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चाणक्य |
चाणक्य ने बताया कि निम्न कार्यो में सहयोग करने वाले ही सच्चे मित्र होते हैं-"बीमार पड़ने पर, दुःख पहुंचने पर, अकाल के समय, बैरियों (शत्रुओं) से कष्ट पड़ने पर, राजा, कचहरी और मरघट (श्मशान) में जो सहायता करता है। वही सच्चा मित्र-बन्धु समझना चाहिये।" ।।12/1।।
महात्मा कौटिल्य मित्र पर विश्वास करने की सलाह देते हैं अन्धविश्वास करने की नहीं-"कुमित्र पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिये और मित्र पर भी सदैव विश्वास नहीं करना चाहिये, क्योंकि कौन जानता है कि कब मित्र को क्रोध आ जाये और वह तुम्हारे सारे गुप्त भेद खोल दे।"।।6/2।।
कौटिल्य समझाते हैं कि मुंह पर मीठी-मीठी बातें करने वाला सच्चा मित्र नहीं होे सकता-"जो मुंह के सामने बाहरी रुप से मीठी-मीठी बातें करें और पीछे बुराई करें, ऐसे मित्र से भला कब तक निभ सकती है, ऐसे मित्र को विष भरे घड़े के समान घातक जानकर छोड़ देना चाहिये। जिसके मुख में दूध है परन्तु शरीर में जहर भरा हुआ हो।" ।।6/2।।
किस से मित्रता न करें, चाणक्य कहते हैं कि-"दुष्ट जनों की प्रीति सदा छोड़ने योग्य है, जिस प्रकार मृग अग्नि से जलते हुए वन को छोड़ देता है उसी प्रकार दुष्ट जनों की प्रीति भी हमें छोड़ देनी चाहिये। चाणक्य आगे कहते हैं कि मित्रता भी अपने से बराबर वालों से ही करनी चाहिये, बराबर वालों से ही मित्रता शोभा देती है।" ।।19-20/2।।
चाणक्य समझाते हुये कहते हैं कि निम्न व्यक्तियों के मित्र भी भिन्न-भिन्न होते हैं-"विदेश में विद्या मित्र होती है और घर में गृहणी मित्र रुप है, रोगी के लिये औषध मित्र है और मृत प्राणी के लिये धर्म ही सार रूप है, अर्थात वही उसका मित्र है।" ।।15/5।।
चाणक्य कहते हैं कि यदि हमें सांप व दुर्जन मनुष्य में से एक को चुनना हो तो हमें सांप को चुनना चाहिये-"दुष्ट और सांप मेें सांप को ही अच्छा समझना चाहिये, क्योंकि सांप तो समय आने पर या छेड़ने पर ही काटता है परन्तु दुर्जन मनुष्य हर समय अपने बुरे व अपमानजनक कार्याे से हमेशा काटता (दुःखी करता) रहता है।" ।।4/3।।
चाणक्य आगे बताते हैं कि दुर्जन मनुष्य अपनी दुर्जनता कभी नहीं छोड़ सकता-"दुर्जन को चाहे कितना ही कोई पढ़ावे परन्तु वह दुर्जनता को नहीं छोड़ता। नीम के वृक्ष को दूध और घी से सींचा जाये परन्तु फिर भी उसमें मिठास नहीं आती। ।।6/11।।
चाणक्य बताते हैं कि-"दुष्ट मनुष्य को सैकड़ों बार तीर्थस्नान करा लें परन्तु वह फिर भी पवित्र नहीं हो सकता। जैसे मदिरा पात्र अग्नि में जलाया जाने पर भी पवित्र नहीं होता।" ।।6/12।।
चाणक्य कहते हैं कि धनहीन का कोई मित्र नहीं होता-"जिसके पास धन रहता है उसी के सब मित्र और भाई-बन्धु होते हैं, जिसके पास धन है वही पुरूष गिना जाता है और उसी का जीवन सार्थक है।" ।।15/7।।
चाणक्य कहते हैं कि अत्यंत सीधे बनकर न रहोे-"अत्यंत सीधे स्वभाव से नहीं रहना चाहिये क्योंकि वन में जाकर देखो जितने सीधे पेड़ होते हैं सबसे पहले काट दिये जाते है और जितने टेढ़े पेड़ हैं वे खड़े रहते हैं।"।।11/7।।
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)
संकलन-संजय कुमार गर्ग
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८/१५—हे श्वेत कमलों से भरे हुए निर्मल आसन पर विराजनेवाली,श्वेत वस्त्रों से ढके शरीरवाली,खुले हुए कमल के समान मंजुल मुखवाली तथा विद्या देने वाली सरस्वती मैं तुम्हें नित्य प्रणाम करता हूँ .
जवाब देंहटाएंसरस्वती स्त्रोत –प्रस्तुती---अशोक
सुन्दर स्तुति! आदरणीय अशोक जी! साभार!
हटाएंI like it
जवाब देंहटाएंकमेंट्स के लिए धन्यवाद! दीपक जी!
हटाएंSupper
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