ऊबकाई (लघु कथा)


ऊबकाई
ऊबकाई
हाँ! जी खाना लग गया है! आ जाईये! रोहित की पत्नि ने रोहित को आवाज लगाई!
रोहित आकर खाना खाने लगा।
तभी उसके दो साल के बेटे ने पोट्टी (लेट्रीन) कर ली। रोहित को पता चलते ही ऊबकाई आने लगी और वह ऊबकाई लेता हुआ तेजी से वाॅशवेसन की ओर दौड़ पड़ा।

लेखक-संजय कुमार गर्ग  sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
 रोहित की यह एक ‘‘मनोवैज्ञानिक‘‘ समस्या थी, उसके खाते समय यदि कोई अभक्ष्य या गन्दगी की बात भी करता तो उसे ऊबकाई आने लगती थी और उल्टी हो जाती थी। रोहित और उसके परिवार वाले इस बात से बहुत परेशान थे। काफी इलाज कराने के बाद भी उसे लाभ नहीं हो पा रहा था।
रोहित किसी आवश्यक कार्य से शहर से बाहर गया हुआ था, वापस लौटते समय वह लघु शंका के लिए एक सुलभ शौचालय में गया। निवृत्त होकर जैसे ही वह वापस लौट रहा था, तभी उसे आवाज आयी।
‘‘एक रोटी और लीजिए?‘‘ उसके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा, भोजन, वो भी शौचालय में?

लेखक-संजय कुमार गर्ग  sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
 वह आवाज की दिशा में गया तो उसने देखा, शौचालय के अन्दर ही एक ओर मेहतरानी खाना बना रही थी और मेहतर खाना खा रहा था। उसका मुंँह आश्चर्य से खुला रह गया।
वह सोचते-सोचते बस में आकर बैठ गया। अब रोहित समझ गया था, उसकी ‘‘ऊबकाई‘‘ एक मानसिक समस्या है, मन को सकारात्मक सुझाव देकर इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। उसके चेहरे पर एक आत्मविश्वास की चमक थी, उस दिन से उसकी वह ‘‘मनोवैज्ञानिक‘‘ समस्या धीरे-धीरे दूर होने लगी थी।

लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
(कहानी के पात्र, स्थान, घटनाक्रम आदि काल्पनिक हैं)

2 टिप्‍पणियां :

  1. ये दिक्कत तो मुझे भी है संजय जी

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    1. प्रयास से दूर हो जाएगी ! आदरणीय योगी जी!

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