोली मार दूंगा?
मुर्दे से कोई आवाज नहीं आयी!
चौकी इंचार्ज ने अपनी घबराहट को काबू करने के लिए फौरन दो हवाई फायर कर दिये, फायर की आवाज सुनते ही मुरदा उठ कर भाग लिया, इंचार्ज फौरन समझ गया ये मुरदा नहीं हो सकता!
वो उसके पीछे भागा और उसे पकड़ लिया। फायर की आवाज सुनकर, भागा हुआ सिपाई भी वापस आ गया।
टार्च जलाकर उस का चेहरा देखा, पता चला ये तो हमारे कस्बे का ही एक ''पागल'' है जो दिन-भर इधर-उधर घूमता रहता है। दोनों ने तबियत से उसकी "खातिरदारी" की, और टार्च की रोशनी से वास्तविक शव को तलाशने लगे, दुर्घटना वाला शव गडडे में पड़ा मिला।
"कडि़यों को जोड़ा गया, तो ये बात सामने आयी, कि जिस समय पुलिस वाले खाना खाने गये हुए थे, ये पागल घूमता हुआ यहां आ गया होगा, चूंकि सर्दी पड रही थी, तो इस पागल ने शव पर चादर ढकी देखी होगी और शव को गडडे में ढकेल कर, खुद उसी चादर को ओढ कर लेट गया होगा! आगे कि घटना में पूर्व में बता चुका हूं।"
एक ''पागल'' के ''पागलपन'' से दो पुलिस वालों को अपनी जान से हाथ धौना पड़ा। यदि वे थोड़ा सा दिमाग से सोचते कि एक क्षत-विक्षत शव कैसे बोल सकता है या हिलडुल सकता है। शायद वे मरने से बच जाते।
मेरा मानना है, यदि शव क्षत-विक्षत नहीं है तो वह कुछ परिस्थितियों में आवाजें कर सकता है तथा हिलडुल भी सकता है। मैंने खुद देखा है! उसका वर्णन मैं किसी अन्य ब्लाग में करूंगा!
अन्त में तीनों ''मृतकों'' को श्रद्वांजलि देते हुए ''महरूम'' साहब की एक ''रूबाई'' के साथ ब्लॉग समाप्त करता हूँ-
तिनका है बशर-मौजे फना के आगे
चलती नहीं कुछ उसकी कजा के आगे
क्या चीज है मौत, आ बताऊं तुझको
इन्सान की शिकस्त है खुदा के आगे।
-प्रस्तुति-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
पागल ने भी क्या बखेड़ा बना दिया ! पुलिस वाले भी काम से गए ! ओह ! वैसे उन पुलिस वालों की जगह मैं भी होता तो मैं भी चला ही जाता
जवाब देंहटाएंआदरणीय योगी जी, सादर नमन! ब्लॉग पर आने व कॉमेंट्स करने के लिए सादर धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधरती की गोद
Sanjay ji bada Hi lajavaab kathanak he. Aapki lekhini ko naman karta hun. Prestuti Karan bahut Hi dilchasp ban pada he.
जवाब देंहटाएंआदरणीय गुप्ता जी, सादर नमन! आपको पोस्ट अच्छी लगी उसके लिए आभार, व् कमेंट्स के लिए धन्यवाद!
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 27 नवम्बबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीया यशोदा जी! आपका सादर धन्यवाद!
हटाएंडर तो सबको लगता है लेकिन जो संयम से काम लेता है वह उससे बाहर निकल आता है ....हमारे गांव में भी ऐसी कहानी किस्से सुनकर हम भी खूब डर जाया करते थे ....वैसे भी हमारे पहाड़ी गांव में रात को तो अब भी डर लगता है ..कारण एक तो अँधेरा और चारों और जंगल और पास बहती नदी .... ..मन में बहुत कुछ याद आ रहा पर फिर कभी ....
जवाब देंहटाएंआदरणीया कविता जी, अपने संस्मरण साझा करने तथा ब्लॉग पर कमेंट्स करने के लिए करने के लिए सादर धन्यवाद!
हटाएंरात के अंधेरे मे दिमाग भी गड़बड़ सोचने लगता है।संयम से काम लेने का होश किसे था?
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है।
कमेंट्स के लिए धन्यवाद! आदरणीया मंजू जी!
हटाएंरोचक किस्सा ... अक्सर अकेले में ऐसा ही ख्याल आता है ...
जवाब देंहटाएंकमेंट्स के लिए धन्यवाद! आदरणीय दिगम्बर जी!
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