चोट करते हैं फूल भी...........मुक्तक और रुबाइयाँ

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चोट करते हैं फूल भी.....
चोट  करते हैं  फूल भी यों तो
शूल  में  भी चूभन नहीं होती
बाज-औकात  चांद  तपता है
चाँदनी गुलबदन नहीं होती।
-सोम ’’अधीर’’ 

आईना धूप का दरया में दिखाता है मुझे
मेरा दुश्मन मेरे लहजे में  बुलाता है मुझे
आंसुओं से मेरी तहरीर नहीं मिट सकती
कोई कागज हूं के पानी से डराता है मुझे।
-बशीर बद्र

आकाश   के   फूलों  से   न   श्रंगार  करो
तुम स्वर्ग  नहीं,  भू  को  नमस्कार करो
भगवान  को   दिन-रात   रिझाने  वालों
भगवान के बन्दों से भी कुछ प्यार करो
-उदयभानु हंस

ये क्या सितम है कि एहसासे-दर्द भी  कम है
शबे-फिराक*  सितारों   में    रोशनी   कम  है
न  साथ  देंगी   ये   दम  तोड़ती   हुई   शमअें
नये   चिराग  जलाओ   कि  रोशनी  कम  है।
विछोह की रात*
-शाहिद सिदकी

 दुनिया के  सितम  याद, न  अपनी  ही वफा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मौहब्बत के सिवा याद
 मुददत  हुई   इक   हादिसा-ए-इश्क   को   लेकिन
अब  तक है  तेरे  दिल  के  धड़कने की सदा याद
-जिगर मुरादाबादी

शबाब आया किसी बुत पर फिदा  होने का वक्त आया
मेरी  दुनिया   में  बंदे  के  खुदा  होने  का  वक्त  आया
हमें   भी  आ   पड़ा   है   दोस्तों  से   काम  कुछ  यानी
हमारे   दोस्तों   के   बेवफा   होने    का   वक्त   आया।
-अख्तर
संकलन-संजय कुमार गर्ग 
 (चित्र गूगल-इमेज से साभार!)

मुक्तक/शेरों-शायरी के और संग्रह 
उर्दू के मशहूर शायरों की शायरी
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उर्दू के मशहूर शायरों की शायरी!प्यास वो दिल की बुझाने कभी.....मुक्तक और रुबाइयाँ !
बांह में भरकर धरा को...मुक्तक और रुबाइयाँ
अक्ल पे मरदों की पड़ गया...मुक्तक और रुबाइयाँ
हजारों ख्वाहिशें ऐसी.....मुक्तक और रुबाइयाँ
मैं अकेला ही चला था जानिबे-मंजिल....मुक्तक और रूबाइयां
अपने हाथों की लकीरों मे बसा.....मुक्तक और रूबाइयां
दिल की चोटों ने कभी चैन से..... मुक्तक और रुबाइयाँ
चोट करते हैं फूल भी...........मुक्तक और रुबाइयाँ
यूं ही बेहिसाब न फिरा करो..... मुक्तक और रूबाइयां
कभी बिछुड़े तो कभी साथ.......मुक्तक और रुबाईयाँ
आकर मेरी मजार पर तूने जो मुस्करा.......... मुक्तक और रुबाईयाँ
खुश्बू की तरह आया वो........मुक्तक और रुबाईयाँ
मुसाफिर राह में हो शाम गहरी.....मुक्तक और रुबाइयाँ
मुझे उठाने आया है वाइजे-नादां..मुक्तक और रूबाइयां
याद आएंगे जमाने को मुक्तक और रुबाईयाँ
देखे 'जिन्दगी' के विभिन्न 'रूप', शायरों-कवियों की 'नजरों' से!

12 टिप्‍पणियां :

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-03-2015) को "ख्वाबों में आया राम-राज्य" (चर्चा अंक - 1918) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आदरणीय शास्त्री जी! ब्लॉग को सम्मिलित करने के लिए सादर धन्यवाद!

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  2. chचोट करते हैं फूल भी यों तो
    शूल में भी चूभन नहीं होती..... सुंदर संकलन ..

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    उत्तर
    1. आदरणीय नीरज जी ! ब्लॉग पर आने के लिए सादर धन्यवाद!

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  3. उत्तर
    1. आदरणीय ओंकार जी ! ब्लॉग पर आने के लिए सादर धन्यवाद!

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  4. बहुत ही लाजवाब मुक्तक हैं ...
    सच कहा अहि कभी कभी फूल भी चोट करते हैं ...

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    1. आदरणीय दिगंबर जी, ब्लॉग को पढ़ने व् कमेंट्स करने के लिए सादर धन्यवाद!

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  5. उत्तर
    1. ब्लॉग को पढ़ने व् कमेंट्स करने के लिए सादर धन्यवाद! संजय भास्कर जी!

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  6. उत्तर
    1. ब्लॉग को पढ़ने व प्रतिक्रिया देने के लिए सादर धन्यवाद! सुनील जी!

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