Karva Chauth 2024 : करवा चौथ व्रत सबसे पहले किसने किया!

Karva Chauth 2024 : करवा चौथ व्रत सबसे पहले किसने किया!
मनु स्मृति के तीसरे अध्याय
में कहा गया है ‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।’’ अर्थात-जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती, उनका सम्मान नही होता, वहाँ किए गए समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं। यह मंत्र हमारे पौराणिक ग्रंथों में नारी के महत्व को दर्शाता है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण है कि नारी जितने प्रयास, व्रत, तप अपने बच्चों, पति और परिवार के लिए करती है उतना पति नहीं कर पाता। सच्ची नारी वहीं जिसमें प्रेम, प्यार, त्याग की भावना कूट-कूट कर भरी होती है। अहंकार दिखावे का इसमें कोई स्थान नहीं होता।

शास्त्रों में करवा चौथ के व्रत से संबंधित अनेक मत हैं, परन्तु बताया जाता है कि इस व्रत का प्रारम्भ महाभारत के काल में भगवान श्री कृष्ण के कहने से हुआ था और इसका प्रारम्भ द्रोपदी ने किया था। आइये करवा चौथ की असली कहानी क्या है? जानते हैं-

करवा चौथ की असली कहानी क्या है?/ करवा चौथ की हिस्ट्री क्या है?


एक बार अर्जुन कील पर्वत पर किसी विशेष अनुष्ठान के लिए गये। अर्जुन के जाने के बाद  द्रोपदी अत्यंत चिंतित हुई, उसने सोचा कि उस वन में कितने भयंकर खतरे होंगे और अर्जुन अकेले  ही इस पर्वत पर चल गये। वहां उनके साथ कोई भी नहीं है, किसी खतरे में अर्जुन किससे सहायता लेंगे। पता नहीं वहां अर्जुन की दशा कैसी होगी? ये सोच-सोच कर द्रोपदी बहुत चिंतित हुई। उसी समय भगवान श्री कृष्ण वहां आये उन्होंने द्रोपदी से उनकी चिंता का कारण पूछा?

द्रोपदी ने कहा हे प्रभु इस गृहस्थी में इतने दुःख हैं, इतने कष्ट हैं, कृपया इनसे बचने का कोई तो उपाय बताइये ताकि ये विघ्न-बाधाएं दूर हो सकें?
भगवान श्री कृष्ण ने कहा-तुम्हारा मन अर्जुन के प्रति अत्यंत व्याकुल है, तुम उसकी चिन्ता ना करो, केवल उसका चिन्तन करों!
द्रोपदी ने कहा-तो प्रभु फिर मैं क्या करूं?
तब भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी को पति की दीर्घायु देने वाला करवा चौथ का व्रत बताया बताया साथ ही पित्त के प्रकोप को समाप्त करने के लिए चंद्र देव की पूजन की विधि भी बतायी। 
द्रोपदी ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को अर्जुन के लिए भगवान श्रीकृष्ण की बतायी विधि के अनुसार करवा चौथ का व्रत व पूजन किया।

कहा जाता है इस व्रत के प्रभाव से ही पाण्डवों की सारी बाधाएं समाप्त हो गयी और महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की विजय हुई। उसी दिन से भारतीय स्त्रियां अपने पति के लिए लंबी आयु, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कराने के लिए, भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बतायी गयी विधि से करवा चौथ का व्रत करने लगी और इस व्रत को प्रत्येक वर्ष करके अपने जीवन में धारण कर लिया।

गोस्वामी देवाचार्य गिरि जी के अनुसार-
करवा चौथ का व्रत करने के लिए मिट्टी का करवा लेना चाहिए, करवें में गेहूं और उसके ढक्कन में चीनी तथा नगद रूप्ये रखें, चावल, रोली, मोली, मिष्ठान आदि चढ़ाओं। रोली जल के लौटे पर एक सतिया बनाइये, रोली, चावल छिड़क कर जल चढ़ाओं। हाथ में तेरह गेहूं के दाने लेकर मुट्ठी बंद कर लें उसके बाद करवा चौथ की कहानी किसी से सुनें या स्वयं पढ़े। जो कहानी कह रही है उसको दक्षिणा अवश्य दें। उसके बाद मध्य रात्रि का चांद देखकर चांद को अरग दें तथा अरग देते समय नीचे लिखी लाइनें सात बार बोलें-

Karva Chauth 2024 : करवा चौथ व्रत सबसे पहले किसने किया!


