निर्जला एकादशी की व्रतकथा-महत्व || Ekadashi Vrat ki katha ||

https://jyotesh.blogspot.com/2023/05/nirjala-ekadashi-vrat-katha.htmlमहत्व-
यह एकादशी वर्ष की चौबीस एकादशियों में सब से महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इस ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत करने से वर्ष भर की एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। कलयुग में यह व्रत सारे सुख-वैभव देने के साथ-साथ अंत में मौक्ष देने वाला कहा गया है क्योंकि निर्जला एकादशी में एकादशी के सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन यानि द्वादशी के सूर्योदय तक यदि जल का त्याग किया जाये तो यह व्रत पूर्ण होता है। उदया तिथि के अनुसार, यह व्रत 31 मई 2023 बुधवार को रखा जाएगा।  
एकादशी की कथा-
एक बार महाबली भीम ने व्यास जी से पूछा हे पितामह! मेरे भाई युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल सहदेव और भाभी द्रोपदी के साथ-साथ माता कुंती मुझसे एकादशी का व्रत रखने के लिए कहती हैं। परन्तु पितामह मैं भगवान की पूजा-जप-पाठ सब कर सकता हूं और दान भी दे सकता हूं परन्तु भोजन के बिना नहीं रह सकता। मैं क्या करूं ? 
व्यास जी बोले-हे महाबली भीम यदि तुम नरक नहीं जाना चाहते, स्वर्ग जाना चाहते हो तो तुम्हे दोनों पक्षों की एकादशियों को भोजन नहीं करना चाहिए। 
भीम बोले-हे पितामह। मैं एक बार भोजन करके भी नहीं रह सकता तो फिर माह की दोनों एकादशियों का व्रत कैसे रख सकता हूं। मेरे उदर में वृक नाम की अग्नि हमेशा प्रज्वलित रहती है, जब मैं भोजन करता हूं तभी वह अग्नि शांत होती है इसलिए पितामह! मैं बहुत ज्यादा वर्ष में एक बार ही उपवास रख सकता हूं? अब मुझे वह मार्ग दिखाइये जिससे मैं नरकगामी न बनूं और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सके।
व्यास जी ने कहा-हे भीम ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो। केवल कुल्ला या आचमन के लिए ही मुख में जल डाल सकते हों, इसके अलावा किसी भी प्रकार से जल ग्रहण न करें, नही तो तुम्हारा व्रत भंग हो जायेगा। एकादशी के सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन द्वादशी के सूर्योदय तक व्रती को जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। तब यह व्रत पूर्ण होता है। अगले दिन यानि द्वादशी को प्रातःकाल में स्नानादि से निवृत होकर ब्राह्मणों को जल आदि यथाशक्ति दान दें, फिर ब्राह्मणों के साथ भोजन ग्रहण करें। वर्ष की समस्त एकादशियों के व्रत का फल इस निर्जला एकादशी से मनुष्य को प्राप्त होता है इसमें संदेह नहीं करना चाहिए। है कौन्तेय! जिस किसी ने श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है उन्होंने अपनी पिछली सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान श्री हरि के धाम पहुंचा दिया है ऐसा मानना चाहिए। हे भीमसेन! जो इस प्रकार पूर्ण रूप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है वह सब पापों से मुक्त होकर श्रीहरि के धाम स्वर्ग चला जाता है। 
यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत किया, इसी कारण इसे भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। बोलो लक्ष्मी नारायण भगवान की जय। 

मोहिनी एकादशी व्रत कथा 2023 || एकादशी व्रत कथा


वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 
(01 मई 2023) 
को मोहनी एकादशी के नाम से जानते हैं। इसी दिन भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के समय मोहनी का अवतार लेकर, समुद्र मंथन से निकले अमृत को देवताओं को पिलाया था। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन एकादशी का व्रत रखने से तथा कथा का श्रवण करने से, एक हजार गायों का दान देने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है तथा भगवान विष्णु भक्त के हर संकट को हर लेते हैं।

