चाणक्य के अनुसार निम्न गुण स्वभाविक होतें हैं!

चाणक्य 
कार्य किस प्रकार करें महात्मा चाणक्य सुझाव देते हैं कि "आंख से देखकर पांव रखना चाहिये, कपड़े से छानकर जल पीना चाहिये और मन से शुद्ध कर अर्थात विचार कर कार्य करना चाहिये।" ।। 10/2।।
 
चाणक्य बताते हैं कि निम्न व्यक्ति क्या नहीं कर सकते हैं-"स्त्रियां क्या नहीं कर सकती? कवि क्या नहीं देखते? शराबी क्या नहीं बक देते और कागा क्या नहीं खा लेता।" ।। 10/4।।

चाणक्य समझाते हैं कि "ऐसी कोई युक्ति नहीं है जिससे दुर्जन मनुष्य सज्जन बन सकें, क्योंकि मलेन्द्रिय को चाहे सैकड़ों बार धुलवाया जाये वह कभी भी अच्छी इन्द्रिय नहीं बन सकती।" ।। 10/10।।
 
चाणक्य बताते हैं कि क्या खाने से शरीर की किस प्रकार वृद्धि होती है-"शरीर को दूध बढ़ाता है और शाक खाने से रोग? बढ़ते हैं। मांस खाने से पेशियां और घी खाने से वीर्य बढ़ता है।" ।। 10/20।।

महात्मा चाणक्य बताते हैं कि निम्न गुण स्वाभाविक होते हैं-"मीठी बोली, उचित-अनुचित का ज्ञान, उदारता और धीरता ये अभ्यास से नहीं मिलते, ये गुण स्वाभाविक होते हैं।" ।। 11/1।।
 
कौटिल्य इस श्लोक में कहते हैं-"अत्यन्त विशाल शरीर होने पर हाथी अंकुश के वश में होता है, क्या अंकुश हाथी जितना बड़ा होता है? दीपक विस्तृत अन्धकार का नाश कर देता है। क्या वह अन्धकार के समान विस्तृत होता है? बड़े-बड़े पर्वत वज्र (आकाश से गिरने वाली बिजली) से फट जाते हैं, क्या वह बिजली पहाड़ों जितनी बड़ी होेती है? जो तेजोमय (शक्तिशाली) है वही बलवान है, मोटेपन अर्थात बाहरी आकार का कोई भेद नहीं है।" ।। 11/3।।

महात्मा चाणक्य कहते हैं कि विद्यार्थियों को निम्न कार्याे का त्याग देना चाहिये-"काम, क्रोध, लोभ, अति निद्रा, अति सेवा, स्वाद और श्रंगार, इन कार्यो को विद्यार्थियों को त्याग देना चाहिये।" ।। 11/10।।
 
चाणक्य ने निम्न प्रकार के गृहस्थी को श्रेष्ठ बताया है-"यदि घर में बुद्धिमान पुत्र हो, प्रियभाषिणी स्त्री हो, धन हो, अतिथि और साधु की सेवा-उपासना होती हो, शिव की भक्ति हो, अपनी स्त्री से संतोष हो, नौकर आज्ञाकारी हो, मिष्ठान व ग्रहण करने योग्य अन्न-पान हो, वह घर बहुत प्रशंसनीय और धन्य है।" ।। 12/1।।

निम्न प्रकार के मनुष्यों को चाणक्य ने व्यवहार कुशल माना है-"अपने जन से प्रसन्नता, दूसरों से दया, दुष्टों के साथ दुष्टता, साधुओं से प्रीति, क्रूर नीचों से अहंभाव, विद्वानों के प्रति सरलता, शत्रु के प्रति वीरता, गुरूओं से क्षमा और स्त्रियों? से छल का व्यवहार करना चाहिये। इस प्रकार से जो नर व्यवहार कुशल हैं वे ही संसार में आदर पाते हैं।" ।।12/3।।
 (चित्र गूगल-इमेज से साभार!)
संकलन-संजय कुमार गर्ग 

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