सौरभ एक शिक्षक होने के साथ-साथ एक अच्छा लेखक भी था।
ज्योतिष, वास्तु, तन्त्र-मन्त्र आदि उसके लेखन के प्रिय विषय थे। रात के
दो बजे थे। सौरभ एक जन्मपत्री का अध्ययन कर रहा था। वह संसार की सुध-बुध
खोये एक जातक की कुण्डली में खोया था। उसका सूक्ष्म शरीर सुदूर अंतरिक्ष
मेें मंडरा रहे, जातक के भविष्य से साक्षात्कार करने का प्रयास कर रहा था।
तभी उसकी पीठ पर किसी का स्पर्श हुआ।
डार्लिंग!
वह एकदम उछल पडा।
उसने मुडकर देखा, उसकी पत्नि नेहा उसके पीछे खड़ी मुस्करा रही थी।
अरे! तुम, इतनी रात गये, सब ठीक तो है? तुम्हारी व बच्चों की तबियत तो ठीक है? सौरभ एकदम घबरा कर बोला!
सब ठीक है! क्या सोना नहीं है, आपको? पत्नि झल्लाकर बोली।
सारी-सारी रात पढ़ने-लिखने में लगे रहते हो, अपनी पत्नि की भी चिंता है, आपको?
अरे! भाई एक जन्मपत्री का अध्ययन कर रहा था! चलो सोने चलते हैं! सौरभ ने अपनी अस्त-व्यस्त किताबों को व्यवस्थित करते हुये कहा। लेखक-संजय कुमार गर्ग (All rights reserved.)
‘‘सांसारिक कृत्य‘‘ में प्रवृत हो कर, पत्नि गहरी नींद में सो गई, परन्तु सौरभ की आंखों में नींद नहीं थी। वह अपनी पत्नि के स्वभाव में अस्वभाविक परिवर्तन से चिंतित था। चिंता के अनेक कारण थे-उसकी पत्नि उसके मन की बात को साफ पढ़ने लगी थी, जबकि पहले ऐसा नहीं था। पत्नि के शरीर से एक अजीब सी गन्ध आने लगी थी, जबकि उसने खानपान में कोई परिवर्तन नहीं किया था। उसकी पत्नि पहले से ज्यादा कामुक हो गई थी, जो शादी से अब तक सर्वाधिक था। उसके चेहरे पर अजीब सी मुर्दानगी छाई रहती थी, ऐसा लगता था कि वह सम्मोहित है तथा बच्चों में उसका लगाव 'न' के बराबर रह गया था।
अगले दिन रोहित रात्रि में अपनी डायरी लिखकर उसके पिछले पृष्ठों को पढ़ने लगा तो उसका ध्यान करीब दस दिन पहले की घटना पर केंद्रीत हो गया, वह उस दिन के पृष्ठ पढ़कर सारा हिल गया। चूंकि सौरभ ‘‘प्लेन चिट‘‘ (प्रेतों से सम्पर्क की एक विद्या) जानता था, परंतु वह उसका प्रयोग कुछ विशेष परिस्थितियों में ही करता था, उस दिन उसने अपनी पत्नि के अत्यधिक आग्रह पर अपनी पत्नि की मृत सहेली पुष्पा की ‘आत्मा‘ से सम्पर्क किया था, परन्तु ‘‘कटोरी‘‘ (प्रेतों से बातचीत का माध्यम) की उछल कूद देखकर उसकी पत्नि ‘नेहा‘ काफी घबरा गई, और बेहोश हो गयी थी, उसी दिन से सौरभ ने अपनी पत्नि में ये परिवर्तन महसूस किये थे। इसका तात्पर्य था उसकी पत्नि के शरीर में उसकी मित्र पुष्पा की ‘आत्मा‘ का अधिकार था। सौरभ अत्यधिक परेशान हो उठा।
आप भूत-प्रेतों में कब से विश्वास करने लगे डार्लिग? अचानक उसकी ‘कथित‘ पत्नि उसकी पीठ का स्पर्श करते हुये प्रकट हुई!