मोहिनी एकादशी की व्रत कथा-

      पौराणिक कथा के अनुसार सरस्वती नगर के तट पर भद्रावती नाम का एक नगर था। वहां द्युतिमान नाम के चंद्रवशी राजा राज्य करते थे। इसी नगर में धनपाल नाम का एक विष्णु भक्त वैश्य भी निवास करता था। वैश्य बहुत ही धार्मिक और धर्म-कर्म करने वाला था। उसने नगर में अनेक प्याऊ, भोजनालय, कुंए, तालाब और धर्मशाला बनवा रखे थे। नगर की सड़कों के किनारे अनेक छायादार व फलदार वृक्ष भी लगवा रखे थे। उस वैश्य के पांच बेटे थे। जिनके नाम सुमन, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि थे। उसका पांचवा पुत्र धृष्टबुद्धि बुरी आदतों वाला था। वह जुआ खेलता, मद्यपान करता और परस्त्री गमन में रत रहता था। उसके भाई माता-पिता उसकी बुरी आदतों से बहुत परेशान थे। अपने पुत्र के बुरे कामों से तंग होकर उसके पिता धनपाल ने धृष्टबुद्धि को घर से निकाल दिया। अब वह अपने गहने व कीमती सामान बेचकर अपना जीवन यापन करने लगा। धीरे-धीरे उसका धन समाप्त हो गया, अब उसके दोस्तों ने भी उसका साथ छोड़ दिया। भूख-प्यास से परेशान होकर धृष्टबुद्धि ने चोरी करना प्रारम्भ कर दिया। लेकिन वह चोरी करते हुए पकड़ा गया। राजा ने उसे वैश्य पुत्र होने के कारण फिर चोरी न करने की चेतावनी देकर छोड़ दिया। परन्तु भूख-प्यास से तंग आकर धृष्टबुद्धि फिर चोरी करने लगा। फिर चोरी करते पकड़े जाने पर राजा ने उसे पकड़कर नगर से निकलवा दिया।
         अब नगर से भी निकाला मिलने पर धृष्टबुद्धि जंगल में चला गया। वहां उसने पशु-पक्षियों को शिकार करना शुरू कर दिया। जंगल में वह पशु-पक्षियों का शिकार करके अपना पेट भरने लगा। अब वह बहेलिया बना गया। एक दिन उसे जंगल में कोई शिकार नहीं मिला वह भूख-प्यास से व्याकुल होकर जंगल में भटकते-2 कौडिन्य ऋषि के आश्रम पहुंच गया। उस समय वैशाख का माह चल रहा था। महर्षि गंगा स्नान करके अपने आश्रम में लौट रहे थे। महर्षि कौडिन्य के भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़े। छींटे पड़ने से उसे कुछ ज्ञान की प्राप्ति हुई। तब उसने महर्षि से हाथ जोड़कर कहा हे महर्षि! मैंने जीवन में बहुत पाप किये हैं, आप मुझे उन पापों से मुक्ति का कोई मार्ग बताइये। महर्षि कौडिन्य ने प्रसन्न होकर उसे मोहनी एकादशी का व्रत करने को कहा और बताया कि इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो जायेंगे। तब धृष्टबुद्धि ने महर्षि की बतायी विधि के अनुसार मोहनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गये और अंत में वह भगवान विष्णु के धाम वैकुंठ को चला गया। इस व्रत की महिमा पढ़ने व सुनने मात्र से एक हजार गोदान करने का फल प्राप्त होता है। 
बोलों लक्ष्मी नारायण भगवान की जय!

नौ निधियां कौन सी है || नौ निधियों के नाम || नव निधियों के स्वामी कौन हैं?

