‘विदुर नीति’ महाभारत का एक अत्यंत प्रसिद्ध प्रसंग है। इसमें महात्मा विदुर ने राजा धृतराष्ट्र को कल्याण करने वाली अनेक बातें बतायी थीं। महाभारत में उद्योगपर्व के 33 वें से 40 वें अध्याय तक आठ अध्याय इसी प्रसंग से संबंधित हैं। इन आठ अध्यायों में महात्मा विदुर ने राजा धृतराष्ट्र को नीति, धर्म, सत्य, परोपकार, राजधर्म आदि के बारे में बड़े ही सुन्दर व मार्मिक ढ़ंग से समझाया है। विदुर नीति पर मैं पहले ही पांच आलेख लिख चुका हूं जिनके लिंक आपको इसी पोस्ट में मिल जायेंगे। इस छठे आलेख में नये श्लोकों को सम्मिलित किया गया है पहले आलेखों के श्लोकों को इस पोस्ट में सम्मिलित नहीं किया गया है। आइये पढ़ते हैं महात्मा विदुर का नीति संबंधी ज्ञान-
विदुर बताते हैं, कौन से व्यक्ति अपनी आयु पूर्ण नहीं कर पाते!
विदुर कहते हैं कि ‘‘जो मनुष्य जैसा बर्ताव करे, उसके साथ वैसा ही बर्ताव करना चाहिए, यही नीति धर्म है। कपट का आचरण करने वाले के साथ कपटपूर्ण बर्ताव करें और अच्छा बर्ताव करने वालों के साथ अच्छा बर्ताव ही करना चाहिए।’’ (5, 7)
विदुर बताते हैं कि ‘‘बुढ़ापा रूप का, आशा धैर्य का, मृत्यु प्राणों का, असूया धर्माचरण का, काम लज्जा का, नीच पुरूष की सेवा आचरण का, क्रोध लक्ष्मी का और अभिमान सर्वस्व का नाश कर देता है।’’ (5, 8)
धृतराष्ट्र ने विदुर से पूछा जब वेदों में पुरूष को सौ वर्ष की आयु वाला बताया है तो वह किस कारण से अपनी आयु पूर्ण नहीं कर पाता है? महाराज विदुर ने उत्तर दिया-राजन! ‘‘अत्यंत अभिमान, अधिक बोलना, त्याग का अभाव, क्रोध, अपना ही पेट पालने की चिन्ता और मित्र से द्रोह ये छः तीखी तलवारें देह धारियों की आयु को काटती हैं। ये ही मनुष्य का वध करती हैं, मृत्यु नहीं।’’ (5, 9-10-11)
विदुर बताते हैं-‘‘जो अपने ऊपर विश्वास करने वाली स्त्री के साथ समागम करता है, जो गुरू स्त्रीगामी है, ब्राहमण होकर शुद्र की स्त्री से संबंध रखता है, शराब पीता है तथा जो बड़ों पर हुक्म चलाने वाला है, दूसरों की जीविका नष्ट करने वाला है, ब्राह्मण से सेवा कार्य कराने वाला है और जो शरणागत के साथ हिंसा करने वाला है-ये सब के सब ब्रह्महत्यारे के समान हैं, इनका संग हो जाने पर प्रायश्चित करना चाहिए, ऐसी वेदों की आज्ञा है।’’ (5, 12-13)
विदुर बताते हैं कि कौन से व्यक्ति स्वर्गगामी होते हैं-बड़ों की आज्ञा मानने वाला, नीतिज्ञ, दाता, यज्ञ शेष अन्न भोजन करने वाला, हिंसा रहित, अनर्थकारी कार्यों से दूर रहने वाला, कृतज्ञ, सत्यवादी और कोमल स्वभाव वाला विद्वान स्वर्गगामी होते हैं।’’ (5, 14)
ऋषिवर आगे कहते हैं कि हे राजन! सदा प्रिय वचन बोलने वाले मनुष्य तो सहज में ही मिल सकते हैं, किन्तु जो अप्रिय होता हुआ हितकारी हो, ऐसे वचन के बोलने वाले और सुनने वाले दोनों ही दुर्लभ होते हैं।’’ जो धर्म का आश्रय लेकर तथा स्वामी को यह प्रिय लगेगा या नहीं लगेगा-इसका विचार छोड़कर अप्रिय होने पर भी हित की बात कहता है, उसी से राजा को सच्ची सहायता मिलती है।’’ (5, 16-17)
विदुर बताते हैं कि ‘‘कुल की रक्षा के लिए एक मनुष्य का, ग्राम की रक्षा के लिए कुल का, देश की रक्षा के लिए एक गांव का और आत्मा के कल्याण के लिए सारी पृथ्वी का त्याग कर देना चाहिए।’’ (5, 17) बिल्कुल ऐसी ही बात चाणक्य नीति के अध्याय 3 के 10 वें श्लोक में भी कही गयी है।
विदुर चेतावनी देते हुए कहते हैं कि ‘‘सावधान मनुष्य विश्वास करके सायंकाल में कभी किसी दूसरे अविश्वस्त मनुष्य के घर न जाये, रात को छिपकर चैराहे पर न खड़ा हो और राजा (बलवान व्यक्ति) जिस स्त्री को ग्रहण करना चाहता हो उसे प्राप्त करने का यत्न न करें।’’ (5, 28)
महात्मा विदुर बताते हैं कि निम्न के साथ लेन-देन (रूपये पैसे का लेनदेन) का व्यवहार न करें-‘‘अधिक दयालु राजा, व्यभिचारिणी स्त्री, राजकर्मचारी, पुत्र, भाई, छोटे बच्चों वाली विधवा, सैनिक और जिसका अधिकार छीन लिया गया हो, पुरूष इन सबके साथ लेन-देन का व्यवहार न करें।’’ (5, 30)
विदुर बताते हैं कि नित्य स्नान करने से क्या लाभ मिलते हैं-‘‘नित्य स्नान करने वाले मनुष्य को बल, रूप, मधुर स्वर, उज्ज्वल वर्ण, कोमलता, सुगन्ध, पवित्रता, शोभा, सुकुमारता और सुन्दर स्त्रियां ये दस लाभ प्राप्त होते हैं।’’ (5, 33)
विदुर बताते हैं कि कम भोजन करने से निम्न लाभ प्राप्त होते हैं-‘‘आरोग्य, आयु, बल और सुख तो मिलते ही हैं, उसकी संतान सुन्दर होती है तथा ‘यह बहुत खाने वाला है’ ऐसा कहकर लोग उस पर आक्षेप नहीं करते।’’ (5, 35)
विदुर आगे कहते हैं कि ‘‘जो अर्थ की पूर्ण सिद्धि चाहते हो, उसे पहले धर्म का ही आचरण करना चाहिए। जैसे स्वर्ग से अमृत दूर नहीं होता, उसी प्रकार धर्म से अर्थ को अलग नहीं किया जा सकता।’’ (5, 48)
विदुर इसी बात का आगे बढ़ाते हुये कहते हैं कि ‘‘जो क्रोध और हर्ष के उठे हुए वेग को रोक लेता है और आपत्ति में भी धैर्य को नहीं खो बैठता, वहीं राजलक्ष्मी का अधिकारी होता है।’’ (5, 51)
संकलन-संजय कुमार गर्ग
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