श्रेष्ठ हिन्दी मुक्तक कलेक्शन!

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 (1)

हम राही मुर्दा   मंजिल  तक खुद का  ढोकर लाये हैं
जब से हमने होश सम्भाला हम महफिल में छाये हैं
जिनको हमने अपना समझा लोग वही छल कर बैठे
अपने  पर  भी  शक  होता है,  इतने  धोखे  खाये हैं।
-वीरेन्द्र मिश्र

     (2)

और वे ख्वाब जिन्हें खुद तू यहां छोड़ गयी,
एक  बच्चे  की  तरह  उंगली  पकड़ लेते हैं,
करते हैं जिद  कि उन्हें तेरे घर सुला आऊं,
डांटता  हूं  तो  मुझे  देख  के   रो   देते  हैं।
-गोपाल दास नीरज

    (3)

मैं रहा सबकी तरह, सबसे निराला न हुआ
हुआ  अंगूर,  मगर  ढलके  मैं हाला न हुआ
जब  तलक  तूने  जलाई न  प्यार की बाती
अंधेरे  घर  में  कभी दोस्त उजाला न हुआ।
-शिव बहादुर सिंह भदौरिया     
                       
    (4)

होंठ  कंप-कंप  गये,  पर  शब्द  नहीं कढ़ पाये
मांगने   को   हुए   पर, हाथ   नहीं   बढ़   पाये
दिल  धड़कता रहा भौंहो पै शिकन तक न पड़ी
चाह   के   चित्र   थे,  पुतली पै  नहीं चढ़ पाये।
-शिव मंगल सिंह ‘सुमन’

     (5)

क्यों उषा की लालिमा इतनी निराली है
क्योंकि उसकी रात की पोषाक काली है
सौत जैसा डाह आपस में लिये, फिर भी
मौत  ने  ही  जिन्दगी में जान डाली है।
-शिशुपाल सिंह ‘शिशु’

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 (6)

सूर्य   बने   मधु   का   विक्रेता,   सिंधु   बने   घट,  जल हाला
बादल   बन-बन   आये   साकी,   भूमि   बने   मधु का प्याला
झड़ी लगाकर बरसे मदिरा, रिमझिम रिमझिम रिमझिम कर
बेलि,   बिटप,   तृण  बन   मैं  पीऊं, वर्षा  ऋतु  हो मधुशाला।
-हरिवंश राय ‘बच्चन’

(7)

तुम  आये  हो,  आओ  मन  के  सिंहासन  का  आसन  ले  लो
संकेतों    का   राजदंड   लो,   नयनों  का  अनुशासन   ले   लो
एक  स्नेह  की  कुटी  छोड़कर, ले  लो भुवन-भुवन  का  वैभव
इस जग की तुम जगमग ले लो, इस अम्बर का यौवन ले लो।
-सरस्वती कुमार ‘दीपक’

(8)

बात  ऐसी  तो  नहीं  है  तम अमर हो
चांद  सूरज  की  कभी ढलती उमर हो
रोशनी को जिन्दगी यदि दे सको तुम
रात  आये  ही  नहीं,  ऐसी  सहर   हो।
-सरशार होशयारपुरी

(9)

किस  पेड़  की  किस  शाख पे झूली है तू
किस  शाख  के  किस  फूल पे फूली है तू
खा जाएगा कच्ची तुझे, तुझे खाने वाला
ऐ  जिन्दगी  किस  खेत  की मूली है तू।
-सरशार होशयारपुरी

(10)

चाहे  युग-युग  से  है  जीवन  साथ गुजारा
फिर  भी  कैसे हो  सकता है मिलन हमारा
सीमित है अस्तित्व बिन्दु तक केवल मेरा
और  वृत्त  का-सा   यह  विस्तार  तुम्हारा।
-भूपेन्द्र कुमार स्नेही

संकलन-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com

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