अबकी बार सौरभ उसके अचानक स्पर्श से डरा नहीं था। बल्कि सावधान हो गया था, क्योंकि उसकी ‘कथित‘ पत्नि उसके मन में उमड़ने वाली हर बात को पढ़ सकती थी।
नहीं! नहीं! वैसे ही कुछ पढ़ रहा था, सौरभ ने अपने मन को ‘विचारशून्य‘ करते हुये, एक फीकी हंसी हंसते हुये कहा! क्योंकि वह जानता था कि ‘प्रेत आत्मा‘ उसके मन को तो पढ़ सकती है, परन्तु यदि वह उर्दू नहीं जानती तो 'उर्दू' में लिखी उसकी डायरी को नहीं पढ़ सकती थी।
शरदीय नवरात्र आने वाले थे, उसने इस ‘आत्मा‘ से निपटने के लिए योजना बनानी प्रारम्भ कर दी।
नवरात्रि में उसने ‘‘गायत्री-महामंत्र‘‘ का ‘‘लघु-अनुष्ठान‘‘ करना प्रारम्भ कर दिया। कथित पत्नि के बार-बार विघ्न डालने पर भी सौरभ ने अपने ‘जप‘ जारी रखें और दसवें दिन हवन करने की तैयारी प्रारम्भ कर दी। बच्चों को उसने पहले ही अपने दादी-दादी के पास भेज दिया था। ‘कथित‘ पत्नि से बार-बार आग्रह करने पर भी वह हवन में नहीं आयी, तो सौरभ ने हवन प्रारम्भ कर दिया। गुगल और अनेक पवित्र सामग्री युक्त समिधा 'अग्नि-देव' को समर्पित की जाने लगी। ‘‘लय-ताल-गति‘‘, युक्त किसी भी साधारण मन्त्र का जप असाधारण परिणाम प्रस्तुत कर सकता है, परन्तु यदि वह मंत्र ‘‘गायत्री-महामन्त्र‘‘ हो तो परिणाम कल्पना से परे भी हो सकते हैं। पवित्र अग्नि में समर्पित ‘आहुति‘ रूपी ‘निवेदन‘ जब ‘सूर्य लोक‘ में पहुंचता है, तो वहां से अनुदान-आर्शीवाद और ऊर्जा लेकर कल्पनातीत गति से जब वापस लौटता है, तो ‘याचक‘ की ‘याचना‘ की ओर ‘ब्रह्म-अस्त्र‘ के समान बढ़ता है। वही हुआ सौरभ की ‘कथित‘ पत्नि बेचैन होेकर कमरे से बाहर आ गई उसकी चेहरा भयानक लग रहा था, आंखे लाल हो गयी थी। हर आहुति उसे तीर के समान लग रही थी। उसने सौरभ से कहा, हवन बन्द कर दें मेरा दम घुट रहा है। सौरभ ने उसकी बात को अनसुना कर दिया और उसका हाथ पकड़कर अपने पास बैेठा लिया। परन्तु उसकी पत्नि तेजी से घर से बाहर की ओर भागी, परन्तु ताला बन्द होने के कारण, वह लाल आंखे व बाल बिखरे हुए रौद्र रूप में वापस सौरभ की ओर बढ़ी।
लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
हवन को तुरन्त बन्द कर दो! वरना मैं तुम्हे मार दूंगी! उसकी ‘कथित‘ पत्नि की आवाज बदल चुकी थी।
सौरभ निश्चल होकर हवन करता रहा और शान्त आवाज में बोला-
हे! पवित्र आत्मा! मेरी पत्नि के शरीर को छोड़ दो!
