चाँदी की उर्वशी न कर दे युग के तप संयम को खंडित
भर कर आग अंक में मुझको सारी रात जागना होगा ।
भर कर आग अंक में मुझको सारी रात जागना होगा ।
मैं मर जाता अगर रात भी मिलती नहीं सुबह को खोकर
जीवन का जीना भी क्या है, गीतों का शरणागत होकर,
मन है राजरोग का रोगी, आशा है शव की परिणीता
डूब न जाये वंश प्यास का पनघट मुझे त्यागना होगा॥
जीवन का जीना भी क्या है, गीतों का शरणागत होकर,
मन है राजरोग का रोगी, आशा है शव की परिणीता
डूब न जाये वंश प्यास का पनघट मुझे त्यागना होगा॥
-रामावतार त्यागी
(2)
किस-किस अदा से तूने जलवा दिखा के मारा
आज़ाद हो चुके थे, बन्दा बना के मारा
अव्वल बना के पुतला, पुतले में जान डाली
फिर उसको ख़ुद क़ज़ा* की सूरत में आके मारा
सोसन* की तरह 'अकबर' ख़ामोश हैं यहाँ पर
नरगिस में इसने छिप कर आँखें लड़ा के मारा
मौत* एक कश्मीरी पौधा*
-अकबर इलाहाबादी
(3)
किताबे रिसाले न अखबार पढ़ना
मगर दिल को हर रात एक बार पढ़ना
किताबे, किताबे, किताबे, किताबे
कभी तो वो आँखें,कभी रूखसार पढ़ना
बड़ी पुरसकूँ हैं वो धूप जैसी आँखें
किसी शाम झीलों के उस पार पढ़ना।
-बशीर बद्र
(4)
यूँ इस दिले-नादाँ से रिश्तों का भरम टूटा,
हो झूठी क़सम टूटी या झूठा सनम टूटा ।
ये टूटे खंडहर देखे तो दिल ने कहा मुझसे,
मसनूई* ख़ुदाओं के अबरू का है ख़म टूटा।
बाक़ी ही बचा क्या था लिखने के लिए उसको
ख़त फाड़ के भेजा है, अलफ़ाज़ का ग़म टूटा।
उस शोख़ के आगे थे सब रंगे धनक फीके
वो शाख़े-बदन लचकी तो मेरा क़लम टूटा
झूठे*
झूठे*
-"अना" क़ासमी
(5)
चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया।
सूखा पुराना ज़ख्म नए को जगह मिली
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया।
आतीं न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ
दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया।
ग़म मिलते हैं तो और निखरती है शायरी
यह बात है तो सारे ज़माने का शुक्रिया।
अब मुझको आ गए हैं मनाने के सब हुनर
यूँ मुझसे 'कुँवर' रूठ के जाने का शुक्रिया।
-कुँवर बैचैन
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)
संकलन-संजय कुमार गर्ग
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