चाणक्य के अनुसार शत्रु पर कैसे विजय पायें!

चाणक्यनीति
चाणक्य नीति 
महात्मा चाणक्य बताते हैं कि-कांसा, राख और तांबा खटाई में डालने से, बाढ़ आने पर नदी और रजस्वला होने के बाद स्त्री शुद्ध होती है। ।।6/3।।

चाणक्य समझाते हैं कि हमारी बुद्धि समयानुसार काम करती है-जैसी होनी होती है (भवितव्यता), वैसी ही सहायता मिलती है। उस समय बुद्धि भी समयानुसार हो जाती है और सब उपाय स्वयं ही बन जाते हैं। ।।6/6।।

काल को सबसे शक्तिशाली मानते हुये ऋषिवर कहते हैं-काल ही जड़ और चेतना का नाश करता है। काल ही संसार का संहार करता है और काल ही सदा जागृत रहता है। काल का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता। ।।6/7।।

चाणक्य निम्न बातों को किसी को न बताने की सलाह देते हैं-अपने मन का दुःख और धन का नाश कभी नहीं कहना चाहिये तथा घर का दोष व अपने आप को ठगे जाने पर भी बुद्धिमान को उसे कभी किसी से नहीं कहना चाहिये। ।।7/1।।

किस से कितनी दूर रहना चाहिये कोटिल्य समझाते हैं-गाड़ी से पांच हाथ पर, घोड़े से दस हाथ पर, हाथी से हजार हाथ दूर रहना चाहिये और दुर्जनों का तो कभी साथ नहीं करना चाहिये। ।।7/6।।

किस प्रकार के शत्रु से किस प्रकार विजय पायें चाणक्य बताते हैं कि-बलवान शत्रु को उसके अनुकूल व्यवहार करने से, यदि शत्रु दुर्बल है तो उसके प्रतिकूल व्यवहार करने से जीतना चाहिये और समान शक्ति वाले शत्रु को विनय अथवा बल से जीतना चाहिये। ।।7/9।।

चाणक्य समझाते हैं कि निम्न व्यक्तियों को नरकवासी ही जानना चाहिये-अत्यन्त क्रोध, कटु वचन, दरिद्रता, नीचों का संग, अपने जनों से बैर लगाकर कुलहीनों की सेवा, ये सब चिन्ह नरकवासियों की देह में रहते हैं। ।।7/16।।

चाणक्य कहते हैं कि निम्न कार्यो के बाद स्नान अवश्य करना चाहिये-चिता का धुंआ लग जाने पर, स्त्री प्रसंग करने पर, तेल लग जाने पर, बाल बनाने पर, तब तक आदमी चाण्डाल ही बना रहता है तब तक वह स्नान न कर ले। ।।8/6।।

चाणक्य समझाते हैं कि-शांति के समान दूसरा तप नहीं है, न संतोष से बड़ा सुख है, तृष्णा जैसी कोई व्याधि नहीं और दया के समान कोई धर्म नहीं है। ।।8/13।।

ऐसे यज्ञ को चाणक्य प्रबल शत्रु बताते हैं-ऐसे यज्ञ के समान दूसरा प्रबल शत्रु नहीं है, क्योंकि मन्त्रहीन यज्ञ यज्ञकर्ता को दानहीन यज्ञ यजमान को और अन्नहीन यज्ञ राज्य को नष्ट कर देता है। ।।8/23।।

चाणक्य बताते हैं कि ये कार्य इन्द्र की लक्ष्मी को भी हर लेते हैं-अपने हाथ से गूथीं हुई माला, अपने हाथ से घिसा हुआ चंदन और अपने हाथ से लिखा हुआ स्तोत्र इन्द्र की लक्ष्मी को भी हर लेता है। ।।9/12।।
संकलन-संजय कुमार गर्ग 
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)

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