तो तुझे मेरे बारे मैं पता चल गया है? मैं तुझे मार दूंगी! वह आगे बढ़ी।
पुष्पा जी! मेरा आपसे निवेदन है कि आप मेरी पत्नि के शरीर से प्रस्थान कीजिए! सौरभ ने पुनः निवेदन किया।
परन्तु वह क्रोधित होकर सौरभ की ओर बढ़ी, सौरभ जानता था कि इस समय इसकी ताकत से पार पाना असंभव हो सकता हैै। सौरभ ने हवन की अग्नि से तप्त चम्मच उसके बाजू से लगा दी। वह दर्द से कराह उठी और बेहोश हो गयी। सौरभ ने कुशा से पवित्र गंगा जल के छींटे उसको लगाये और अभिमंत्रित कलावा पत्नि के हाथ में बांध दिया । हवन की पूर्णाहूति व देवविर्सजन करके सौरभ ने अपनी पत्नि को जमीन से उठाकर बैड पर लिटा दिया।
बेहोश पत्नि पर सौरभ कुशा से पवित्र गंगा जल के छींटे लगाता रहा। कुछ समय बाद उसकी पत्नि ने आंखे खोली। पति को सिरहाने बैठा देखकर वह बोली। अरे! आप उठ गये, मुझे उठने में आज देर हो गयी, इतना कहकर वह दर्द से कराहकर पुनः बिस्तर पर गिर गयी। वह पुनः बोली, साॅरी! जी, मैंने आपसे रात में ‘‘प्लेन-चिट‘‘ की जिद की, अब ऐसी जिद नहीं करूंगी।
सौरभ समझ गया कि अब उसकी पत्नि ‘प्रेत-बाधा‘ से मुुक्त है, क्योंकि उन पच्चीस दिनों के बारे में उसे कोई बात याद नहीं है।
आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है! आप आराम कीजिये, सौरभ ने अपनी पत्नि के सिर पर हाथ फिराते हुये कहा और सौरभ ने ऊपर की ओर देखा, और दूर खड़े 'कारण' शरीर में मुस्करा रहे अपने 'गुरू' को धन्यवाद दिया।
डार्लिंग!
वह एकदम उछल पडा।
उसने मुडकर देखा, उसकी पत्नि नेहा उसके पीछे खड़ी मुस्करा रही थी।
अरे! तुम, इतनी रात गये, सब ठीक तो है? तुम्हारी व बच्चों की तबियत तो ठीक है? सौरभ एकदम घबरा कर बोला!
सब ठीक है! क्या सोना नहीं है, आपको? पत्नि झल्लाकर बोली।
सारी-सारी रात पढ़ने-लिखने में लगे रहते हो, अपनी पत्नि की भी चिंता है, आपको?
अरे! भाई एक जन्मपत्री का अध्ययन कर रहा था! चलो सोने चलते हैं! सौरभ ने अपनी अस्त-व्यस्त किताबों को व्यवस्थित करते हुये कहा। लेखक-संजय कुमार गर्ग (All rights reserved.)
