चाणक्य ने बताया कौन वास्तव में भाई है!

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चाणक्य ने बताया कौन वास्तव में भाई है!


चाणक्य नीति पर अनेक आलेख मैंने पोस्ट किये हैं वे आलेख ज्ञान व नीति की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं उन्हें भी पढ़कर आप अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकते हैं। जिनके लिंक आपको इसी आलेख में मिल जायेंगे। ये नया आलेख "चाणक्य ने बताया कौन वास्तव में भाई है" आपके सम्मुख प्रस्तुत है-

चाणक्य कहते हैं कि कैसे देश में निवास नहीं करना चाहिए-‘‘जिस देश में सत्कार, जीविका, विद्या प्राप्ति का लाभ और बंधु-बांधव नहीं हैं ऐसे स्थान पर नहीं रहना चाहिए।’’ (1,9)

चाणक्य के अनुसार किसे बन्धु समझना चाहिए-‘‘बीमार पड़ने पर, दुःख पहुंचने पर, अकाल के समय, बैरियों से कष्ट पड़ने पर, राजा, कचहरी और मर्घट में जो सहायता देता है वहीं बन्धु समझा जाना चाहिए।’’ (1,12)

महात्मा चाणक्य कहते हैं कि-‘‘श्लोक का नित्य प्रति पड़ना चाहिए, यदि पूरा नही तो आधा और यदि आधा नही तो चौथाई  तो अवश्य पढ़ें। इस प्रकार दान और अध्ययन आदि शुभ कार्यों के द्वारा दिन को अच्छी प्रकार से बिताना चाहिए।’’ (2,13)

चाणक्य कहते हैं कि निम्न हमें बिना आग के जलाते हैं-‘‘स्त्री से वियोग, दुष्टों की सभा में जाना, अपने जनों से अपमान, कर्जा, खोटे लोगों व राजा की सेवा और गरीबी हमें आग के बिना ही जलाते हैं।’’ (2,14)

कोटिल्य बताते हैं कि किसका बल कौन सा है-‘‘ब्राह्मण का बल विद्या, राजा (क्षत्रिय) का बल सेना, वैश्य का बल धन और सुख प्राप्त करना और शुद्रों का बल इनकी सेवा करना है।’’ (2,16)

महात्मा कोटिल्य बताते हैं कि कौन किसको कब छोड़ देता है-‘‘प्रजा शक्तिहीन राजा को, पक्षी फलहीन पेड़ को, वेश्या धनहीन मनुष्य को और भोजन के बाद अतिथि घर को छोड़ देता है।’’ (2,17)

चाणक्य बताते हैं कि किसके साथ कौन शोभा देता है-‘‘बराबर वालों से मित्रता शोभा देती है, राजाओं की नौकरी शोभा देती है, व्यापार में व्यवहार शोभा देता है, और घर के अंदर सुन्दर स्त्री शोभा देती है।’’ (2,20)

चाणक्य समझाते हैं कि-‘‘कन्या को श्रेष्ठ कुल में देना चाहिए, पुत्र का विद्वान बनाना चाहिए, शत्रु को बुरे व्यसनों में फंसाना चाहिए और मित्र को धर्म के कार्यों में लगाना चाहिए।’’ (3,3)

चाणक्य विद्याहीन मनुष्य के बारे में बताते हैं कि-’’विद्याहीन मनुष्य श्रेष्ठ कुल में जन्म लेकर तथा रूप यौवन संपन्न होते हुए भी उसी प्रकार शोभा को प्राप्त नहीं होता, जिस प्रकार गन्धहीन टेसू का फूल अच्छा नहीं लगता।’’ (3,8)

चाणक्य बताते हैं कि किसको क्या शोभा देता है-‘‘कोयल का मीठा स्वर ही उसकी शोभा है, कुरूप मनुष्य की विद्या ही शोभा है, तपस्वियों को क्षमा करना ही शोभा देता है और पातिव्रत्य का धर्म स्त्री को शोभा देता है।’’ (3,9)

नीतिज्ञ कुटिल बताते हैं किसको कब छोड़ देना चाहिए-‘‘कुल की रक्षा के लिए एक को छोड़ देना चाहिए, ग्राम की रक्षा के लिए एक कुल को छोड़ देना चाहिए और देश के हित के लिए ग्राम को छोड़ देना चाहिए तथा आत्मा के लिए पृथ्वी को ही छोड़ देना चाहिए।’’ (3,10)

महान नीतिज्ञ चाणक्य कहते हैं कि ‘अति सर्वत्र वर्जित’ होना चाहिए क्योंकि-‘‘अति सुन्दरता के कारण सीता का हरण हुआ, अति गर्व करने के कारण रावण मारा गया और बहुत दान देने के कारण बलि को पाताल जाना पड़ा, इसी से उनका मान घटा। इसी कारण ‘‘अति’’ को सब जगह छोड़ देना चाहिए।’’ (3,12)

चाणक्य समझाते हैं कि निम्न परिस्थितियों में भाग जाना ही श्रेष्ठ है-अकाल पड़ने पर, उपद्रव (दंगा) उठने पर, शत्रु के आक्रमण करने पर, बुरे लोगों का साथ होने पर जो भाग जाता है वहीं जीवित रहता है।’’ (3,19)

चाणक्य निम्न मनुष्यों का जन्म व्यर्थ मानते हैं-‘‘जो मनुष्य जन्म पाकर भी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इनमें से कुछ भी नहीं रखते उनका जन्म लेने का फल केवल मृत्यु ही होता है।’’ (3,20)

चाणक्य कहते हैं कि लक्ष्मी कहां निवास करती हैं-‘‘जहां अन्न भरपूर एकत्र रहता है, जहां मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहां स्त्री-पुरूषों में कलह (झगड़ा) नहीं होता, वहां लक्ष्मी जी अपने आप ही विराजमान होकर शोभा देती हैं।’’ (3,21)


चाणक्य पुत्र के संबंध में एक महत्वपूर्ण शिक्षा देते हुए कहते हैं कि-‘‘पुत्र का पांच वर्ष तक प्रेम करना चाहिए, और फिर दस वर्ष तक यानि पन्द्रह साल का होने तक उसे ताडना में रखें उस पर कड़ी निगरानी रखें, इसके पश्चात सोलह वर्ष का होने के बाद पुत्र के साथ एक मित्र जैसा व्यवहार करें।’’ (3,18)
संकलन-संजय कुमार गर्ग
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