चांद को अरग देते समय क्या बोलते हैं?/अरग कैसे दिया जाता है?

चन्दा ऐ चन्द्रावलिए चन्दा आया बार में,
उठ सुहागन अरग दें, मैं बैठी थी बाट में।
काहे का तेरा कंडलरा काहे का तेरा हार,
सोने का नेरा कंडला जगमोतियन का हार।।
कहां बसे तेरा पेवड़ा कहां ससुराल, 
आम तले मेरा पेवड़ा नीम तले ससुराल।।
चन्दा ऐ चन्द्रावालिए चन्दा आया बार..................

चौथ का व्रत कितनी तारीख को है 2024 में?

भारतीय पंचांग के अनुसार, 2024 में कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 20 अक्टूबर दिन रविवार को सुबह 6 बजकर 46 मिनट पर करवा चौथ शुरू होगी और 21 अक्टूबर दिन सोमवार करवा चौथ सुबह 4 बजकर 16 मिनट पर खत्म होगी। करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर को ही रखा जाएगा। 

तो आपको ये कथा कैसी लगी कमैंटस करके बताना न भूले, अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए नमस्कार जयहिन्द।
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, वास्तुविद्, एस्ट्रोलोजर   

Astro Tips : सुख समृद्धि के लिए अपनी राशि का पौधा लगायें !

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राशि किसे कहते हैं?

संपूर्ण आकाश मंडल को गोलाकर मानक 360 अंशों में विभाजित किया जाता है तथा आकाश मंडल की स्थिति का ज्ञान प्राप्त करने के लिए इस 360 अंशों को 12 भागों में बांटा जाता है। आकाश में इन 12 रााशियों के तारे मिलकर जो आकृति या चिन्ह बनाते हैं उन्हें हर राशि का चिन्ह माना जाता है। इससे आकाश मण्डल की संपूर्ण जानकारी मिल जाती है और अध्ययन करने में भी आसानी रहती है। 360 अंशों के आकाश मंडल को 12 भागों में बांटने पर प्रत्येक राशि का मान 30 अंश निकलता है। संसार के समस्त इंसानों को इन्हीं 12 राशियों में विभाजित किया गया है। जिस राशि पर जन्म के समय चन्द्रमा होते हैं उसे ही जातक विशेष की राशि माना जाता है।
राशियों के 108 अक्षर हैं, प्रत्येक अक्षरों को 12 राशियों में विभाजित करने पर प्रत्येक राशि में 9 अक्षर आते हैं, जिन्हें चरण कहा जाता है। इसी नामाक्षर के आधार पर जातक का नाम रखा जाता है। अब देखते हैं राशि के अनुसार कौन सा पेड़ लगाना चाहिए?

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मेष राशि वालों को कौन सा पौधा लगाना चाहिए?

मेष राशि के स्वामी मंगल हैं और यह ग्रहों के मंत्रीमंडल में सेनापति माने जाते हैं, यह अग्नि तत्व की राशि होती है। अतः इस राशि वालों को अग्नि तत्व से संबंधित पेड़-पौधे लगाने चाहिए। मेष राशि वाले आंवला, आम, अनार, नीम, बरगद, व गुड़हल आदि में से कोई एक या अनेक पेड़ पौधे लगा सकते हैं। ऐसा करने से कुंडली में मंगल की स्थिति मजबूत होती है, और जातक के जीवन में खुशहाली आती है।


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वृषभ राशि वालों को कौन सा पौधा लगाना चाहिए?

वृषभ राशि के स्वामी सभी प्रकार की भौतिक सुख सुविधाओं के स्वामी शुक्र हैं। यह ग्रहों के मंत्रीमंडल में मंत्री के पद पर आसीन हैं। यह पृथ्वी तत्व की राशि है। शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए सफेद रंग के फल फूल वाले पेड़ पौधे लगाने चाहिए। इनमें गूलर, अशोक, पलास, चमेली, मोगरा, जामुन आदि में से कोई एक या अनेक पेड़ पौधे लगाने चाहिए। इससे कुण्डली में शुक्र की स्थिति मजबूत होती है और जातक के जीवन में भौतिक सुख सुविधाओं का अभाव नहीं रहता।

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मिथुन राशि वालों को कौन सा पौधा लगाना चाहिए?