नव निधियां कौन सी हैं!
हनुमान चालीसा
में कहा गया है कि ‘‘अष्ट सिद्धि नव निधी के दाता असबर दीन जानकी माता।’’ अर्थात रामभक्त हनुमानजी को माता सीता ने अष्ट सिद्धि और नौ निधियों का वरदान दिया था। हनुमान जी अपने भक्तों को अष्ट सिद्धियां और नव निधियां देने में सक्षम हैं। मित्रों इस आलेख में हम नव नीधियों पर चर्चा करेंगे।
मित्रों।। प्रत्येक व्यक्ति के धन प्राप्ति के साधन अलग-अलग होते हैं और उनका धन कमाने का उद्देश्य भी अलग-अलग होता है। धन कमाने के 3 तरीके हैं- सात्विक, राजसिक और तामसिक। सात्विक तरीके से कमाया गया धन अच्छा और सात्विक फल देता है और तामसिक तरीके से कमाया हुआ धन बुरा या तामसिक फल देता है। नौ नीधियां भी इन्हीं तीन प्रकार के गुणों में बंटी हुई हैं, तो आइये हम देखते हैं कि हमारे पास कौन सी प्रकार की निधि है या हम किस प्रकार से कमाई कर रहे हैं और वह हमारे पास कब तक रहेगी।
1. पद्म निधि : पद्म निधि के लक्षणों से संपन्न व्यक्ति सात्विक गुणों से युक्त होता है, और उसकी कमाई गई संपत्ति भी सात्विक होती है। सात्विक तरीके से कमाई गई संपदा पीढ़ियों तक चलती रहती है, इसका उपयोग साधक के परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है। सात्विक गुणों से संपन्न व्यक्ति सोना-चांदी आदि का संग्रह करके उनका दान करता है। इस निधि का अस्तित्व साधक के परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता है। 
2. महापद्म निधि : यह निधि भी पद्म निधि की तरह ही सात्विक होती है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति भी दानी होता है। परन्तु इस निधि का प्रभाव 7 पीढ़ियों के बाद समाप्त हो जाता है।
3. नील निधि : इस निधि में सात्विक और राजसी गुणों का समावेश होता है। ऐसी निधि व्यापार द्वारा प्राप्त होती है इसलिए इस निधि से संपन्न व्यक्ति में दोनों ही गुणों की प्रधानता रहती है। हालांकि इसे मधुर स्वभाव वाली निधि भी कहा गया है। ऐसा व्यक्ति जनहित के कार्य करता है, परन्तु इस निधि का प्रभाव 3 पीढ़ियों के बाद समाप्त हो जाता है।
4. मुकुंद निधि : इस निधि में रजोगुण की प्रधानता रहती है इसलिए इसे राजसी स्वभाव वाली निधि कहा गया है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति का मन भोग विलास में लगा रहता है। इसलिए वह अपने जीवन काल में ही इस निधि को समाप्त कर देता है, अर्थात यह निधि एक पीढ़ी के बाद समाप्त हो जाती है।
5. नंद निधि : इसी निधि में राजसी और तामसिक गुणों का मिश्रण होता है। माना जाता है कि यह निधि साधक को लंबी आयु व निरंतर तरक्की प्रदान करती है। व्यक्ति अपने क्षेत्र में निरन्तर प्रगति करता रहता है।
6. मकर निधि : इस निधि को तामसी निधि कहा गया है। इस निधि से संपन्न साधक अस्त्र और शस्त्र के बल पर धन का संग्रह करते हैं। ऐसे व्यक्ति राज्य और सरकार में हिस्से दारी रखते हैं, यह अपने शत्रुओं पर भारी पड़ते है और युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, लेकिन इनकी मृत्यु भी इसी कारण से होती है। 
7. कच्छप निधि : यह निधि भी तमोगुण से युक्त होती हैं, इसका साधक अपनी संपत्ति को छुपाकर रखता है। न तो स्वयं उसका उपयोग करता है, न ही किसी को करने देता है। वह कच्छप की तरह उसकी रक्षा करता है। 
8 . शंख निधि : इस निधि को पाने वाला व्यक्ति स्वयं की ही चिंता और स्वयं के ही भोग की इच्छा रखता है। वह कमाता तो बहुत है, लेकिन उसके परिवार वाले गरीबी में ही जीते हैं क्योंकि ऐसा व्यक्ति अपने धन को केवल स्वयं के लिये ही खर्च करता है। यह निधि एक पीढ़ी के बाद समाप्त हो जाती है।
9. खर्व निधि : यह निधि तमोगुण प्रधान निधि होती हैं। इस निधि से संपन्न व्यक्ति विकलांग होता है और सम्पत्ति को कमाने में कभी किसी को लूटने से भी परहेज नहीं करता।
साथियों! इस प्रकार हमने देखा कि सात्विक और राजसी गुणों से युक्त सम्पत्ति स्थायी होती है, परन्तु तामसिक गुणों से कमाई गयी सम्पत्ति अस्थायी होती है वह जितनी जल्दी आती है उतनी ही जल्दी समाप्त भी हो जाती है। 
तो साथियों!! आपको ये आलेख कैसा लगा, कमैंट्स करके बताना  न भूले, अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए, नमस्कार, जय हिन्द।   लेखक : संजय कुमार गर्ग

एक कापालिक से सामना (सत्य कथा)

