इनका कभी विश्वास नहीं करना चहिये..... चाणक्य नीति


इनका कभी विश्वास नहीं..चाणक्य
निम्न का विश्वास न करने की सलाह महात्मा चाणक्य देेते हैं-"नदियों का, स्त्रियों का (?), राजकुल का, जिसके हाथ में हथियार हो उसका, नाखून और सींग वाले जीवों का विश्वास करना ही मृत्यु को बुलाना है। इनका विश्वास नहीं करना चाहिये।"।। 15/1।।
मुनि चाणक्य कहते है, हमें अनिश्चित वस्तुओं के पीछे नहीं भागना चाहिये-"जो निश्चित वस्तुओं को छोड़कर अनिश्चित वस्तुओं की सेवा करने को भागता है, उसको अनिश्चित वस्तु तो मिलती ही नहीं और उसकी निश्चित वस्तु भी चली जाती हैं।"।।13/1।।

इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं-"विवाह समान कुल में करना चाहिये, बुद्धिमान को उत्तम कुल की कुरूपा कन्या को भी वर लेना चाहिये और नीच कुल की सुन्दरी को छोड़ देना चाहिये।"।14/1।।

महात्मा चाणक्य कहते हैं कि उत्तम वस्तुएं कहीं से भी मिले उन्हे तुरन्त ले लेना चाहिये-"उत्तम विद्या और चतुर शीलवान स्त्री यदि दुष्ट कुल में भी हो तो भी उसे नहीं छोड़ना चाहिये अर्थात उसे ग्रहण कर लेना चाहिये, विष पड़े अमृत और अपवित्र वस्तु में पड़े सोने को भी नहीं छोड़ना चाहिये।"।।16/1।।

मुनिवर कहते हैं कि प्रीति बराबर वालों में ही शोभा देती है-"बराबर वालों में प्रीति शोभा देती है और राजाओं की नौकरी शोभा देती है। व्यापार में व्यवहार और घर के अन्दर सुन्दर स्त्री शोभा देती है।"।।20/2।।

महात्मा चाणक्य कहते हैं कि कोई भी अपने आप में सम्पूर्ण नहीं है-"किसका वंश दोष रहित है, किसको रोग नहीं सताते, कौन ऐसा व्यक्ति है जो कभी दुःखी नहीं हुआ और कौन सदा सुख भोगता है।"।। 1/3।।

मित्र को धर्म के कार्यो में लगाने की सलाह महात्मा चाणक्य देते हैं-"कन्या को श्रेष्ठ कुल में देना चाहिये, पुत्र को विद्वान बनाना चाहिये, शत्रु को बुरे व्यसनों में फंसाना चाहिये और मित्र को धर्म के कार्यो में लगाना चाहिये।"।।3/3।।

चाणक्य कहते हैं कि साधु और समुद्र की बराबरी नहीं करनी चाहिये-"साधु और समुद्र की बराबरी करना व्यर्थ है, क्योंकि प्रलय होने पर समुद्र अपनी मर्यादा को छोड़ देता है, परन्तु साधु फिर भी मर्यादा को नहीं छोड़ता।"।।6/3।।

कौटिल्य कहते हैं कि निम्न व्यक्तियों के लिये कुछ भी असंभव नहीं है-"शक्तिमान समर्थ को कुछ भी करना भारी नहीं है, विद्वान के लिये कोई भी देश, विदेश नहीं होता, व्यपारियों के लिये कोई भी स्थान दूर नहीं होता और मीठा बोलने वाले के लिये कुछ भी अप्रिय नहीं होता।"।।13/3।।

सुपुत्र और सुगन्ध की सुन्दर समानता चाणक्य बताते हैं-"सुपुत्र और सुगन्ध वाले वृक्ष की एक ही दशा होती है, जिस प्रकार एक सुगन्धित वृक्ष अपनी गन्ध से सारे वन को सुगन्धित कर देता है, उसी प्रकार एक सुपुत्र सारे कुल को प्रसिद्ध कर देता है।"।।14/3।।

मुनिवर बताते हैं कि ये पांच बातें मां के गर्भ में ही निश्चित हो जाती हैं-"यह निश्चित है कि आयु, कर्म, धन, विधा, मृत्यु-ये पांच बातें जब जीव मां के गर्भ में होता है, तभी लिख दी जाती हैं।"।। 1/4।।

चाणक्य कहते है कि निम्न व्यक्तियों का सब कुछ सूना रहता है-"अपुत्र का घर सूना है, बन्धु रहित की दिशा सूनी है, मूर्ख का ह्दय सूना है और दरिद्रता के होने पर सब कुछ सूना है।"।।14/4।।

किस व्यक्ति को क्या विष है महात्मा चाणक्य ने कितना सुन्दर उदाहरण दिया है-"बिना पचे भोजन विष है, बिना अभ्यास के शास्त्र विष हो जाता है। दरिद्रोें की सभा विष और वृद्ध को युवती विष जान पड़ती है।"।।15/4।।
संकलन-संजय कुमार गर्ग 
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)

7 टिप्‍पणियां :

  1. चाणक्य जी के अति सुन्दर विचारों से अवगत कराने के लिए ---- आभार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कमेंट्स के लिए धन्यवाद! सावन कुमार जी!

      हटाएं
  2. बेनामी3/11/2015

    चाणक्‍य नीति ही आज की राजनीति है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कमेंट्स के लिए धन्यवाद! कहकशा जी!

      हटाएं
  3. आदरणीय मदन जी! ब्लॉग पर आने व् कमेंट्स करने के लिए सादर धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तम निति के तोर पर जानी जाती रही है चाणक्य निति और ये सच भी है ...
    आभार आपका ...

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय दिगंबर जी, ब्लॉग को पढ़ने व् कमेंट्स करने के लिए सादर धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुमूल्य है!