मिथुन राशि के स्वामी बुध ग्रह हैं। इन्हें ग्रहों के मंत्रीमंडल में राजकुमार का पद प्राप्त है। यह वायु तत्व की राशि है। बुध का प्रसन्न करने के लिए सूरजमुखी, तुलसी, आम, कटहल, अंगूर, बेल, गुलाब आदि में से कोई एक या अनेक पेड़-पौधे लगाने चाहिए। यह शरीर के त्रिदोष वात, पित, कफ को दूर करते हैं और जीवन में धन व सौभाग्य लाकर बुध को अनुकूल करते हैं।

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कर्क राशि वालों को कौन सा पौधा लगाना चाहिए?

कर्क राशि के स्वामी चंद्र ग्रह हैं। इन्हें ग्रहों के मंत्रीमण्डल में राजा (रानी) का पद प्राप्त है। यह राशि जल तत्व की राशि है। इस राशि वालों को चंदन, हरसिंगार, तुलसी, नीम, पीपल, आंवला आदि में से कोई एक या अनेक पेड़-पौधे लगाना लाभकारी होता है। छोटे पौधों की बात करें तो मोगरा, चांदनी, गेंदा, गुलाब आदि में से कोई भी पौधा लगा सकते हैं। इससे राशि के ग्रह चन्द्रमा बलवान होते हैं तथा चन्द्रमा मन व शरीर को मानसिक व शारीरिक रूप से सबल बनाते हैं।


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सिंह राशि वाले को कौन सा पौधा लगाना चाहिए?

सिंह राशि के स्वामी सूर्य भगवान हैं इन्हें ग्रहों के मंत्रीमण्डल में राजा का स्थान प्राप्त है। यह अग्नि तत्व की राशि है। ये समस्त संसार को जीवन प्रदान करने वाले हैं। इस राशि के जातक को जामुन, बरगद, लाल गेंदा, नीम, गुड़हल, पलास, पाकड़ आदि के पेड़-पौधों में से एक पौधा या अनेक पौधे लगाने चाहिए। ऐसा करने से सूर्य मजबूत होते हैं जो जातक के जीवन में नयी उमंग, वृद्धि, सुख, सौभाग्य लेकर आते हैं।

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कन्या राशि वाले को कौन सा पौधा लगाना चाहिए?

कन्या राशि के स्वामी बुध हैं। ग्रहोें के मंत्रीमण्डल में इन्हें राजकुमार की पदवीं दी गयी है। यह पृथ्वी तत्व की राशि है। इस राशि के जातक को गुलाब, कटहल, अंगूर, बांस, शीशम, चमेली, ढाक आदि में से एक या अनेक पेड़ लगाने चाहिए। इस प्रकार पेड़ लगाने से कुण्डली में बुध ग्रह बलवान होते हैं। जो प्रसन्न होकर जातक के जीवन में धन, सौभाग्य, बुद्धिमत्ता लाते हैं, व्यवसाय में उन्नति कराते हैं, तथा वात संबंधी रोगों को नष्ट करते हैं।

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तुला राशि वाले को कौन सा पौधा लगाना चाहिए?

तुला राशि के स्वामी सभी प्रकार की भौतिक सुख प्रदान करने वाले शुक्र ग्रह हैं। इनके बारे में कहा जाता है ‘‘दैत्यानां परमं गुरूम....’’ अर्थात ये असुरों के गुरू  कहलाते हैं। यह वायु तत्व की राशि है। इस राशि के जातकों को चमेली, नींबू, गूलर, अर्जुन, लौंग व शीशम आदि में से एक या अनेक पेड़ लगाने चाहिए। ऐसा करने से जीवन में सभी प्रकार की सुख-सुविधाऐं प्राप्त होती हैं। सुन्दर पत्नि की प्राप्ति होती है।

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वृश्चिक राशि वाले को कौन सा पौधा लगाना चाहिए? वृश्चिक राशि का पौधा कौन सा है?

वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल ग्रह हैं। ग्रहों के मंत्रीमण्डल में इन्हें सेनापति का पद प्राप्त है। यह जल तत्व की राशि है। इन्हें ‘‘धरणीगर्भ सम्भूत....'' यानि पृथ्वी का पुत्र कहा जाता है। इस राशि के जातकों को बांस, गन्ना, लाल गुलाब, लाल चंदन, तुलसी, नीम आदि के एक या अनेक पेड़-पौधे लगाने चाहिए। ऐसा करने से जातक की जन्मकुण्डली में मंगल मजबूत होते हैं, यदि जातक पर मांगलिक का प्रभाव है तो उसका भी प्रभाव भी कम होता है। सम्मान, प्रशंसा व प्रतिष्ठा में भी वृद्धि करते हैं।

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धनु राशि वाले को कौन सा पौधा लगाना चाहिए?

धनु राशि के स्वामी गुरू बृहस्पति ग्रह हैं। ग्रहों के मंत्रीमण्डल में ये मंत्री के पद को सुशोभित करते हैं। इन्हें ‘‘देवानां च ऋषीणां.....’’ देवताओं का गुरू माना जाता है। यह अग्नि तत्व की राशि कहलाती है। इस राशि के व्यक्तियों को शीशम, कदम्ब, बरगद, पपीता, पीला चंदन, कटहल, पीपल आदि के पेड़-पौधों में से एक या अनेक पेड़ लगाने चाहिए। ऐसा करने से गुरू मजबूत होते हैं और अपनी शुभता में वृद्धि करते हैं। जीवन में देवत्व का उदय होता है और मन भौतिकता की क्षणभंगुरता से दूर होता है।


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मकर राशि वाले को कौन सा पौधा लगाना चाहिए?

मकर राशि के स्वामी शनि ग्रह हैं इन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। यह राशि पृथ्वी तत्व की राशि कहलाती है। ये ‘‘रविपुत्र यमाग्रजम...’’ अर्थात सुर्य के पुत्र हैं। ग्रहों के मंत्रीमंडल में ये एक सैनिक या सेवक की भूमिका निभाते हैं। कुंडली में शनि के बुरे प्रभावों को समाप्त करने के लिए शमी का पेड़ सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, इस वृक्ष को तुलसी की तरह गमले में लगाकर शनिवार के दिन या नित्य इसकी पूजा करनी चाहिए। अन्य वृक्ष पीपल, अमरूद, सतावर, बेल, बबूल, आम आदि हैं इन्हें भी लगाकर लाभ प्राप्त किया जा सकता है। कुंडली में शनि की ढैया या साढे साती के प्रभाव को कम करने के लिए शमी के वृक्ष के साथ इन पेड़ों को भी लगाया जा सकता है।

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कुंभ राशि वाले को कौन सा पौधा लगाना चाहिए? 
कुंभ राशि का पेड़ कौन सा है?

कुंभ राशि के स्वामी भी शनि ग्रह हैं इन्हें न्याय का  देवता भी कहा जाता है। यह राशि वायु तत्व की राशि कहलाती है। शनि की शुभता प्राप्त करने के लिए उपरोक्त मकर राशि के वृक्षों के साथ-साथ कदंब व कमल के वृक्ष व पौधे लगाने चाहिए। घर के आंगन में तुलसा जी के साथ शमी का पेड़ लगाये और इनके सामने नित्य दीया जलाने से जातक की धन, प्रतिष्ठा, सम्मान में वृद्धि होती है और शनि देव का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।


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मीन राशि वाले को कौन सा पौधा लगाना चाहिए? मीन राशि का पेड़ कौन सा है?

मीन राशि के स्वामी भी गुरू बृहस्पति ग्रह हैं। ग्रहों के मंत्रीमण्डल में ये मंत्री के पद को सुशोभित करते हैं। इन्हें देवताओं का गुरू भी माना जाता है। यह राशि जल तत्व की राशि है। इस राशि वाले व्यक्तियों को पीपल, केले का पेड़, अमरूद, तुलसा जी, व पीले रंग के फूल वाले पेड़ लगाने चाहिए। ऐसा करने से जातक की जन्मकुण्डली में गुरू ग्रह की स्थिति मजबूत होती है। ये वृक्ष मीन राशि के जातक को कफ से संबंधित रोग जैसे नजला, जुकाम, खांसी आदि से भी राहत दिलाते हैं साथ ही ये जातक को गुरू ग्रह से संबंधित लाभ प्रदान कराते हैं।

साथियों इस प्रकार आप अपनी राशि अनुसार पेड-पौधे लगाकर जीवन में तरक्की, सुख, वैभव, स्वास्थ्य आदि लाभ प्राप्त कर सकते हैं। 