सौरभ अपने स्कूल में ऑफिस में बैठा हुआ था, ये उसका अपना स्कूल था जिसमें वह प्राचार्य था, उसके साथ उसके कुछ स्टॉफ के लोग भी ऑफिस में कुछ जरूरी काम कर रहे थे। तभी स्कूल के गेट से जोर की आवाज आयी....
अलख निरंजन........
सभी ने स्कूल गेट की ओर देखा।
एक साधु स्कूल के गेट से चलता हुआ ऑफिस के गेट पर आकर खड़ा हो गया। उसके पीछे कुछ लोगों की भीड़ थी, साधु एक लंबे कद का बिल्कुल स्याह काले रंग का था, शरीर पर गेहुएं बेतरतीब वस्त्र, गले में रूद्रांक्ष की मालाएं और उसके हाथ में एक इंसानी खोपड़ी थी। अपनी मोटी-मोटी लाल आंखों से उसने सभी को घूरा और जोर से बोला...
अलख निरंजन बच्चा...
सौरभ ने हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया और अपनी अपलक दृष्टि उनके चेहरे पर जमाते हुआ बोला, आदेश महाराज!!!
इससे पहले वह साधु कुछ बोलता, साथ चली आ रही भीड़ में से एक बोला-ये महाराज, किसी के भी मन की बात बता देते हैं, या तक की किसी ने आज क्या खाया है, ये तक बता देते हैं, आप भी कुछ पूछिये सर जी......
ये सुन कर सौरभ ने अपनी तेज नजरें साधु के चेहरे पर जमायी और चुप रहा।
अचानक साधु बोला-क्या सोच रहे हो, तुम्हारे दरवाजे पर एक अंतरयामी कापालिक (तांत्रिक, श्मशान पर इंसानी कपाल के साथ साधना करने वाला) खड़ा है, आशीर्वाद नहीं लेगा??
सौरभ पुनः हाथ जोड़कर बोला-महाराज आदेश दीजिए, आप क्या खायेंगे, या चाय पीयेंगे?? वैसे मेरी अपने मन की बात जानने की कोई इच्छा नहीं है-सौरभ ने आगे कहा!
हम भारत भ्रमण पर हैं उसके लिए मुझे कुछ धन की सहायता चाहिए, मैं तेरे से 1100/- की भेंट चाहता हूं... कहते हुए कापालिक आगे बढ़ा और सौरभ के कान के पास चुटकी मारते ही भभूत प्रगट कर दी और सौरभ के हाथ में रख दी।
भीड़ ने विस्मित होकर ताली बजायी...
सौरभ एकटक साधु को देखते हुए उसके मन को पढ़ने का प्रयास करते हुए बोला-महाराज भारत भ्रमण के लिए आपको धन की क्या आवश्यकता है? आपसे कोई ट्रेन में टिकट नहीं मांगेगा, होटल ढाबे वाला आपको भोजन कराने से इंकार नहीं करते? फिर आपको धन की क्या आवश्यकता है? आप तो कापालिक हैं, कापालिक धन-दिखावे से दूर रहते हैं?
तू मुझे सीख दे रहा है? एक कापालिक को पढ़ा रहा है मास्दर! -लाल आंखों से घूरते हुए कापालिक ने सौरभ को घूरते हुए कहा!
सौरभ के स्कूल का एक अध्यापक कापालिक को बड़े ही आदर व जिज्ञासा भरी नजरों से देख रहा था, सौरभ कद्ाचित इस बात को भांप चुका था, उसने साधु से कहा-महाराज! ये हमारे शर्मा जी है, चलिए आप इनके मन की बात बताइये?
उस कापालिक ने अपनी लाल-लाल आंखों से शर्मा जी को देखा और बोला-बच्चा एक कॉपी पेंसिल निकाल लें, साधु के साथ आयी भीड़ उत्सुकतापूर्वक देखने लगी, जबकि सौरभ अपने काम में पुनः लग चुका था, क्योंकि ये बातें सौरभ के मन में उत्सुकता नहीं जगाती थीं, क्योंकि वो स्वयं साधक था।
स्कूल के अध्यापक शर्मा जी ने प्रसन्नतापूर्वक कॉपी पेंसिल निकाल ली और साधु की ओर देखने लगे।
आज आपने क्या खाया है? इस कॉपी पर पांच बार लिखो!
शर्मा जी लिखने लगे-साधु ने शर्मा जी पर अपनी दृष्टि जमा दी और बोला-दलिया खाया था ना आज तुमने बच्चा?
जी महाराज! शर्मा जी बोले! साथ आयी भीड़ ताली बजाने लगी।
अब अपने किसी पंसदीदा फल का नाम लिखो? कापालिक बोला!
शर्मा जी फिर लिखने प्रारंभ किया....
सेब.....? कापालिक बोला!
