मुमताज राशिद की 5 बेस्ट गजलें!
(1)
चूमकर मदभरी आंखों से गुलाबी.........
चूमकर मदभरी आंखों से गुलाबी कागज
उसने भेजा है मेरे नाम शराबी कागज।
उसके हाथों में गुलाब की महक है शायद
उसके छूने से हुआ सारा गुलाबी कागज।
उसका खत पाते ही मैखाने की याद आती है
कहीं मुझको भी बना दे ना शराबी कागज।
कहीं में उसका पता भूल न जाऊं ‘राशिद’
मुझको लिखता वह हर बार जबाबी कागज।
(2)
भूल जाने का हौंसला न हुआ
दूर रहकर भी वह जुदा न हुआ
तुझसे मिलकर किसी से क्या मिलते
कोई तुझ जैसा दूसरा न हुआ।
मेरे शेरों में उसकी सूरत है
जिसको देखे हुए जमाना हुआ।
सिर्फ उससे वफा न की ‘राशिद’
जो कभी हमसे बेवफा न हुआ।
(3)
आंसुओं के रंग उभरे और हंसी अच्छी लगी
मिल गये जब तुम तो अपनी जिन्दगी अच्छी लगी।
अपनी नजरों में खुद अपने गम की कीमत बढ़ गयी
आज मुझको उसकी आंखों में नमी अच्छी लगी।
आज पहली बार उसने गुनगुनाए मेरे शेर
आज पहली बार अपनी शायरी अच्छी लगी।
ऐसा लगता है फिर अपनी उलझनें बढ़ जायेगी
आज फिर मुझको किसी की सदगी अच्छी लगी।
अपनी गजलों में उतर आयी है सावन की घटा
जब से ‘राशिद’ हमकों कोई सांवली अच्छी लगी।
(4)
पत्थर सुलग रहे थे कोई नक्शे-पां ना था 'पैंरो के निशान'
हम जिस तरफ चले थे उधर रास्ता न था।
परछाइयों के शहर की तनहाइयां न पूछ
अपना शरीक-ए-गम कोई अपने सिवा न था।
यूं देखती है गुमशुदा लम्हों के मोड़ से
इस जिन्दगी से जैसे कोई वास्ता न था।
पत्तों के टूटने की सदा घुटके रह गयी
जंगल में दूर-दूर तक हवा का पता न था।
‘राशिद’ सुनाते हम भी गली में तेरी गजल
उसके मकां का कोई दरीचा खुला न था।
(5)
आज वहीं गीतों की रानी.........
आज वहीं गीतों की रानी, आज वही जान-ए-गजल
चलते-चलते राह में जिसका, साथ हुआ था पल दो पल।
इक-इक लम्हा बढ़ती जाए, फिर भी दिल बेचैन नहीं
गम की रात है या फैला है, तेरी यादों का काजल।
मंजिल के बदले पाऊंगा, कुछ यादें और कुछ आंसू
मुझको यह मालूम है लेकिन, साथ मेरे कुछ दूर तो चल।
‘राशिद’ सब लोगों ने उनको, गजलें नज्में गीत कहा
दिल के कागज पर जो बरसा, उसकी यादों का बादल।
संकलन-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com
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