नीतियों पर अनेक ग्रंथ भारतीय साहित्य परंपरा में प्राप्त होते हैं, जैसे चाणक्य नीति, विदुर नीति, भृतहरि नीति, घाघ व भण्डरी की नीति व सुभाषितानी के नीति श्लोक आदि। इन सभी नीतियों पर मैंने आलेख लिखें हैं जिनके लिंक आपको यही पर मिल जायेंगे। चाणक्य नीति पर मेरा ये नया आलेख "कौन सी स्त्री चतुर होती है" आपके सम्मुख प्रस्तुत है-
चाणक्य बताते हैं कि ‘‘यह निश्चय है कि आयु, कर्म, धन, विद्या, मृत्यु-ये पाचों बातें जब जीव (मनुष्य) मां के गर्भ में होता है, तभी लिख दी जाती हैं।’’ (4,1)
चाणक्य बताया कि ‘‘तप अकेले में, गाना तीन से, पढ़ना दो से, चार से रास्ता चलना, पांच से खेती करना और बहुतों से युद्ध भली-भांति होता है।’’ (4,12)
महात्मा चाणक्य कहते हैं कि निम्न को त्याग देना चाहिए ‘‘प्रीतिहीन समाज, दयारहित धर्म, विद्या रहित गुरू का त्याग उचित है। जो स्त्री क्रोध प्रगट करती हो उसको भी त्याग देना उचित है।’’ (4,16)
चाणक्य बताते हैं कि निम्न का शत्रु कौन है ‘‘पण्डितों के लिए मूर्ख, दरिद्री मनुष्यों के लिए धनी, विधवा स्त्रियों के लिए सुहागन और कुल वधुओं के लिए कुलटा शत्रु होती है।’’ (5,6)
कोटिल्य बताते हैं कि कौन सी वस्तु कब नष्ट हो जाती है ‘‘दूसरों के हाथों में पड़कर लक्ष्मी नष्ट हो जाती है, उसी प्रकार आलस्य आने से विद्या नष्ट हो जाती है, कम बीज से खेत नष्ट सा रहता है और बिना सेनापति के सेना नष्ट हो जाती है।’’ (5,7) प्रिय पाठकों इससे मिलता जुलता श्लोक सुभाषितानि में भी आया है-‘‘अपनी पैन, पुस्तक और पत्नि किसी अन्य को दी जाये तो वह वापस नहीं आती अर्थात उसे गया हुआ ही समझना चाहिए और यदि दैवयोग से वापस आ भी जाती है तो कलम टूटी हुई, पुस्तक फटी हुई व पत्नि मर्दन की हुई होती है।’’
महात्मा कोटिल्य बताते हैं कि दान दरिद्रता का, शील दुर्गति का, बुद्धि अज्ञान का तथा सद्भावना भय का नाश करती है।’’ (5,11)
चाणक्य बताते हैं कि ‘‘काम (विषय भोग) से बढ़कर कोई व्याधि नहीं, मोह से बढ़कर कोई शत्रु नहीं, क्रोध से बढ़कर कोई अग्नि नहीं और ज्ञान से बढ़कर कोई सुख नहीं होता।’’ (5,12)
चाणक्य समझाते हैं कि-‘‘यह यथार्थ है कि मनुष्य अकेला ही मोक्ष पाता है, वह अकेला ही जन्म लेता है, सुख-दुख भोगकर अकेला ही मर जाता है और अधिक पाप करने पर वह नरक को भी अकेला ही भोगता है।’’ (5,13)
चाणक्य बताते हैं कि कौन चालाक होता है और कौन सी स्त्री चतुर होती है! ‘‘स्त्रियों में मालिन (माली की पत्नि) चतुर होती है, मनुष्यों में नाई चालाक होता है, पक्षियों में कव्वा धूर्त होता है, और पशुओं में गीदड़ धूर्त होता है।’’ (5,21)
चाणक्य बताते हैं पांच कौन हैं जो पिता के समान होते हैं ‘‘अन्न देने वाला, विद्या पढ़ाने वाला, जन्म देने वाला, भय से रक्षा करने वाला और यज्ञोपवीत देने वाला गुरू ये पांच पिता ही कहे जाते हैं।’’ (5,22)
चाणक्य आगे बताते हैं कि इन स्त्रियों को माता ही समझना चाहिए ‘‘राजा की स्त्री, मित्र की स्त्री, गुरू की स्त्री और माता व सास, इन पांचों को माता ही मानना चाहिए।’’ (5,23)
नीतिज्ञ कौटिल्य बताते हैं किसके पाप को कौन भोगता है ‘‘अपने राष्ट्र द्वारा किये हुए पाप का राजा, राजा से हुए पाप को राजपुरोहित, शिष्य से हुए पाप को गुरू और स्त्री द्वारा किये गये पाप को पति भोगता है।’’ (6,10)
महान नीतिज्ञ चाणक्य कहते हैं कि इनके बीच होकर कभी नहीं चलना चाहिए अर्थात इनके झगड़े के बीच में कभी नहीं आना चाहिए ‘‘पति और पत्नि, ब्राह्मण और अग्नि, नौकर और स्वामी, हल और बैल, व दो ब्राह्मण, इनके बीच होकर कभी नहीं चलना चाहिए।’’ (7,4)
चाणक्य समझाते हैं कि इन सब को कभी पैरों से स्पर्श नहीं करना चाहिए ‘‘अग्नि, गुरू, ब्राह्मण, गौ, कुमारी (कन्या), वृद्ध और बालक इनको पैर से नहीं छूना चाहिए।’’ (7,5)
चाणक्य बताते हैं कि जो जितना साहस दिखाता है उतना ही फल उसे प्राप्त होता है ‘‘यदि सिंह की मांद के पास कोई मनुष्य जाता है तो हाथी के गाल की हड्डी का मोती पाता है, और यदि कोई गीदड़ की मांद के पास जाता है तो बछड़े की पूंछ और गधे के चमड़े का टुकड़ा पाता है।’’ (7,17)
चाणक्य बताते हैं कि आत्मा कहां निवास करती है ‘‘जैसे फूल में गन्ध, तिल में तेल, काठ में आग, दूध में घी, ईख में गुड़ रहता है वैसे ही देह में आत्मा रहती है।’’ (7,20)
संकलन-संजय कुमार गर्ग
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