बिल्कुल ठीक महाराज! शर्मा जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा!
इसी प्रकार अनेक चीजों को उस कापालिक ने बताया, भीड़ उसकी प्रशंसा करते नहीं थक रही थी। सौरभ अपने काम में लगा हुआ था परन्तु वह मन ही मन सारी गतिविधियों को देख और समझ रहा था। अचानक कापालिक सौरभ की ओर बड़ा और सबको हाथ दिखाते हुए, सौरभ के माथे पर चुटकी बजायी और लाल रंग प्रगट कर दिया, लाल रंग सौरभ के माथे पर लग चुका था और सौरभ से बोला-तू कुछ नहीं पूछेगा मास्टर? अब कापालिक कुछ गुस्से में था।
आप वास्तव में अंतरयामी हैं, लीजिए चाय पीजिए-सौरभ ने कापालिक की ओर चाय बढ़ाते हुए विनम्रतापूर्वक कहा!
बस इतना सहयोग, तू लगता है मुझे नहीं पहचान पाया मास्टर! कापालिक अब और गुस्से में लग रहा था।
महाराज भारत भ्रमण के लिए, अब तो आपके पास पर्याप्त धन हो गया होगा, सौरभ ने भीड़ को ओर देखते हुए कहा?
सौरभ की ये बात सुनकर कापालिक सकपका गया और कनखियों से भीड़ की ओर देखते हुए बोला, परन्तु मैं तेरे मन की बात बताना चाहता हूं? तू क्या मुझे दस मिनट नहीं दे सकता, मास्टर? कापालिक बोला!
ठीक है महाराज! यदि आप यही चाहते हैं तो.....कहते हुए सौरभ ने अपना रजिस्टर एक तरफ रखा और शर्मा जी से कॉपी-पेंसिल ले कर बैठ गया और कापालिक की ओर देखने लगा!
बताइये महाराज आप क्या बताना चाहते हैं?? सारी भीड़ उत्सुकतापूर्वक एक-दूसरे के कंधे पर चढ़ने का प्रयास करने लगी, कद्ाचित कापालिक सौरभ की इच्छा शक्ति को पहचानने में गलती कर रहा था।
आज तुमने प्रातः क्या खाया? कागज पर पांच बार लिखो-कापालिक ने उत्साहपूर्वक कहा।
सौरभ ने पहले ही ये भांप लिया था कि कापालिक किसी व्यक्ति की मानसिक तरंगों को पढ़ सकता है, और ये क्षमता कोई भी स्त्री-पुरूष जप-ध्यान से अपने अंदर उत्पन्न कर सकता है, ये कोई चमत्कार नहीं है, ये एक मानसिक शक्ति है, जो हर किसी के अंदर है, आवश्यकता इसे जगाने भर की है। परंतु सौरभ इससे भी कुछ ज्यादा था, वह अपने मन को एक साथ अलग-अलग दो विषयों पर एकाग्र कर सकता था। जैसे गायत्री जप करने के साथ-साथ उसके अर्थ का मन ही मन चिंतन करना। 
सौरभ ने लिखना प्रारंभ कर दिया, सौरभ ने कागज पर ‘चना’ लिखा, परंतु दिमाग में ‘दलिया’ सोच रहा था...सौरभ में ये क्षमता थी, वह अपने मन को दो अलग-अलग धाराओं में नियंत्रित कर सकता था उसकी इस क्षमता के बारे में मैं अपनी दूसरी कहानी ‘‘वह उसकी पत्नि नहीं थी?’’ में भी बता चुका हूं।
कापालिक बोला-‘दलिया’ 
सौरभ ने कापालिक को इस प्रकार ‘चना’ लिखा हुआ कागज दिखाया कि कोई ओर न देख सके और जोर से चिल्लाया महाराज! बिल्कुल ठीक....आपने बिल्कुल ठीक बताया है..... और ‘चना’ लिखे हुए कागज को फाड़ कर फेंक दिया...भीड़ चिल्लायी वाह...वाह..महाराज!!
कापालिक ये देख थोड़ा खिसिया गया, परंतु अपनी खिसियाहट को दबाते हुए बोला.....अपनी पंसदीदा फल लिखो???
सौरभ ने फिर वैसा ही किया, मन ही मन ‘अनार‘ सोचते हुए उसने कागज पर ‘सेब’ लिखा।
कापालिक बोला-‘अनार’ अनार है ना? सौरभ ने फिर सबसे छुपाते हुए कापालिक को ‘सेब’ लिखा हुआ दिखाया और परचा फाड़ते हुए चिल्लाया, वाह...महाराज वाह...आपने बिल्कुल ठीक बताया है।
खड़े हुए लोग कापालिक की जयजयकार करने लगे, अब कापालिक के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी, उसने धीरे-धीरे मुस्कराते हुए, हाथ जोड़े बैठे सौरभ को देखा।
