हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकलें मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले
मौहब्बत में नहीं कुछ फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते हैं, जिस काफिर पे दम निकलें।
-गालिब
बहुत निकलें मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले
मौहब्बत में नहीं कुछ फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते हैं, जिस काफिर पे दम निकलें।
-गालिब
(2)
नजर में ढलके उभरते हैं दिल के अफसाने
ये और बात है दुनिया नजर न पहचाने
वो बज्म देखी है मेरी निगाह ने कि जहां
बगैर शमा भी जलते हैं परवाने ।
-तबस्सुम
ये और बात है दुनिया नजर न पहचाने
वो बज्म देखी है मेरी निगाह ने कि जहां
बगैर शमा भी जलते हैं परवाने ।
-तबस्सुम
(3)
प्यास बुझती ही नहीं है पी चुका हूं मैं जहर भी
श्वास के अति पास आकर चल दिया अंतिम प्रहर भी
टूटकर भी दिल न टूटा, हाय अब तक है धड़कता
सांस रूकती ही नहीं है, सह चुका जग के कहर भी।
-हरि कृष्ण प्रेमी
प्यास बुझती ही नहीं है पी चुका हूं मैं जहर भी
श्वास के अति पास आकर चल दिया अंतिम प्रहर भी
टूटकर भी दिल न टूटा, हाय अब तक है धड़कता
सांस रूकती ही नहीं है, सह चुका जग के कहर भी।
-हरि कृष्ण प्रेमी
(4)
चांद से रात का श्रृंगार अमर होता है
सूर्य से भोर का उजियार अमर होता है
मुझसे तुम व्यर्थ व्यथाओं की शिकायत न करो
पीर की छाॅव पला प्यार अमर होता है।
-शेरजंग गर्ग
चांद से रात का श्रृंगार अमर होता है
सूर्य से भोर का उजियार अमर होता है
मुझसे तुम व्यर्थ व्यथाओं की शिकायत न करो
पीर की छाॅव पला प्यार अमर होता है।
-शेरजंग गर्ग
(5)
किसी से मेरी मंजिल का पता पाया नहीं जाता
जहां मैं हूं फरिश्तों से वहां जाया नहीं जाता
मेरे टूटे हुये पा-ए-तलब* का मुझ पे अहसां हैं
तुम्हारे दर से उठकर अब कहीं जाया नहीं जाता।
इच्छा रूपी पाव*
किसी से मेरी मंजिल का पता पाया नहीं जाता
जहां मैं हूं फरिश्तों से वहां जाया नहीं जाता
मेरे टूटे हुये पा-ए-तलब* का मुझ पे अहसां हैं
तुम्हारे दर से उठकर अब कहीं जाया नहीं जाता।
इच्छा रूपी पाव*
-मखमूर देहलवी
(6)
बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ! जिन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं
तबियत अपनी घबराती है, जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं।
-फिराक गोरखपुरी
संकलन-संजय कुमार गर्ग
बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ! जिन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं
तबियत अपनी घबराती है, जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं।
-फिराक गोरखपुरी
संकलन-संजय कुमार गर्ग
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)
मुक्तक/शेरों-शायरी के और संग्रह
यास बुझती ही नहीं है पी चुका हूं मैं जहर भी
जवाब देंहटाएंश्वास के अति पास आकर चल दिया अंतिम प्रहर भी
टूटकर भी दिल न टूटा, हाय अब तक है धड़कता
सांस रूकती ही नहीं है, सह चुका जग के कहर भी।
Badhiya !!
कमैंट्स के लिए धन्यवाद! आदरणीय योगी जी!
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