नौ निधियां कौन सी है || नौ निधियों के नाम || नव निधियों के स्वामी कौन हैं?

नव निधियां कौन सी हैं!
हनुमान चालीसा
में कहा गया है कि ‘‘अष्ट सिद्धि नव निधी के दाता असबर दीन जानकी माता।’’ अर्थात रामभक्त हनुमानजी को माता सीता ने अष्ट सिद्धि और नौ निधियों का वरदान दिया था। हनुमान जी अपने भक्तों को अष्ट सिद्धियां और नव निधियां देने में सक्षम हैं। मित्रों इस आलेख में हम नव नीधियों पर चर्चा करेंगे।
मित्रों।। प्रत्येक व्यक्ति के धन प्राप्ति के साधन अलग-अलग होते हैं और उनका धन कमाने का उद्देश्य भी अलग-अलग होता है। धन कमाने के 3 तरीके हैं- सात्विक, राजसिक और तामसिक। सात्विक तरीके से कमाया गया धन अच्छा और सात्विक फल देता है और तामसिक तरीके से कमाया हुआ धन बुरा या तामसिक फल देता है। नौ नीधियां भी इन्हीं तीन प्रकार के गुणों में बंटी हुई हैं, तो आइये हम देखते हैं कि हमारे पास कौन सी प्रकार की निधि है या हम किस प्रकार से कमाई कर रहे हैं और वह हमारे पास कब तक रहेगी।
1. पद्म निधि : पद्म निधि के लक्षणों से संपन्न व्यक्ति सात्विक गुणों से युक्त होता है, और उसकी कमाई गई संपत्ति भी सात्विक होती है। सात्विक तरीके से कमाई गई संपदा पीढ़ियों तक चलती रहती है, इसका उपयोग साधक के परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है। सात्विक गुणों से संपन्न व्यक्ति सोना-चांदी आदि का संग्रह करके उनका दान करता है। इस निधि का अस्तित्व साधक के परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता है। 
2. महापद्म निधि : यह निधि भी पद्म निधि की तरह ही सात्विक होती है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति भी दानी होता है। परन्तु इस निधि का प्रभाव 7 पीढ़ियों के बाद समाप्त हो जाता है।
3. नील निधि : इस निधि में सात्विक और राजसी गुणों का समावेश होता है। ऐसी निधि व्यापार द्वारा प्राप्त होती है इसलिए इस निधि से संपन्न व्यक्ति में दोनों ही गुणों की प्रधानता रहती है। हालांकि इसे मधुर स्वभाव वाली निधि भी कहा गया है। ऐसा व्यक्ति जनहित के कार्य करता है, परन्तु इस निधि का प्रभाव 3 पीढ़ियों के बाद समाप्त हो जाता है।
4. मुकुंद निधि : इस निधि में रजोगुण की प्रधानता रहती है इसलिए इसे राजसी स्वभाव वाली निधि कहा गया है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति का मन भोग विलास में लगा रहता है। इसलिए वह अपने जीवन काल में ही इस निधि को समाप्त कर देता है, अर्थात यह निधि एक पीढ़ी के बाद समाप्त हो जाती है।
5. नंद निधि : इसी निधि में राजसी और तामसिक गुणों का मिश्रण होता है। माना जाता है कि यह निधि साधक को लंबी आयु व निरंतर तरक्की प्रदान करती है। व्यक्ति अपने क्षेत्र में निरन्तर प्रगति करता रहता है।
6. मकर निधि : इस निधि को तामसी निधि कहा गया है। इस निधि से संपन्न साधक अस्त्र और शस्त्र के बल पर धन का संग्रह करते हैं। ऐसे व्यक्ति राज्य और सरकार में हिस्से दारी रखते हैं, यह अपने शत्रुओं पर भारी पड़ते है और युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, लेकिन इनकी मृत्यु भी इसी कारण से होती है। 
7. कच्छप निधि : यह निधि भी तमोगुण से युक्त होती हैं, इसका साधक अपनी संपत्ति को छुपाकर रखता है। न तो स्वयं उसका उपयोग करता है, न ही किसी को करने देता है। वह कच्छप की तरह उसकी रक्षा करता है। 
8 . शंख निधि : इस निधि को पाने वाला व्यक्ति स्वयं की ही चिंता और स्वयं के ही भोग की इच्छा रखता है। वह कमाता तो बहुत है, लेकिन उसके परिवार वाले गरीबी में ही जीते हैं क्योंकि ऐसा व्यक्ति अपने धन को केवल स्वयं के लिये ही खर्च करता है। यह निधि एक पीढ़ी के बाद समाप्त हो जाती है।
9. खर्व निधि : यह निधि तमोगुण प्रधान निधि होती हैं। इस निधि से संपन्न व्यक्ति विकलांग होता है और सम्पत्ति को कमाने में कभी किसी को लूटने से भी परहेज नहीं करता।
साथियों! इस प्रकार हमने देखा कि सात्विक और राजसी गुणों से युक्त सम्पत्ति स्थायी होती है, परन्तु तामसिक गुणों से कमाई गयी सम्पत्ति अस्थायी होती है वह जितनी जल्दी आती है उतनी ही जल्दी समाप्त भी हो जाती है। 
तो साथियों!! आपको ये आलेख कैसा लगा, कमैंट्स करके बताना  न भूले, अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए, नमस्कार, जय हिन्द।   लेखक : संजय कुमार गर्ग

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