खुश्बू की तरह आया वो तेज हवाओं में
माँगा था जिसे हमने दिन रात दुआओं में
तुम छत पर नहीं आये मैं घर से नहीं निकला
ये चांद बहुत भटका सावन की घटाओं में
-बशीर बद्र
तुम छत पर नहीं आये मैं घर से नहीं निकला
ये चांद बहुत भटका सावन की घटाओं में
-बशीर बद्र
(2)
इक्के कभी हांके, कभी खीचें ठेले
कूटे कभी पत्थर, कभी तोड़े ढेले
इक टुकड़े की खातिर कई दुखड़े झेले
इक रोटी की खातिर कई पापड़ बेले।
-सरशार होशियारपुर
कूटे कभी पत्थर, कभी तोड़े ढेले
इक टुकड़े की खातिर कई दुखड़े झेले
इक रोटी की खातिर कई पापड़ बेले।
-सरशार होशियारपुर
(3)
मेरी आशा मेरे विश्वास के विपरित गयी
जीत तो हार गयी, हार मगर जीत गयी
सिर्फ तन्हाई ने ही दिल को दिया है सम्बल
चन्द यादों को भुलाने में उमर बीत गयी
-शेरजंग गर्ग
जीत तो हार गयी, हार मगर जीत गयी
सिर्फ तन्हाई ने ही दिल को दिया है सम्बल
चन्द यादों को भुलाने में उमर बीत गयी
-शेरजंग गर्ग
(4)
दूर तक एक भी आता है मुसाफिर न नजर
ये भी मालूम नहीं शाम है ये या कि सहर
मेरे अस्तित्व के बस दो ही निशां बाकी हैं
एक बुझता सा दिया, एक टूटी सी कबर
-बालस्वरूप राही
दूर तक एक भी आता है मुसाफिर न नजर
ये भी मालूम नहीं शाम है ये या कि सहर
मेरे अस्तित्व के बस दो ही निशां बाकी हैं
एक बुझता सा दिया, एक टूटी सी कबर
-बालस्वरूप राही
(5)
एक कंकड हूं कोई मोती नहीं
जिन्दगी वर्ना जहर बोती नहीं
आदमी के शौक या जिद के सिवा
दर्द की कोई वजय होती नहीं
-रामावतार त्यागी
एक कंकड हूं कोई मोती नहीं
जिन्दगी वर्ना जहर बोती नहीं
आदमी के शौक या जिद के सिवा
दर्द की कोई वजय होती नहीं
-रामावतार त्यागी
(6)
हर नजर साधु नहीं है, हर बशर गांधी नहीं है
वस्त्र हर रेशम नहीं है, सूत हर खादी नहीं है
नीति को लेकर कसौटी मत कसो इंसान की
आदमी है आदमी, सोना नहीं, चांदी नहीं है।
-गोपाल दास नीरज
संकलन-संजय कुमार गर्ग
संकलन-संजय कुमार गर्ग
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)
मुक्तक/शेरों-शायरी के और संग्रह
प्यास वो दिल की बुझाने कभी.....मुक्तक और रुबाइयाँ !
सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-02-2015) को "कुछ गीत अधूरे रहने दो..." (चर्चा अंक-1890) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
पाश्चात्य प्रेमदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी, सादर नमन! ब्लॉग को अपनी प्रसिद्ध -प्रविष्टि में सम्मलित करने व् कमेंट्स करने के लिए सादर धन्यवाद!
हटाएंये चांद बहुत भटका सावन की घटाओं में ..... क्या कहने सुंदर अशआरों का कलेक्शन ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय नीरज जी, सादर नमन! ब्लॉग को पढ़ने व् टिप्पणी करने के लिय सादर आभार!
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