एक मंकी मैन से मुकाबला?



मंकी मैन से मुकाबला
मंकी मैन
अफवाहें मानवीय मनोविज्ञान की एक अबूझ पहेली हैं! कोई बात सुनकर उसे नये प्रकार से बढ़ा-चढ़ाकर किसी और को बताने से अफवाहों का जन्म होता है, अफवाहें भारत में ही नहीं वरन विश्व के अनेक देशों में समय-समय पर उदय-अस्त होती रहती हैं, इन विश्व प्रसिद्ध अफवाहों पर मेरा एक अन्य आलेख आओ!! पढ़ें अफवाहें कैसी-कैसी!! प्रकाशित हो चुका हैं, जो आपके लिए न केवल मनोरंजक बल्कि ज्ञानवर्धक भी होगा! अपने प्रस्तुत आलेख में मैंने "मंकी मैन" की अफवाह पर अपना एक संस्मरण लिखा हैं!
    पाठकजनों!! मैं आप को बता  दूँ कि मैं अधिकतर रात में ही पढ़ने का आदी रहा हूँ, रात के गहन अंधकार, शांति, नीरवता से मुझे विशेष लगाव रहा है। ये घटना लगभग 2003 के आसपास की है। जब ''मंकी मैन'' की अफवाह अपने चरम पर थी। उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक इन ''मंकी मेन्स'' का कथित आंतक था। न्यूज पेपर्स में भी ये ही हैंडिग छाये रहते थे कि मंकी मैन लम्बी-लम्बी छलांगे लगा सकते हैं, वे आदमी को घायल कर देते हैं या मार भी देते हैं, उनके शरीर में करण्ट रहता है आदि आदि। लोगों में इन ''मंकी मैन्स'' का इतना खौफ था कि उन्होंने गर्मियों में छत पर सोना छोड़ दिया था, और उन्होने मंकीज (बन्दर) भी, अपने शहरों से खदेड़ दिये थे, उस समय 'बन्दर' कम से कम हमारे शहर से तो लापता हो गये थे।
     रात के करीब ढाई से तीन बजे होगें। मैं अपने तीसरी मंजिल के एकमात्र स्टडी रूम में रिलेक्श होने के लिए चहलकदमी कर रहा था। अचानक मेरी नजर दीवार पर बैठे आदमकद मंकी मैन पर पड़ी, मैं एक दम बुरी तरह घबरा गया, चूंकि मेरे शहर में भी कुछ व्यक्तियों ने मंकी मैन की कथित उपस्थिती दर्ज कराई थी, इस लिए घबराना स्वभाविक था।
      मैं तुरन्त खिड़की से हट गया और अपने कमरे की लाइट बन्द कर दी, उससे बाहर का तो नजर आ सकता था, परन्तु अन्दर कमरे का कुछ भी बाहर से, दिखाई नहीं दे सकता था। मैंने अपनी गन निकाल ली और उसकी मैंगजीन खोलकर उसे लोड करने लगा, कि आज इस मंकी मैन का काम तमाम करके रहूंगा।
मंकी मैन से मुकाबला      पाठकजनों! हथियार रखने वालों को मेरी एक निजी सलाह है कि वे ''हाथ और हथियार" के बीच में एक निश्चित दूरी रखें। मेरा मानना है कि मन 'बच्चे' की तरह होता है, वह तुरत-फुरत में निर्णय लेता है, उसे अपने अनुभवी, 'बुद्धि' व 'विवेक' नामक बड़े भाइयों का सहारा चाहिए। परन्तु 'मन' जल्दबाजी या घबराहट में उनसे सलाह नहीं लेता और तुरन्त निर्णय ले डालता है।
      कुछ साल पहले एक न्यूज सुर्खियों में रही थी कि एक विदेशी विकलांग ओल्मपियाड स्वर्ण पदक विजेता ने अपनी 'गर्ल फ्रेंड' को लुटेरा समझ कर वाशरूम के बन्द दरवाजे के बाहर से ही फायरिंग करके मार डाला। उसने अपने 'बुद्धि'-'विवेक' से ये नहीं सोचा कि लुटेरा वाशरूम में क्या चोरी करने जायेगा? बेचारी गर्लफ्रेड, अपने शारीरिक रूप से विकलांग तथा ''कथित मानसिक'' रूप से भी विकलांग बायफ्रेड को, बर्थडे का ''सरप्राइज गिफ्ट'' देने, दूसरी चाबी से फ्लेट का दरवाजा खोलकर, आई थी और वाशरूम में फ्रेश होने चली गई थी, परन्तु उसके कथित बायफ्रेड ने, उससे बिना ''सरप्राइज गिफ्ट'' लिये उसे ''मौत'' को ''रिटर्न गिफ्ट'' दे डाला।
      उसके बाद मैंने एक दुःसाहसिक निर्णय ले डाला, क्यों न 'मंकी मैन' को पास से देखा जाये और यदि वो हमला करता है तो अपने बचाव में उस पर प्रतिवार किया जाये।
      पाठक जनों !! मानस प्रवृति बड़ी अजीब होती है- ''जब मनुष्य जवान होता है, तो मौत से डरता नहीं, जबकि उसे डरना चाहिए, क्योंकि उसके ऊपर पत्‍नी-छोटे बच्चों व बुजुर्ग मां-बाप की जिम्मेदारी होती है, और जब वो बूढ़ा हो जाता है, तब मौत से डरता है, जबकि उसे डरना नहीं चाहिए, क्योंकि वो अपनी जिम्मेदारी से निवृत हो जाता है और प्राकृतिक रूप से मौत की ओर बढ़ रहा होता है।''
      मैंने धीरे से तीसरी मंजिल की छत का दरवाजा खोला और लाइट जला दी। लाइट जलते ही सारी छत पर प्रकाश फैल गया। पाठक जन! पढ़कर हैरान होंगे कि वो ''मंकी मैन'' नहीं था, केवल ''मंकी'' था, जो मुझ जेसे  ''मैंटल मैन'' को दूसरे बल्ब की रोशनी से, उसकी परछाई, दीवार पर एक ''आदमकद मंकी'' की तरह दिखाई दे रही थी।
      मुझे देखकर वो एकदम घबरा गया, और धीर-धीरे वहां से जाने लगा, शायद वो बीमार था या बहुत भूखा था। मेरा भय और गुस्सा एकदम करुणा में बदल गया, मैंने धीरे से उसे पुचकारकर बुलाया और अपने कमरे में रखें, बिस्कुट निकालकर उसकी तरफ उछाल दिये और गेट बन्द करके अपनी स्टडी में लग गया।
      वह कथित ''मंकी मैन'' (बन्दर) काफी समय तक मेरी लम्बी-लम्बी रातों का साथी रहा। दिन में वह छत पर स्थित टंकी के नीचे छुपा रहता, और शाम को मेरे स्टडी रूम में आते ही वो ऊपर से नीचे आ जाता, मेरी खिड़की के पास आकर बैठ जाता, वही सोता। मैं उसके खाने की पूरी व्यवस्था जो करके रखता था। 'मंकी मैन' की कथित अफवाहों के समाप्त होते ही, वह ''मंकी'' भी एक दिन अचानक वहां से गायब हो गया। कदाचित उसे अपने मिल गये थे?
-लेखक-संजय कुमार गर्ग  sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
 (चित्र गूगल-इमेज से साभार!)

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