तो आपको ये आलेख कैसा लगा कमैंटस करके बताना न भूलें, अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए नमस्कार जयहिन्द।

प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, वास्तुविद्, एस्ट्रोलोजर   
sanjay.garg2008@gmail.com

VastuTips for Marriage:शीघ्र विवाह के लिए इस दिशा में सोयें

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यदि वास्तु शास्त्र शिल्प कला की आंखे हैं तो यह हमें जीवन जीने के सूत्र बताने वाला आईना भी है। वास्तु शास्त्र हमें बताता है कि घर के किस हिस्से में स्टडी रूम होना चाहिए, किस हिस्से में बैडरूम होना चाहिए, किस हिस्से में अतिथियों का कमरा हों, किसे हिस्से में नौकरों के क्वार्टर हो आदि। इस प्रकार वास्तु शास्त्र हमें यह भी बताता है कि घर के किस हिस्से में जल्द विवाह के इच्छुक लडके-लड़कियों का कमरा बनाना चाहिए। वास्तु शास्त्र एक विज्ञान भी है क्योंकि जब यह बताता है कि ‘‘ऐसा होना चाहिए!’’ तो ऐसा क्यों होना चाहिए उसके पीछे का ‘‘कारण’’ भी बताता है।


वास्तु शास्त्र कहता है कि घर की दसों दिशाओं में संतुलन होना चाहिए। क्योंकि हर दिशा में किसी ना किसी देवता का वास होता है। जैसे घर के ईशान हिस्से में गुरू बृहस्पति देव का निवास होता है तो वहीं उत्तर दिशा को कुबेर देवता यानि धन के देवता संभालते हैं। वायव्य दिशा यानि नोर्थ-वेस्ट को चंद्र देव संभालते हैं। जो हमारी सामाजिकता, प्रतिष्ठा यानि गुडविल का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहां पर हमारे अध्ययन का विषय वायव्य कोण (नोर्थ वेस्ट) है।


घर का सबसे अहम हिस्सा ईशान कोण (नोर्थ-ईस्ट) होता है यह घर के पुरूष संतान के जन्म और उनके चरित्र को तो प्रभावित करता ही है साथ ही घर के स्वामी व धन-धान्य को भी प्रभावित करता है। ईशान दिशा के बाद घर की सबसे महत्वपूर्ण दिशा वायव्य कोण हैं। जिसमें रहने से, आफिस बनाने से गृहस्वामी को अत्यंत लाभ होता है और तरक्की मिलती है।

शीघ्र विवाह के लिए इस दिशा में सोयें 


उत्तर और वायव्य दिशाएं गतिशील दिशाएं मानी जाती हैं। उत्तर दिशा कुबेर का स्थान तो है ही साथ ही यह दिशा घर के सबसे छोटे सदस्य का भी प्रतिनिधित्व करती है, जिन्हें हम कुबेर (यदि लड़का है) या लक्ष्मी (यदि लड़की है) का रूप मान सकते हैं। यदि बचपन से ही इस दिशा का कमरा घर के सबसे छोटे सदस्य के लिए निर्धारित कर दिया जाये तो उसकी शिक्षा आदि में कोई समस्या बड़े होने तक भी नहीं आती। यदि आपके पास सिर्फ एक कमरा है या इस दिशा में कोई कमरा नहीं है तो आप जिस भी कमरे में सोते हैं उस कमरे के वायव्य हिस्से में घर के छोटे सदस्य का पलंग बिछाना चाहिए।


घर के विवाह योग्य लड़के या लड़की का कमरा उत्तर (नोर्थ) या वायव्य दिशा (नोर्थ-वेस्ट) में बनाना चाहिए ऐसा करने से उसके शीघ्र विवाह का योग बनता है। उस कमरे की इस दिशा में राम-सीता, शिव-पार्वती के विवाह की तस्वीरें लगा दी जाये तो और भी उत्तम है, उनके शीघ्र विवाह के योग बनते हैं।

तो साथियों आपको ये आलेख कैसा लगा कमैंटस करके बताना न भूले, अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए नमस्कार जयहिन्द।
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, वास्तुविद्, एस्ट्रोलोजर   
sanjay.garg2008@gmail.com

कुत्ते भी देते हैं भविष्य का संकेत ! (शकुन विज्ञान)

