विदुर के अनुसार आठ गुण पुरूषों की ख्याति बढ़ा देते हैं !

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विदुर के अनुसार आठ गुण
विदुर मनुष्य लोक के छः सुखों की व्याख्या करते हैं-नीरोग रहना, ऋणी न होना, परदेश में न रहना, अच्छे लोगों के साथ मेल रखना, अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निडर होकर रहना-ये छः मनुष्य लोक के सुख हैं।। 94।। 

महात्मा विदुर कहते हैं कि निम्न छः प्रकार के मनुष्य सदा दुखी रहते हैं-ईर्ष्या करने वाला, घृणा करने वाला, असंतोषी, क्रोधी, सदा शंकित रहने वाला और दूसरों के भाग्य पर जीवन-निर्वाह करने वाला-ये सदा दुखी रहते हैं।। 95।।

महात्मा विदुर कहते हैं कि राजा को निम्न सात दोषों को त्याग देना चाहिये-स्त्रीविषयक आसक्ति, जुआ, शिकार, मद्यपान, वचन की कठोरता, अत्यन्त कठोर दंड देना और धन का दुरुपयोग करना ये सात दुःखदायी दोष राजा को सदा त्याग देने चाहिये, इनसे दृढ़मूल राजा भी प्रायः नष्ट हो जाता है।। 96-97।। 


विदुर महाराज ने हर्ष प्राप्ति के निम्न साधन बताये हैं-मित्रों से समागम, अधिक धन की प्राप्ति, पुत्र का आलिंगन, मैथुन में प्रवृत्ति, समय पर प्रिय वचन बोलना, अपने वर्ग के लोगों में उन्नति, अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति और समाज में सम्मान-ये आठ हर्ष के सार दिखाई देते हैं और ये ही लौकिक सुख के साधन भी होेते हैं।। 101-103 ।।

पुरुषों के ये आठ गुण ख्याति को बढ़ा देते हैं ऐसा महाराज विदुर का मानना है-बुद्धि, कुलीनता, इन्द्रियनिग्रह, शास्त्रज्ञान, पराक्रम, अधिक न बोलना, शक्ति के अनुसार दान देना और कृतज्ञता-ये आठ गुण पुरूष की ख्याति बढ़ा देते हैं।। 104 ।।

महाराज विदुर कहते हैं कि निम्न दस प्रकार के लोग धर्म को नहीं जानते-नशे में मतवाला, असावधान, पागल, थका हुआ, क्रोधी, भूखा, जल्दबाज, लोभी, भयभीत और कामी -ये दस हैं।  विद्वान व्यक्ति इन लोगों से आसक्ति न बढ़ाये।। 106-107।।

धीर कौन है महाराज विदुर कहते हैं-जो किसी दुर्बल का अपमान नहीं करता, सदा सावधान रहकर शत्रु से बुद्धि पूर्वक व्यवहार करता है, बलवानों के साथ युद्ध पसंद नहीं करता तथा समय आने पर पराक्रम दिखाता है, वही धीर है।। 111।।  

विदुर कहते हैं, देवगण ऐसे व्यक्तियों के साथ होते हैं-जो दान, होम, देवपूजन, मांगलिक कार्य, प्रायश्चित तथा अनेक प्रकार के लौकिक आचार-इन कार्यो को नित्य करता है, देवगण उसके अभ्युदय की सिद्धि करते हैं।। 121।।

 
महाराज विदुर कहते हैं कि उस विद्धान की नीति श्रेष्ठ है-जो अपने बराबर वालों के साथ विवाह, मित्रता, व्यवहार तथा बातचीत रखता है, हीन पुरूषों के साथ नहीं, और गुणों में बढे़ चढ़े पुरूषों को सदा आगे रखता है, उस विद्धान की नीति श्रेष्ठ है।। 122।। 

महाराज विदुर कहते हैं ऐसे पुरूषों को अनर्थ दूर से ही छोड़ देते हैं-जो अपने आश्रित जनों को बांटकर खाता है, बहुत अधिक काम करके भी थोड़ा सोता है तथा मांगने पर जो मित्र नहीं है, उसे भी धन देता है, उस मनस्वी पुरूष के सारे अनर्थ दूर से ही छोड़ देते हैं। 123।।

बलवान के सम्मुख झुकने का परामर्श कितने सुन्दर उदाहरण से नीतिज्ञ विदुर देते हैं-जो धातु बिना गर्म किये मुड जाती है, उसे आग में नहीं तपाते। जो काठ स्वयं झुका होता है, उसे कोई झुकाने का प्रयत्न नहीं करता, अतः बुद्धिमान पुरुष को अधिक बलवान के सामने झुक जाना चाहिये, जो अधिक बलवान के सामने झुकता है, वह मानो इन्द्रदेवता को प्रणाम करता है।। 36-37/2।।  


किस वस्तु की किस प्रकार रक्षा करें, विदुर महाराज उदाहरणों द्वारा समझाते हैं-सत्य से धर्म की रक्षा होती है, योग से विद्या सुरक्षित होती है, सफाई से सुन्दर रूप की रक्षा होती है और सदाचार से कुल की रक्षा होेती है, तोलने से अनाज की रक्षा होती है, हाथ फेेरने से घोड़े सुरक्षित रहते हैं, बारम्बार देखभाल करने से गौओं की तथा मैले वस्त्रों से स्त्रियों की रक्षा होती है।। 39-40/2।।

संकलन-संजय कुमार गर्ग 
(सभी चित्र गूगल-इमेज से साभार!)

4 टिप्‍पणियां :

  1. बहोत ही दिव्य कार्य कर रहे है आप.
    अद्भुत.

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    1. गौर जी, नमस्कार! ब्लॉग पर कमैंट्स करने के लिए धन्यवाद!

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    2. Aap kaa sanklan sahi me adbhut hai

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    3. गौर जी, नमस्कार! ब्लॉग पर पुनः कमैंट्स करने के लिए धन्यवाद! आप मेरा यू ट्यूब चैनल पर नया आलेख देखिये, चैनल को लाइक व सब्सक्राइब अवश्य कीजिये-
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