विदुर-नीति |
‘‘विदुर-नीति’’
महाभारत का एक अत्यंत प्रसिद्ध और परम उपादेय प्रसंग है। महात्मा विदुर ने
भी नीति संबंधी बहुत महत्वपूर्ण बातें राजा धृतराष्ट्र को संबोधित करते
हुये कहीं हैं, मैं उनमें से कुछ महत्वपूर्ण श्लोक आपके ज्ञानार्थ प्रस्तुत
कर रहा हूँ-
महात्मा विदुर
बताते हैं किसे जागने का रोग लग जाता है-’’जिसका बलवान के साथ विरोध हो
गया हो, उस साधनहीन दुर्बल मनुष्य को जिसका सब कुछ हर लिया गया हो, कामी
को, तथा चोर को रात में जागने का रोग लग जाता है।‘‘।। 13।।
विदुर कहते हैं, बुद्धिमान की बुद्धि का कोई विकल्प नहीं है-‘‘किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण सम्भव है एक को भी मारे या न मारे, मगर बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती हैं।’’।। 48।।
विदुर कहते हैं, बुद्धिमान की बुद्धि का कोई विकल्प नहीं है-‘‘किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण सम्भव है एक को भी मारे या न मारे, मगर बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती हैं।’’।। 48।।
महात्मा विदुर बताते हैं, किस को छोड़कर हम सुखी हो सकते हैं-‘‘एक (बुद्धि) से दो (कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य) का निश्चय करके चार (साम-दाम-भेद-दण्ड) से तीन (शत्रु, मित्र तथा उदासीन) को वश में कीजिये। पांच (इन्द्रियों) को जीतकर छः (सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव और समाश्रय रूप) गुणों को जानकर तथा सात (स्त्री, जूआ, मृगया, मद्य, कठोर वचन, दण्ड की कठोरता और अन्याय से धन का उपार्जन) को छोड़कर सुखी हो जाइये।’’।। 49।।
महामना विदुर कहते हैं, निम्न कार्य अकेले नहीं करने चाहिये-‘‘अकेले स्वादिष्ट भोजन न करें, अकेले किसी विषय का निश्चय न करें, अकेले रास्ता न चले और जहां बहुत से लोग सोये हों उनमें अकेला न जागते रहे।’’।। 51।।
महामना विदुर
कहते हैं-‘‘जो धनी होने पर भी दान न दे और दरिद्र होने पर भी कष्ट सहन न
कर सके-इन दोनों प्रकार के मनुष्यों को गले में मजबूत पत्थर बांधकर पानी
में डुबो देना चाहिये।’’।। 65।।
महाराज विदुर कहते हैं-‘‘वरदान पाना, राज्य की प्राप्ति और पुत्र का जन्म-ये तीन एक ओर और शत्रु के कष्ट से छूटना-यह एक तरफ, वे तीन और यह एक बराबर ही हैं।’’।। 72।।
ऐसे लोग को पहचान लेने की सलाह महामना विदुर देते हैं-‘‘थोड़ी बुद्धि वाले, दीर्घसूत्री, जल्दबाज और स्तुति करने वाले (चापलूस) लोगों के साथ गुप्त सलाह नहीं करनी चाहिये-ये चारों महाबली राजा के लिये त्यागने योग्य बताये गये हैं। विद्वान पुरूष ऐसे लोगों को पहचान लें।’’।। 74।।
महाराज विदुर कहते हैं-‘‘वरदान पाना, राज्य की प्राप्ति और पुत्र का जन्म-ये तीन एक ओर और शत्रु के कष्ट से छूटना-यह एक तरफ, वे तीन और यह एक बराबर ही हैं।’’।। 72।।
ऐसे लोग को पहचान लेने की सलाह महामना विदुर देते हैं-‘‘थोड़ी बुद्धि वाले, दीर्घसूत्री, जल्दबाज और स्तुति करने वाले (चापलूस) लोगों के साथ गुप्त सलाह नहीं करनी चाहिये-ये चारों महाबली राजा के लिये त्यागने योग्य बताये गये हैं। विद्वान पुरूष ऐसे लोगों को पहचान लें।’’।। 74।।
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अपने घर में ऐसे लोगों को सदा रखने की सलाह महामना विदुर देते हैं-‘‘गृहस्थ में स्थित लक्ष्मीवान को अपने घर में इन चार प्रकार के मनुष्यों को सदा रखना चाहिये-अपने कुटुम्ब का बूढ़ा, संकट में पड़ा हुआ उच्च कुल का मनुष्य, धनहीन मित्र और बिना संतान की बहन।’’।। 75।।
इन व्यक्तियों की मन से सेवा करने की सलाह महात्मा विदुर देते हैं-‘‘पिता, माता, अग्नि, आत्मा और गुरू-मनुष्य को इन पांच अग्नियों की बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिये।’’।। 79।।
अपने घर में ऐसे लोगों को सदा रखने की सलाह महामना विदुर देते हैं-‘‘गृहस्थ में स्थित लक्ष्मीवान को अपने घर में इन चार प्रकार के मनुष्यों को सदा रखना चाहिये-अपने कुटुम्ब का बूढ़ा, संकट में पड़ा हुआ उच्च कुल का मनुष्य, धनहीन मित्र और बिना संतान की बहन।’’।। 75।।
इन व्यक्तियों की मन से सेवा करने की सलाह महात्मा विदुर देते हैं-‘‘पिता, माता, अग्नि, आत्मा और गुरू-मनुष्य को इन पांच अग्नियों की बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिये।’’।। 79।।