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हमारे ग्रंथ कहते ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की तो सबसे पहले कीट-पतंगों और जानवरों को बनाया था, ताकि उनके गुण-अवगुण, व आदतों को परख सकें। उसके बाद अच्छी प्रकार शोध करके उन्होंने इंसान का निर्माण किया ताकि वह ब्रह्माण की एक श्रेष्ठ रचना कर सकें। इस किंदवती को और भी बल तब मिल जाता है जब हम वैज्ञानिकों को देखते हैं, कोई दवा या शोध वह सबसे पहले पशु-पक्षियों पर ही करते हैं उसके परिणाम देखकर ही वह उसका परीक्षण इंसानों पर करते हैं। हमारे प्राचीन शोधकर्ता ऋषियों और महर्षियों ने भी जानवरों की गतिविधियों को अच्छे से देखा और फिर एक जानवरों पर आधारित एक विज्ञान बनाया जिसे शकुन विज्ञान कहा गया। इनमें उल्लू तंत्र, कौवा तंत्र, आदि भी आते हैं जिनमें से अधिकतर तंत्र के ग्रंथ आक्रांताओं ने जला डाले। श्रुत परम्परा से जो कुछ शेष बचा है तो उनमें से काफी कुछ शोध करने लायक है, उसे आंखे मूंदकर स्वीकार नहीं किया जा सकता। कुत्ते से संबंधित शकुन मैं आपको अंधविश्वासी बनाने के लिए नहीं दे रहा, बल्कि आपके ज्ञान में वृद्धि करने के लिए दे रहा हूं, मेरी अपनी व्यक्तिगत राय है कि इन पर आंख मिचकर विश्वास न किया जाये।


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यह निर्विवाद है कि पशु-पक्षी हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं, इनमें खतरों या स्थितियों को पहले ही पहचान करने की अद्भुत शक्ति होती है, ये भी सत्य है। साथ ही ये हमारे मूक (गूगे) समर्थक व हमारे कल्याण की सोचने वाले होते हैं परन्तु हम इनकी बातों और इशारों को नहीं समझ पाते। आइये समझते हैं कुत्ते आपसे क्या कहना चाहते हैं।


कुत्ते से जुड़े कुछ शकुन-अपशकुन/कुत्ते के शगुन/कुत्ते के शुभ संकेत क्या हैं?


-खलियान या अनाज संग्रह के स्थान को यदि कुत्ता अपने पंजे से खोदने लगे तो यह धन प्राप्ति का संकेत माना जाता है।

-यदि आप यात्रा पर जा रहे हैं आपका पालतू कुत्ता आपके पैरों पर लौटने लगे या वह खुश दिखायी दे तो यह आपके कार्य के सफल होने का संदेश है।

-संतान की प्राप्ति के इच्छुक पति-पत्नि को यदि कुत्ता घर के बाहर से मुंह में फल या सब्जी का टुकड़ा लिये हुए मिले तो यह आपको पुत्र प्राप्ति का संकेत है।


कुत्ते के अशुभ संकेत क्या हैं?


-यदि आप कहीं बैठे हुए किसी काम के बारे में सोच रहे हैं और कुत्ता अपना सिर पिछले पंजे से खुजलाये तो आपको सोचा हुआ कार्य पूरा होता है।

-परन्तु यदि कुत्ता अपने बाएं पैर से अपना बायीं ओर के हिस्से को खुजलाये जो माना जाता है आपका सोचा हुआ कार्य पूरा नहीं होगा।

-कहा जाता है यदि स्वस्थ कुत्ता उल्टी करने लगे तो अशुभ की सूचना देता है। 

-कहा जाता है कि परीक्षा या साक्षात्कार के लिए जाते समय यदि आपके बायीं ओर से कुत्ता गुजरे तो विफलता का संकेत मिलता है।

कुत्तों का रोना क्या दर्शाता है? 
-कुत्ते का रोना कभी भी अच्छा नहीं माना जाता है। यदि कुत्ता किसी के घर के पास रोये तो घर के स्वामी को मृत्यु होती या फिर मृत्युतुल्य कष्ट होता है।

आओ!! ''स्वप्न-संसार'' के रहस्य को समझे!