महाराज अब बस कीजिए....आप वास्तव में अंतरयामी हैं! 
नहीं......अब अपना पंसदीदा जानवर लिखिए और उस परचे को सबको दिखाइये--कापालिक अपने आपको जबरदस्ती संभालने की कोशिश करते हुए बोला।
परन्तु इस बार भी वहीं हुआ, कापालिक को सौरभ ने अपनी इच्छा शक्ति से धोखा दे दिया और वह सौरभ के मन को सही नहीं पढ़ पाया। 
महाराज! क्या परचा सभी को दिखाना है? सौरभ ने शरारती अंदाज में कापालिक से पूछा?
नहीं.....! सौरभ के हाथ से परचा लेकर फाड़ते हुए कापालिक ने सौरभ को आश्चर्य मिश्रित आंखों से देखते हुए कहा! अब कापालिक एकटक, अपलक दृष्टि से सौरभ की ओर देख रहा था।
अब सौरभ भीड़ से बोला, अब आप लोग यहां से जाइये, मुझे महाराज से बात करनी है, भीड़ धीरे-धीरे आपस में महाराज की प्रशंसा करते हुए वहां से चली गयी। अब सौरभ ने स्टॉफ को भी ऑफिस से बाहर भेज दिया, अब ऑफिस में सौरभ और कापालिक ही थे।
आपने ये कैसे किया?? और मेरी बेइज्जती भी नहीं होने दी, आप कौन हैं? क्या आप भी साधक हैं, गुरू जी... अब कापालिक के सुर बदल चुके थे, वो अब मास्टर से गुरू जी पर आ गया था। जबकि सौरभ अब भी कापालिक के आगे हाथ जोड़े बैठा था।
महाराज! मैं भी एक छोटा सा साधक हूं यहां स्कूल में पढ़ाने के साथ-साथ मैं लोगों को योग-मेडिटेशन आदि सिखाता हूं, मेरे अनेक साधक आंखों पर पट्टी बांधकर, पढ़ सकते हैं, बाइक व साइकिल चला सकते हैं। आप वास्तव में अंतरयामी हैं, इसमें दो राय नहीं है-मृदुभाषी सौरभ बोला। आपने मेरे मन की बात को सही पढ़ा, परन्तु आपने वही पढ़ा, जो मैंने आपको भेजा, परन्तु आप वह नहीं पढ़ पाये जो मैंने लिखा, क्योंकि लिखा हुये शब्द मैंने आपको भेजे ही नहीं.....आपने केवल मेरे भेजे संदेश को रिसीव किया, क्योंकि मैंने पहले ही भांप लिया था कि आप केवल संदेश रिसीव कर सकते हैं, भेज यानि सेन्ड नहीं कर सकते, जबकि महाराज! ईश्वरीय अनुकंपा से मैं संदेश पढ़ना और भेजना दोनों जानता हूं-सौरभ ने पुनः हाथ जोड़ते हुए मधुरवाणी में कापालिक से कहा।
यानी ‘टेलिपैथी’ ??? कापालिक बोला!
बिल्कुल सही महाराज!!! सौरभ ने कापालिक की ओर चाय बढ़ाते हुए कहा।
अब कापालिक बिल्कुल शांत हो चुका था, एक सांसारिक आदमी मुझसे बड़ा साधक है? अब कापालिक दुःखी था।
महाराज! ये साधनाएं जन्म-जन्मांतरों की साधनाएं होती हैं, हो सकता है, पिछले जन्म में मैंने उच्च साधना की हो, इसके परिणामस्वरूप मैं आज संसार में रहकर भी साधना कर पा रहा हूं-सौरभ ने कापालिक के मन में उमड़ रहे प्रश्न को भांपते हुए सांत्वना देते हुए कहा। यदि आप इन साधनाओं को पैसे कमाने या प्रदर्शन मात्र करने का साधन न बनाते तो हो सकता है आप बहुत बड़े साधक होते-सौरभ ने कापालिक को समझाते हुए कहा।
आपने मेरी आंखे खोल दी हैं, अब मैं भी अपनी साधनाओं का प्रदर्शन नहीं करूंगा और इनसे समाज की सेवा करूंगा, आपने मेरी आंखे खोल दी गुरू जी! कापालिक हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
सौरभ ने कापालिक के हाथ जोड़कर, चरण स्पर्श किये और उन्हें दक्षिणा देकर, संतुष्ट करके वहां से विदा किया...क्योंकि वो भी किसी कापालिक का रूष्ट नहीं करना चाहता था।
(कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है, कथा का मनोरंजक व ज्ञानवर्द्धक बनाने के लिए उसे कहानी का रूप दिया गया है। कहानी के पात्र काल्पनिक हैं)  -लेखक : संजय कुमार गर्ग
                                 