‘‘सांसारिक कृत्य‘‘ में प्रवृत हो कर, पत्नि गहरी नींद में सो गई, परन्तु सौरभ की आंखों में नींद नहीं थी। वह अपनी पत्नि के स्वभाव में अस्वभाविक परिवर्तन से चिंतित था। चिंता के अनेक कारण थे-उसकी पत्नि उसके मन की बात को साफ पढ़ने लगी थी, जबकि पहले ऐसा नहीं था। पत्नि के शरीर से एक अजीब सी गन्ध आने लगी थी, जबकि उसने खानपान में कोई परिवर्तन नहीं किया था। उसकी पत्नि पहले से ज्यादा कामुक हो गई थी, जो शादी से अब तक सर्वाधिक था। उसके चेहरे पर अजीब सी मुर्दानगी छाई रहती थी, ऐसा लगता था कि वह सम्मोहित है तथा बच्चों में उसका लगाव 'न' के बराबर रह गया था।
अगले दिन रोहित रात्रि में अपनी डायरी लिखकर उसके पिछले पृष्ठों को पढ़ने लगा तो उसका ध्यान करीब दस दिन पहले की घटना पर केंद्रीत हो गया, वह उस दिन के पृष्ठ पढ़कर सारा हिल गया। चूंकि सौरभ ‘‘प्लेन चिट‘‘ (प्रेतों से सम्पर्क की एक विद्या) जानता था, परंतु वह उसका प्रयोग कुछ विशेष परिस्थितियों में ही करता था, उस दिन उसने अपनी पत्नि के अत्यधिक आग्रह पर अपनी पत्नि की मृत सहेली पुष्पा की ‘आत्मा‘ से सम्पर्क किया था, परन्तु ‘‘कटोरी‘‘ (प्रेतों से बातचीत का माध्यम) की उछल कूद देखकर उसकी पत्नि ‘नेहा‘ काफी घबरा गई, और बेहोश हो गयी थी, उसी दिन से सौरभ ने अपनी पत्नि में ये परिवर्तन महसूस किये थे। इसका तात्पर्य था उसकी पत्नि के शरीर में उसकी मित्र पुष्पा की ‘आत्मा‘ का अधिकार था। सौरभ अत्यधिक परेशान हो उठा।
आप भूत-प्रेतों में कब से विश्वास करने लगे डार्लिग? अचानक उसकी ‘कथित‘ पत्नि उसकी पीठ का स्पर्श करते हुये प्रकट हुई!
अबकी बार सौरभ उसके अचानक स्पर्श से डरा नहीं था। बल्कि सावधान हो गया था, क्योंकि उसकी ‘कथित‘ पत्नि उसके मन में उमड़ने वाली हर बात को पढ़ सकती थी।
नहीं! नहीं! वैसे ही कुछ पढ़ रहा था, सौरभ ने अपने मन को ‘विचारशून्य‘ करते हुये, एक फीकी हंसी हंसते हुये कहा! क्योंकि वह जानता था कि ‘प्रेत आत्मा‘ उसके मन को तो पढ़ सकती है, परन्तु यदि वह उर्दू नहीं जानती तो 'उर्दू' में लिखी उसकी डायरी को नहीं पढ़ सकती थी।
अगले
दिन से सौरभ ने अपने मन को 'विचारशून्य' बनाकर योजना बनानी प्रारम्भ की ।
बहुत कठिन कार्य था, मन में कुछ रखकर, कुछ और कार्य करना। परन्तु साधक स्तर
के व्यक्ति के लिए यह कठिन भी नहीं है! लेखक-संजय कुमार गर्ग (All rights reserved.)
नवरात्रि में उसने ‘‘गायत्री-महामंत्र‘‘ का ‘‘लघु-अनुष्ठान‘‘ करना प्रारम्भ कर दिया। कथित पत्नि के बार-बार विघ्न डालने पर भी सौरभ ने अपने ‘जप‘ जारी रखें और दसवें दिन हवन करने की तैयारी प्रारम्भ कर दी। बच्चों को उसने पहले ही अपने दादी-दादी के पास भेज दिया था। ‘कथित‘ पत्नि से बार-बार आग्रह करने पर भी वह हवन में नहीं आयी, तो सौरभ ने हवन प्रारम्भ कर दिया। गुगल और अनेक पवित्र सामग्री युक्त समिधा 'अग्नि-देव' को समर्पित की जाने लगी। ‘‘लय-ताल-गति‘‘, युक्त किसी भी साधारण मन्त्र का जप असाधारण परिणाम प्रस्तुत कर सकता है, परन्तु यदि वह मंत्र ‘‘गायत्री-महामन्त्र‘‘ हो तो परिणाम कल्पना से परे भी हो सकते हैं। पवित्र अग्नि में समर्पित ‘आहुति‘ रूपी ‘निवेदन‘ जब ‘सूर्य लोक‘ में पहुंचता है, तो वहां से अनुदान-आर्शीवाद और ऊर्जा लेकर कल्पनातीत गति से जब वापस लौटता है, तो ‘याचक‘ की ‘याचना‘ की ओर ‘ब्रह्म-अस्त्र‘ के समान बढ़ता है। वही हुआ सौरभ की ‘कथित‘ पत्नि बेचैन होेकर कमरे से बाहर आ गई उसकी चेहरा भयानक लग रहा था, आंखे लाल हो गयी थी। हर आहुति उसे तीर के समान लग रही थी। उसने सौरभ से कहा, हवन बन्द कर दें मेरा दम घुट रहा है। सौरभ ने उसकी बात को अनसुना कर दिया और उसका हाथ पकड़कर अपने पास बैेठा लिया। परन्तु उसकी पत्नि तेजी से घर से बाहर की ओर भागी, परन्तु ताला बन्द होने के कारण, वह लाल आंखे व बाल बिखरे हुए रौद्र रूप में वापस सौरभ की ओर बढ़ी।
लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
हवन को तुरन्त बन्द कर दो! वरना मैं तुम्हे मार दूंगी! उसकी ‘कथित‘ पत्नि की आवाज बदल चुकी थी।
सौरभ निश्चल होकर हवन करता रहा और शान्त आवाज में बोला-
हे! पवित्र आत्मा! मेरी पत्नि के शरीर को छोड़ दो!
तो तुझे मेरे बारे मैं पता चल गया है? मैं तुझे मार दूंगी! वह आगे बढ़ी।
पुष्पा जी! मेरा आपसे निवेदन है कि आप मेरी पत्नि के शरीर से प्रस्थान कीजिए! सौरभ ने पुनः निवेदन किया।
परन्तु वह क्रोधित होकर सौरभ की ओर बढ़ी, सौरभ जानता था कि इस समय इसकी ताकत से पार पाना असंभव हो सकता हैै। सौरभ ने हवन की अग्नि से तप्त चम्मच उसके बाजू से लगा दी। वह दर्द से कराह उठी और बेहोश हो गयी। सौरभ ने कुशा से पवित्र गंगा जल के छींटे उसको लगाये और अभिमंत्रित कलावा पत्नि के हाथ में बांध दिया । हवन की पूर्णाहूति व देवविर्सजन करके सौरभ ने अपनी पत्नि को जमीन से उठाकर बैड पर लिटा दिया।
बेहोश पत्नि पर सौरभ कुशा से पवित्र गंगा जल के छींटे लगाता रहा। कुछ समय बाद उसकी पत्नि ने आंखे खोली। पति को सिरहाने बैठा देखकर वह बोली। अरे! आप उठ गये, मुझे उठने में आज देर हो गयी, इतना कहकर वह दर्द से कराहकर पुनः बिस्तर पर गिर गयी। वह पुनः बोली, साॅरी! जी, मैंने आपसे रात में ‘‘प्लेन-चिट‘‘ की जिद की, अब ऐसी जिद नहीं करूंगी।
सौरभ समझ गया कि अब उसकी पत्नि ‘प्रेत-बाधा‘ से मुुक्त है, क्योंकि उन पच्चीस दिनों के बारे में उसे कोई बात याद नहीं है।
आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है! आप आराम कीजिये, सौरभ ने अपनी पत्नि के सिर पर हाथ फिराते हुये कहा और सौरभ ने ऊपर की ओर देखा, और दूर खड़े 'कारण' शरीर में मुस्करा रहे अपने 'गुरू' को धन्यवाद दिया।
(कहानी के पात्र, स्थान, घटनाक्रम आदि काल्पनिक हैं)
लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
सब कुछ है
जवाब देंहटाएंदेव कृपा यदि
नही होता तो
हम सब
गर्त में
समा चुके होते
सादर
आदरणिया यशोदा जी, सादर नमन! हम जितना स्थूल में देख रहें हैं, उससे लाखों गुना सूक्ष्म में व्याप्त है, जो हमें इन स्थूल आँखों से नहीं दिखाई पढ़ता! ब्लॉग पर आने व कॉमेंट्स करने के लिए धन्यवाद! यशोदा जी!
