यूं ही बेहिसाब न फिरा करो..... मुक्तक और रूबाइयां-7


यूं ही बेहिसाब न फिरा करो...
यूं ही बेहिसाब न फिरा करो...
यूं  ही  बेहिसाब  न फिरा करो,  कोई शाम घर भी रहा करो 
वो गजल की सच्ची  किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो 
कोई  हाथ  भी  न  मिलायेगा,  जो  गले  मिलोगे तपाक से, 
ये नये  मिजाज  का  शहर है,  जरा  फासले से  मिला करो।
-बशीर बद्र

शरहे-गम1 तो मुख्तसर2 होती  गयी उनके हूजुर3
लफ्ज  जो  मुंह से  न निकला दास्तां बनता गया
मैं  अकेला  ही  चला  था  जानिबे-मंजिल4  मगर
लोग  साथ  आते  गये  और कारवां बनता गया।

     1गम की व्याख्या 2संक्षिप्त 3सामने 4मंजिल की ओर
-मजरूह सुल्तानपुरी

   मौसम  का  क्या  ठौर-ठिकाना  जोडे़   हाथ  चला जाये
  फागुन  बन कर आया था, जो सावन बनकर छा जाये
  पल है  थोड़े, रस  हैं  ज्यादा,  पीना  लेकिन  खोना  ना
  ऐसा  न   हो गायक  चुप  हो,   सुनने  वाला  गा जाये।

-वीरेन्द्र मिश्र

खाली  है  अभी  जाम, मैं कुछ सोच रहा हूँ
ऐ  गर्दिशे-अय्याम1  मैं  कुछ  सोच रहा हूँ
पहले  बड़ी रगबत थी तेरे नाम से मुझको
अब सुनके तेरा नाम मैं कुछ सोच रहा हूँ।
1कालचक्र प्यार
-अदम

बुझती  हुई शम्माएं होती  हैं, डुबे  हुये  तारे होते हैं
महफिल के उजड़ने से पहले आसार ये सारे होते हैं
बर्बादे-मोहब्बत  पर  ऐसा इक दौर भी आ जाता है
आगोश में सूरज होता है, पलकों पे सितारे होते है।

-शोर अलीम 

क्या हुआ  इनको कि भागे जा रहे हैं
घर, डगर, गिरिवर छलांगे जा रहे हैं
कौन-सा रसरूप  धरती  पर  नहीं है
खोज  में  जिसकी अभागे जा रहे हैं।

-आनन्द मिश्र

संकलन-संजय कुमार गर्ग 
 (चित्र गूगल-इमेज से साभार!)

8 टिप्‍पणियां :

  1. खूबसूरत रुलाइयाँ और मुक्तक।

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    1. आदरणीया आशा जी! ब्लॉग को पढ़ने व् कमेंट्स करने के लिए धन्यवाद!

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  2. उत्तर
    1. आदरणीय ओंकार जी! ब्लॉग को पढ़ने व् कमेंट्स करने के लिए धन्यवाद!

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  3. Sanjay jib, bahut umda sankalp he. Aapki ruchi janmanas Ki ruchi bante der nahin lagegi.

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    1. आदरणीय गुप्ता जी, आपकी टिप्पणी पढ़ कर मुझे नभाटा याद आ गया, आप का प्यार था जो मेरे अच्छे बुरे सब आलेखों की तारीफे मिलती थी, आप की हार्दिक टिप्पणी के लिए धन्यवाद, गुप्ता जी!

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  4. बहुत ही बढ़िया👍👌👌

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