निम्न की पूजा करने की सलाह महात्मा विदुर देते हैं-‘‘देवता, पितर, मनुष्य, संन्यासी और अतिथि-इन पांचों की पूजा करने वाला मनुष्य शुद्ध यश प्राप्त करता है।’’।। 80।।
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इन छः दुर्गुणों का त्याग करने की सलाह महामना विदुर देते हैं-‘‘ऐश्वर्य या उन्नति चाहने वाले पुरूषों को नींद, तन्द्रा (ऊंघना), डर, क्रोध, आलस्य तथा दीर्घसू़त्रता (जल्दी हो जाने वाले कार्य में अघिक देरी लगाने की आदत) इन छह दुर्गुणों का त्याग देना चाहिये।’’।। 83।।
निम्न का त्याग करने की सलाह विद्वान विदुर देते हैं-‘‘उपदेश न देने वाले आचार्य, मन्त्रोच्चारण न करने वाला होता, रक्षा करने में असमर्थ राजा, कटु वचन बोलने वाली स्त्री, ग्राम में रहने की इच्छा वाले ग्वाले तथा वन में रहने की इच्छा करने वाले नाई-इन छः को उसी भांति छोड़ देना चाहिये, जैसे समुन्द्र की सैर करने वाला मनुष्य फटी हुई नाव का त्याग कर देता है।‘‘।। 84.85।।
महामना विदुर कहते हैं-‘‘निम्न छः प्रकार के मनुष्य छः प्रकार के लोगों से अपनी जीविका चलाते हैं, सातवें की उपलब्धि नहीं होती। चोर असावधान पुरूष से, वैद्य रोगी से, मतवाली स्त्रियां कामियों से, पुरोहित यजमानों से, राजा झगड़ा करने वालों से तथा विद्वान पुरूष मूर्खो से अपनी जीविका चलाते हैं।’’।। 89.90।।
इन छः दुर्गुणों का त्याग करने की सलाह महामना विदुर देते हैं-‘‘ऐश्वर्य या उन्नति चाहने वाले पुरूषों को नींद, तन्द्रा (ऊंघना), डर, क्रोध, आलस्य तथा दीर्घसू़त्रता (जल्दी हो जाने वाले कार्य में अघिक देरी लगाने की आदत) इन छह दुर्गुणों का त्याग देना चाहिये।’’।। 83।।
निम्न का त्याग करने की सलाह विद्वान विदुर देते हैं-‘‘उपदेश न देने वाले आचार्य, मन्त्रोच्चारण न करने वाला होता, रक्षा करने में असमर्थ राजा, कटु वचन बोलने वाली स्त्री, ग्राम में रहने की इच्छा वाले ग्वाले तथा वन में रहने की इच्छा करने वाले नाई-इन छः को उसी भांति छोड़ देना चाहिये, जैसे समुन्द्र की सैर करने वाला मनुष्य फटी हुई नाव का त्याग कर देता है।‘‘।। 84.85।।
महामना विदुर कहते हैं-‘‘निम्न छः प्रकार के मनुष्य छः प्रकार के लोगों से अपनी जीविका चलाते हैं, सातवें की उपलब्धि नहीं होती। चोर असावधान पुरूष से, वैद्य रोगी से, मतवाली स्त्रियां कामियों से, पुरोहित यजमानों से, राजा झगड़ा करने वालों से तथा विद्वान पुरूष मूर्खो से अपनी जीविका चलाते हैं।’’।। 89.90।।
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महात्मा विदुर कहते हैं-‘‘क्षण भर भी देखरेख न करने से गौ, सेवा, खेती, स्त्री, विद्या तथा शूद्रों(?) से मेल-ये छः चीजें नष्ट हो जाती हैं।’’।। 91।।
विद्वान विदुर कहते हैं, ये छः सदा अपने पूर्व उपकारी का अनादर करते हैं-‘‘शिक्षा समाप्त हो जाने पर शिष्य आचार्य का, विवाहित बेटे माता का, कामवासना की शान्ति हो जाने पर मनुष्य स्त्री का, कृतकार्य पुरूष सहायक का, नदी की दुर्गम धारा पार कर लेने वाले पुरूष नाव का तथा रोगी पुरूष रोग छूटने के बाद वैद्य का तिरस्कार कर देते हैं।’’।। 92-93।।
महात्मा विदुर कहते हैं-‘‘क्षण भर भी देखरेख न करने से गौ, सेवा, खेती, स्त्री, विद्या तथा शूद्रों(?) से मेल-ये छः चीजें नष्ट हो जाती हैं।’’।। 91।।
विद्वान विदुर कहते हैं, ये छः सदा अपने पूर्व उपकारी का अनादर करते हैं-‘‘शिक्षा समाप्त हो जाने पर शिष्य आचार्य का, विवाहित बेटे माता का, कामवासना की शान्ति हो जाने पर मनुष्य स्त्री का, कृतकार्य पुरूष सहायक का, नदी की दुर्गम धारा पार कर लेने वाले पुरूष नाव का तथा रोगी पुरूष रोग छूटने के बाद वैद्य का तिरस्कार कर देते हैं।’’।। 92-93।।
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-लेखक-संजय कुमार गर्ग
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)
उत्तम रचना
जवाब देंहटाएंकमेंट्स के लिए आभार! आदरणीया हर्षिता जी!
हटाएंउम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन
आदरणीय चतुर्वेदी जी, ब्लॉग पर आने व् कमेंट्स करने सादर आभार!
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