हटाएंमन में अनेकों सवाल उठाती और विचलित करती सशक्त कथा ! इस विषय और विद्या के प्रति जिज्ञासा बहुत है और ज्ञान शून्य इसलिए किसी भी तरह की प्रतिक्रिया आधिकारिक रूप से देने में समर्थ नहीं हूँ सिवाय इसके कि कहानी रोचक लगी !
जवाब देंहटाएंआदरणिया साधना जी,सादर नमन! भूत-प्रेतों के बारे में मैं एक ब्लॉग और लिख चुका हूँ, जो मेरे निजी अनुभवों पर आधारित है, आप उसे भी अवश्य पढ़े, अपनी जिगयासाएँ आप यहाँ रख सकती हैं मैने यथा संभव उत्तर देने का प्रयास करूँगा, मैं केवल समाज में इन सूक्षम जीवधारियों की वास्तविकता को रखना चाहता हूँ! धन्यवाद!
हटाएंअनेकों सवाल उठाती सशक्त कथा
जवाब देंहटाएंसच कहती पंक्तियाँ .
Recent Post ..उनकी ख्वाहिश थी उन्हें माँ कहने वाले ढेर सारे होते
संजय जी! नमस्कार! कमेंट्स करने व् ब्लॉग को पढने के आभार!
हटाएंNAMASKAR SANJAY JI RAJESH UPPAL DELHI SE HU ABHI ABHI AAPKA PROFILE DEKHA HE. KYA MAI AAP SE APNE BAARE ME KUTCH POOCH SAKTA HU. AAJ KAL BAHUT KHARAB HAALAT HE. AGAR AAP AGYA DE TO MAI AAP.KO APNI JANAM TITHI YA KUTCH OR BHEJ SAKTA HU .
जवाब देंहटाएंराज भाई! सादर नमन! आप इस समय केवल अपनी जन्मपत्री भेज दें, उसके अध्ययन के बाद मैं आपसे चैटिंग पर संपर्क करूंगा! धन्यवाद!
हटाएंBahut achhi kahani hi Garg ji
जवाब देंहटाएंयुवराज जी, ब्लॉग को पढ़ने व् कमेंट्स करने के लिए सादर आभार!
हटाएंबहुत interesting कहानी है।मुझे भी ऐसी बातो पर विशवास है। i liked your bl9gs.
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन कमेंट्स के लिए सादर आभार! आदरणीया मंजू जी!
हटाएंSanjay ji apki story bahut achchhi lagi.
जवाब देंहटाएंKya ap meri help krenge mere pas janm kundli nahi hai lekin mai DOB bta skta hu
गोपाल जी, नमस्कार ! आप मुझे अपने दोनों हाथों के स्पष्ट प्रिंट, अपने प्रश्न के साथ मेल कर दें, प्रिंट का अध्ययन करने के बाद मैं आपको चेटिंग पर मिल लूंगा यदि आपने मुझे फेसबुक व गूगल प्लस पर फॉलो किया हुआ होगा! धन्यवाद!
हटाएंNmskar sanjay ji apki story bahut achchhi lagi.
जवाब देंहटाएंKya ap meri help krenge mere pas janm kundli nahi hai lekin mai DOB bta skta hu.
Please reply me.
गोपाल जी, नमस्कार ! आप मुझे अपने दोनों हाथों के स्पष्ट प्रिंट, अपने प्रश्न के साथ मेल कर दें, प्रिंट का अध्ययन करने के बाद मैं आपको चेटिंग पर मिल लूंगा यदि आपने मुझे फेसबुक व गूगल प्लस पर फॉलो किया हुआ होगा! धन्यवाद!
हटाएंKya Aap aaj bhi apna ye blog dekhte hain?
जवाब देंहटाएंकुछ समय से मैं ब्लॉग को अपडेट नहीं कर पा रहा, जल्द ही मैं ब्लॉग पर अपनी निरंतरता बनाऊंगा!
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