-यदि अनेक कुत्ते एक साथ रोये तो गली या मौहल्ले के किसी बड़े व्यक्ति की मृत्यु का संकेत हो सकता है।

-यदि पूंछ कटा या कान कटा कोई कुत्ता किसी ‘रोगी या बीमार’’ को खुजली करता हुआ दिखायी दे तो यह अच्छा शकुन नहीं माना जाता है।

-यदि किसी घर का पालतू कुत्ता घर की दीवार को खोदने का प्रयास करें तो घर में चोरी होने का भय होता है।

-यदि कुत्ता अपने मालिक को देखकर बार-बार भौंके तो मालिक के बीमार होने का संकेत हो सकता है।

-किसी यात्रा पर जाते समय यदि आपका कुत्ता आपके दोनों हाथों को सूघें तो आपको यात्रा में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।

-यदि स्वस्थ कुत्ते की एक आंख से पानी गिरें तो घर में कोई दुखद घटना हो सकती है।

-यदि कुत्ता जूते को मुंह में दबाकर भागे तो धन हानि का भय होता है।

तो साथियों आपको ये ये आलेख कैसा लगा कमैंटस करके बताना न भूले, अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए नमस्कार जयहिन्द।

प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, वास्तुविद्, एस्ट्रोलोजर   
sanjay.garg2008@gmail.com

पापांकुशा एकादशी की व्रत कथा!

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अर्जुन ने इंदिरा एकादशी कथा सुनने के बाद श्रीकृष्ण से कहा! हे जगदीश आपने मुझे इंदिरा एकादशी का कथा सुनायी अब आप मुझे आश्विनी मास की एकादशी के बारे में बताये, इस एकादशी का क्या नाम है? और इस एकादशी का व्रत करने से क्या फल मिलता है? इस एकादशी की कथा भी मुझे सुनाये।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा-हे कुन्ती पुत्र! आश्विनी माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है, इस व्रत को करने से मनुष्य के सब पाप नष्ट हो जाते हैं। मनुष्य को कठोर तप करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वो फल भगवान गरूड़ध्वज को नमस्कार करने मात्र सेे प्राप्त हो जाता है। मनुष्य ज्ञात और अज्ञात रूप से अनेक पाप करते हैं परन्तु भगवान विष्णु को नमस्कार करने मात्र से ही उसके सब पाप नष्ट हो जाते हैं। भगवान विष्णु का कीर्तन करने से मनुष्य को सब तीर्थों के पुण्य का फल अनायास ही मिल जाता है। 

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा-

प्राचीन काल में क्रोधन नाम का एक बहेलिया विंध्य पर्वत पर रहता था। नाम के अनुरूप वह अपने कर्माें से भी अत्यंत क्रूर था। उसने अपना सारा जीवन पशु-पक्षियों की हत्या, लूटपाट, मद्यपान और गन्दी संगति में बैठकर पाप कर्मों में व्यतीत किया था। जब उसका अंतिम समय आया तो यमराज के दूत उसे लेने आये, उन्होंने बहेलिये से कहा-कल तुम्हारे जीवन का अंतिम दिन है, हम तुम्हें कल लेने के लिए आयेंगे। उन की बात सुनकर क्रोधन बहुत डर गया और वह भागकर महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा। वहां पहुंचकर वह अंगिरा ऋषि के चरणों में गिर गया और उसने यमराज के दूत वाली बात महर्षि को बतायी और बोला-हे ऋषि श्रेष्ठ! मैंने पूरे जीवन पापकर्म किये हैं, अब मेरा अंतिम समय आ गया है, कृप्या कोई ऐसा उपाय बताइयें जिससे मेरे सारे पापकर्म मिट जाये और मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो।

उसके अत्यधिक निवेदन करने पर महर्षि अंगिरा ने उसे आश्विनी शुक्ल की पापांकुशा एकादशी का व्रत करने के लिए कहा और उसे व्रत करने की विधि भी बतायी।

महर्षि अंगिरा के बताये अनुसार बहेलिये क्रोधन ने पापांकुशा एकादशी का व्रत किया। जिससे उसके सारे पाप नष्ट हो गये और इस व्रत के बल पर भगवान  विष्णु की कृपा से वह विष्णु लोक को गया। यमराज के दूत जब उसे लेने आये तो उन्होंने भी इस चमत्कार को देखा और वह बहेलिये को लिए बिना ही यमलोक वापस चले गये। बोलों भगवान विष्णु की जय। श्री हरि नमः।

तो साथियों आपको ये कथा कैसी लगी कमैंटस करके बताना न भूले, अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए नमस्कार जयहिन्द।

प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, वास्तुविद्, एस्ट्रोलोजर