भूकम्प से कैसे बचें? bhukamp se bachne ke upay

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भूकंप (Earthquake) कभी भी आ सकता है, तुर्की और सीरिया में आया भयानक भूकम्प इसका उदाहरण है। वैज्ञानिक अभी तक इसके आने का सही समय, स्थान, या तीव्रता का पूर्वानुमान लगाने में सफल नहीं हो पाये हैं। भूकम्प आने पर हम घबरा जाते हैं एकदम कुछ निर्णय नहीं कर पाते, क्यांकि हमें पता ही नहीं होता कि हमें क्या करना है, परन्तु यदि हम पहले से ही इसके बारे में तैयारी कर लें कि  भूकम्प  (Earthquake) आने पर क्या करें ?


घर में हों तो क्या करें ?

बाहर हो तो क्या करें ?

रात में भूकम्प आये तो क्या करें ?

गाड़ी चला रहें हैं तो क्या करें ? 

भूकम्प  (Earthquake) में दब गये हों तो कैसे बचने का प्रयास करें ? 

और भूकम्प  (Earthquake) के समय हमारे पास क्या-क्या सामान होना चाहिए ? 

आदि बातों का यदि हम पहले से ही ध्यान रखें, तो हम इस विभिषिका से काफी हद तक सेफ रह सकते हैं। 

मैं उपरोक्त सभी बिन्दुओं पर आपको भूकम्प से बचने के तरीके बता रहा हूं-

यदि भूकम्प  (Earthquake) दिन में आये और आप घर में ही हो तो क्या करें ?

1-भूकंप महसूस होते ही घर से बाहर निकलकर खुली जगह पर चले जाएं. अगर गली काफी संकरी हो और दोनों ही ओर बहुमंजिला इमारतें बनी हों, तो बाहर निकलने से कोई फायदा नहीं होगा. अतः घर में ही सुरक्षित ठिकाने की तलाश करें।

2-अगर घर से बाहर निकलने में काफी समय लगने का अनुमान हो, तो घर में ज्यादा इधर-उधर न भागे, कमरे के कोने में हाथों से सिर व मूंह को ढ़क कर बैठ जायें या किसी मजबूत फर्नीचर जैसे टेबल, तख्त या दीवान आदि के नीचे छुप जाएं. अपने सिर को पहले बचाने का प्रयास करें।

3-भूकंप महसूस होते ही टीवी, फ्रिज, जैसे बिजली के सारे उपकरणों से प्लग निकाल दें या घर की मैन लाइन फोरन काट दें।

4-घर में कांच, खिड़कियों, दरवाजों और दीवारों से दूर रहें । 

5-लिफ्ट के इस्तेमाल से बचें और कमजोर सीढ़ियों का इस्तेमाल न करें, क्योंकि लिफ्ट और सीढ़ियां दोनों ही टूट सकती हैं. 

साथियों! यदि भूकम्प  (Earthquake) रात में आये तो क्या करें ?

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भूकम्प से कैसे बचें?
1-यदि भूकम्प (Earthquake) आने के समय आप बिस्तर पर हैं, तो वहीं पर बने रहें। अपने सिर और चेहरे के बचाव के लिए  तकिये को सिर पर रखें, यह ध्यान रखें कि आपके सिर पर पंखा या भारी झाड़फानूस न गिर जाये। ऐसी स्थिति में, निकटतम सुरक्षित जगह पर भी जाने का प्रयास करें।

2-भूकम्प (Earthquake) के दौरान जितना सम्भव हो, सुरक्षित रहें। ध्यान रखें कि कुछ भूकम्प पूर्व-झटके होते हैं और बाद में अधिक बड़ा-या छोटा भूकम्प आ सकता है, इसे हम प्राइमरी वेव और दूसरे को सेकेन्ड्री वेव कहते हैं। अतः कम्पन बन्द होने तक घर पर ही रहें। अनुसंधान से पता चला है कि सबसे अधिक चोट तब लगती है जब इमारत के अन्दर मौजूद लोग इमारत के अन्दर ही दूसरे स्थान पर जाने का प्रयास करते हैं या इमारत से बाहर आने की कोशिश करते हैं।

