शराब-साकी के विभिन्न रूप कवि-शायरों की नजरों से! |
शराब-साकी का नाम आते ही कुछ के चेहरे खिल जाते हैं, तो कुछ नाक-भौं सिकोड़ते हैं और किसी को तो उबकाई तक आने लगती है। हमारे समाज में शराब को लेकर भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियायें देखने को मिलती हैं। परन्तु इन प्रतिक्रियाओं से अहम् हैं वो प्रतिक्रियायें जो शब्द-शिल्पी, कवि-शायरों द्वारा दी जाती हैं। जो रोचक होने के साथ-साथ मनोरंजक भी होती हैं। आओ जाने कुछ कवि-शायरों के मयपरस्ती को लेकर विचार-
हरभजन शाद जी के लिए मयपरस्ती एक इबादत की तरह है-
मयपरस्ती मेरी इबादत है
मैं कभी बेवजू नहीं पीता
मैं शराबी तो हूँ मगर भाई
मुफलिसों का लहू नहीं पीता।
साहिर शाहब ने तो कुछ ज्यादा ही फरमा दिया-
बे-पीये ही शराब से नफरत
यह जहालत नही तो फिर क्या है,
जहद* के बदले खिल्द* में हूरे *पुण्य, *जन्नत
यह तिजारत* नही तो और क्या है। *व्यापार
इकबाल साहब ने तो साकी को ही चैंलेज कर दिया-
नशा पिला के गिराना तो सबको आता है,
मजा तो जब है गिरतों को थाम ले साकी।
अकबर इलाहाबादी जी ने दुनिया वालों को डांटते हुये कहा-
हंगामा क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है,
डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है।
जनाब शाद अजीमाबादी कहते हैं-
खुदा शाहिद* बुरा कहता नहीं जन्नत को मैं लेकिन *गवाह
मजा कुछ और ही है, मैकशी का बादाखाने में।
शिबली साहब ने तो कमाल का तर्क दिया है-
तीस दिन के लिये *तर्के-मय-ओ-साकी कर लूं *मदिरापान का त्याग
*वाइजे-सादा को रोजों में तो राजी कर लूं, *धर्मोपदेशक
फेंक देने की कोई चीज नहीं *फजलो-कमाल *भगवान की अनुकंपा
वर्ना *हासिद! तेरी खातिर मैं ये भी कर लूं। *ईष्यालू
साइल देहलवी साहब ने तो कमाल का लिखा है-
*अहले-महशर देख लू कातिल को तो पहचान लूं *प्रलय क्षेत्र मे जमा लोग
भोली-भाली शक्ल थी और कुछ भला सा नाम था
*मोहतसिब *तसबीह के दानों पे ये गिनता रहा *रसाध्यक्ष *माला
किन ने पी, किन ने न पी, किन-किन के आगे जाम था।
अहसन मारहरवी साहब ने साकी-वाइज की कसमकस का सुन्दर वर्णन किया है-
साकी-ओ-वाइज में जिद है *बादाकश चक्कर में है *शराबी
तौबा लब पर और लब डूबा हुआ सागर में है।
चकबस्त लखनवी ने साकी को ही उलाहना दे डाला-
एक सागर भी इनायत ना हुआ याद रहे
साकिया जाते हैं, महफिल तेरी आबाद रहे।
जिगर मुरादाबादी ने तो वाइज को ही ललकार दिया-
मुझे उठाने को आया है *वाइजे-नादां *नादान धर्मोपदेशक
जो उठा सके तो मेरा *सागरे-शराब उठा *शराब का प्याला
किधर से *बर्क चमकती है, देखें ऐ वाइज *बिजली
मैं अपना जाम उठाता हूं, तो *किताब उठा। *धर्मग्रन्थ
तपिश साहब तो कहते हैं-
मौत आती नहीं करीने की
ये सजा मिल रही है जीने की
मय से परहेज? शेख तौबा करो
इक यही चीज तो है पीने की।
वामिक जौनपुरी साहब लिखते हैं-
मेरी खमोशी से *बरहम न हो मुझसे ऐ दोस्त *नाराज
चलने वाले ही तो दम लेते हैं चलने के लिये
पी लिया करते हैं जीने की तमन्ना में कभी
डगमगाना भी जरूरी है संभलने के लिये।
एक शायर साहब ने कमाल का लिखा है-
खुदा का जिक्र करें या तुम्हारी बात करें
हमें तो इश्क से मतलब है किसी की बात करें
तुम्हारी बज्म में सब *रिन्द भी हैं शेख भी हैं *शराबी
पिये शराब और नेकी बदी की बात करें।
बशीर मेरठी तो सारी परेशानियों का हल ही मयकदा में बताते हैं-
कहां आशुओं की ये सौगात होगी
नये लोग होंगे नयी बात होगी
परेशां हो तुम भी परेशां हूं मैं भी
चलो मैकदे में वहीं बात होगी।
यदि साकी-शराब की बात हो और गालिब साहब की कोई रूबाई न हो तो सब बेकार है, गालिब साहब लिखते हैं-
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकलें मेरे अरमा लेकिन फिर भी कम निकले
कहा मयखाने का दरवाजा गालिब और कहां वाइज
बस इतना याद है कल वो आते थे कि हम निकले।
एक शायर साहब की जिन्दगी ही शराब से शुरू होती है-
मैखाने से शराब से साकी से जाम से
अपनी तो जिन्दगी शुरू होती है शाम से
आ मेरा हाथ थाम बहुत हो गया नशा
यारों ने मय पिला दी बहुत तेरे नाम से।
नक्श लायलपुरी तो इसे लाजवाब चीज मानते हैं-
फिर हाथ में शराब है सच बोलता हूं मैं
ये चीज लाजवाब है, सच बोलता हूं मैं
हाथों में एक जाम है, होठों पे इक गजल
बाकी ख्यालो-ख्वाब है सच बोलता हूं मैं।
अंजुम साहब ने कहा है-
शराब चीज ही ऐसी है ना छोड़ी जाये
ये मेरे यार के जैसी है ना छोड़ी जाये
हरेक शय को जहां में बदलते देखा
मगर ये वैसे की वैसी है ना छोड़ी जाये।
इन शायर साहब को तो केवल मयखाना ही आबाद लगता है वे कहते हैं-
साकिया हम कहां जाये तेरे मयखाने से
शहर के शहर नजर आते हैं वीराने से।
यदि इस संग्रह में बच्चन जी की कालजयी रचना मधुशाला की लाइनें ना आये तो यह संग्रह अधूरा ही रहेगा-
बिना पीये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला
पी लेने पर तो उसके मुंह पर पड़ जायेगा ताला
दास-द्रोहियों दोनों में ही जीत सुरा की, प्याले की
विश्व विजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।
मित्रों! शराब-साकी के बारे में आपकी क्या राय है-
-संकलन-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंकभी दूसरों के ब्लॉग पर भी कमेंट किया करो।
राष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।
Aadarniya Shastri Ji, Blikul karonga, Comments ke liye Dhanyvaad!
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