विदुर नीति के अनुसार लक्ष्मी किस पर कृपा करती हैं!


विदुर नीति के अनुसार लक्ष्मी किस पर कृपा करती हैं!
विदुर नीति
महाभारत काल के महान नीतिज्ञ विदुर जी ने बताया कि प्रकृति हमें अपने बुरे कर्मो के लिये किस प्रकार दंडित करती है- "ईश्वर चरवाहों की तरह डंडा लेकर पहरा नहीं देते, वे जिनकी रक्षा करना चाहते हैं, उन्हें उत्तम बुद्धि से युक्त कर देते हैं और जिनका बुरा करना होता है उनकी बुद्धि को भ्रष्ट कर देते हैं।" ।।40/3।।

नीतिज्ञ विदुर के अनुसार निम्न कार्य हमें भयमुक्त व भययुक्त दोनों कर सकते हैं-"आदर के साथ अग्निहोत्र, आदरपूर्वक मौन का पालन, आदर पूर्वक स्वाध्याय और आदर के साथ यज्ञ का अनुष्ठान-ये चार कर्म भय को दूर करने वाले हैं, किंतु यदि ये ठीक प्रकार से सम्पादित न हों तो ये ही भय को प्रदान करने वाले बन जाते हैं।" ।।45/3।।

महात्मा विदुर कितनी सुन्दर बात इस श्लोक में लिखते हैं-"बुढ़ापा सुन्दर रूप को, आशा धीरता को, मृत्यु प्राणों को, दोष देखने की आदत धर्माचरण को, क्रोध लक्ष्मी को, नीच पुरूषों की सेवा सत्स्वभाव को, काम लज्जा को, और अभिमान सर्वस्व नष्ट कर देता है।" ।।50/3।।

लक्ष्मी किस व्यक्ति पर कृपा करती हैं विदुर कहते हैं कि-"शुभ कर्मो से लक्ष्मी की उत्पत्ति होेती है, प्रगल्भता से वह बढ़ती है, चतुरता से जड़ जमा लेती है और संयम से सुरक्षित रहती है।" ।।50/3।।


महात्मा विदुर कहते हैं कि निम्न आठ गुण मनुष्य की शोभा बढ़ा देते हैं-"बुद्धि, कुलीनता, दम, शास्त्र ज्ञान, पराक्रम, ज्यादा न बोलना, यथा क्ति दान देना और समय पर काम आने वालों के प्रति कृतज्ञ होना।" ।।52/3।।

महात्मा विदुर ने धर्म के आठ मार्ग बतायें हैं-"यज्ञ, अध्ययन, दान, तप, सत्य, क्षमा, दया और अलोभ (लालच रहित)-ये धर्म के आठ प्रकार के मार्ग बताये गये हैं।" ।।57/3।।


विदुर ऐसी सभा (मिटिंग) को सभा नहीं मानते थे-"जिस सभा में बड़े-बुढ़े न हो वह सभा, सभा नहीं, जो धर्म की बात न कहे, वे बुढ़े नहीं, जिसमें सत्य नहीं, वह धर्म नहीं और जो कपट से पूर्ण हो, वह सत्य नहीं।" ।।58/3।।

महात्मा विदुर ने निम्न दस साधन स्वर्ग के बताये हैं-"सत्य, विनय का भाव, शास्त्र ज्ञान, विद्या, कुलीनता, शील, बल, धन, शूरता और चमत्कारपूर्ण? बात कहना-ये दस स्वर्ग के साधन हैं।" ।।59/3।।

दिन, माह, वर्ष व उम्र भर कैसे सुखी रहे, विदुर जी कहते हैं कि-"दिन भर में वह कार्य कर लें, जिससे रात में सुख से सो सके और आठ महीनों में वह कार्य कर लें, जिससे वर्षा के चार महीने सुख से व्यतीत हो सकें, पहली अवस्था में वह कार्य करें, जिससे वृद्धावस्था में सुख-पूर्वक रह सके और जीवन भर वह कार्य करें, जिससे मरने के बाद भी सुख से रह सके।" ।।68/3।।

विदुर कहते हैं कि निम्न कार्यो की प्रशंसा कब होती है-"सज्जन पुरूष पच जाने पर अन्न की, निश्कलंक जवानी बीत जाने पर स्त्री की, संग्राम जीत लेने पर शूर की और तत्वज्ञान प्राप्त हो जाने पर तपस्वी की प्रशंसा करते हैं।" ।।69/3।।
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)-

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