साथियों! यदि भूकम्प  (Earthquake) आने पर घर से बाहर हों तो क्या करें।

1-घर के बाहर कभी भी ऊंची इमारतों, बिजली, टेलीफोन के खंभे या पेड़-पौधों के नीचे न खड़े हों। खुले स्थान पर जाने का प्रयास करें।

2. अगर गाड़ी चला रहे हो तो उसे रोक लें और गाड़ी से बाहर ना निकलें. कोशिश करें कि किसी पुल या फ्लाइओवर पर गाड़ी खड़ी न करनी पड़े।

भूकम्प  (Earthquake) के बारे में अग्रिम योजना (Advance Planning for Earthquake) किस प्रकार बनायें-

1-भूकम्प के समय क्या-क्या चीजें खतरनाक हो सकती हैं, और उनसे बचने के उपाय सोचे।

2-भारी आलमारियाँ व शेल्व्स को दीवारों के पास ही रखें, व बड़ी व भारी वस्तुओं को आलमारी या शेल्व्स के निचले हिस्से में ही रखें।

4-बोतलबन्द खाद्य पदार्थ, काँच या चीनी मिट्टी की बनी, व आसानी से टूटने वाली नाजुक वस्तुओं को निचले हिस्से में बन्द आलमारियों में चिटकनी लगाकर रखें।

5-जहाँ बैठने की जगह हो उसके ऊपर फ्रेम वाले बड़े चित्र या पेंटिंग्स न लगायें, भूकम्प के समय ये चीजें गिरकर आपको नुकसान पहुंचा सकती हैं।

6-घर व कमरों की छतों पर ‘लाइटिंग’ फिटिंग्स को अन्डरग्राउण्ड ही करायें।

7-खराब वायरिंग व कमजोर बिजली के तारों और रिसते गैस पाइप कनेक्शन को तुरन्त ठीक करायें। इनसे आग का सम्भावित जोखिम अधिक है।

8-घर के अन्दर और बाहर के सुरक्षित स्थानों को पहचानें, अपने घर में हमेशा ऐसे स्थान की खोज रखनी चाहिए, जहाँ भूकम्प के समय शरण ली जा सके। मजबूत फर्नीचर, मजबूत टेबल या किसी मजबूत बेड के नीचे सुरक्षित स्थान की पहचान करके रखें। 

9-खुद को और परिवार के सदस्यों को भूकम्प के बारे में शिक्षित करें। संभव हो कभी-कभी खेल-खेल में मॉक ड्रिल करें। जिससे घर के सदस्यों में कॉफिडेन्स आये।

10-परिवार के सभी सदस्यों को सिखाएं कि गैस, बिजली और पानी कैसे और कब बन्द करना चाहिए।

11-भूकम्प  (Earthquake) के समय काम आ सकने वाली सामग्री अपने पास रखें, जैसे टार्च, पोर्टेबल बैटरी से चलने वाला रेडियो, फर्स्ट एड बॉक्स व आवश्यक दवाएं, बिस्किट और पानी की बोतल आदि।

यदि हम मलबे में दब गये हैं तो क्या करें-

https://jyotesh.blogspot.com/2023/02/bhukamp-se-bachne-ke-upay.html
भूकम्प से कैसे बचें?
1-अगर आप भूकंप के वक्त मलबे में दब जाएं तो माचिस-लाइटर बिल्कुल ना जलाएं इससे गैस लीक होने की वजह से आग लगने का खतरा हो सकता है।

2-भूकंप में अगर आप मलबे में दब जाएं तो ज्यादा हिले नहीं और ना धूल उड़ाएं, किसी कपड़े या रूमाल से अपना मूंह ढ़कें। 

3-मलबे के नीचे खुद की मौजूदगी को जताने के लिए, ताकि बचाव दल आपको तलाश सकें, पाइप या दीवार को ठकठकाते रहें, अगर उपलब्ध हो तो सीटी का प्रयोग करें। केवल अंतिम उपाय के रूप में चिल्लाएँ क्योंकि चिल्लाने से आपकी सांस के साथ खतरनाक मात्रा में धूल शरीर में जा सकती है। 

साथियों ऐसी स्थिति में सबसे महत्वपूर्ण होता है, धैर्य बनाए रखें, और हिम्मत बिल्कुल ना हारें।

तो साथियों! आपको ये आलेख कैसा लगा कमैंटस करके जरूर बताये, अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए नमस्कार, जयहिन्द।     लेखक -संजय कुमार गर्ग