वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि (01 मई 2023) को मोहनी एकादशी के नाम से जानते हैं। इसी दिन भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के समय मोहनी का अवतार लेकर, समुद्र मंथन से निकले अमृत को देवताओं को पिलाया था। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन एकादशी का व्रत रखने से तथा कथा का श्रवण करने से, एक हजार गायों का दान देने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है तथा भगवान विष्णु भक्त के हर संकट को हर लेते हैं।
मोहिनी एकादशी की व्रत कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार सरस्वती नगर के तट पर भद्रावती नाम का एक नगर था। वहां द्युतिमान नाम के चंद्रवशी राजा राज्य करते थे। इसी नगर में धनपाल नाम का एक विष्णु भक्त वैश्य भी निवास करता था। वैश्य बहुत ही धार्मिक और धर्म-कर्म करने वाला था। उसने नगर में अनेक प्याऊ, भोजनालय, कुंए, तालाब और धर्मशाला बनवा रखे थे। नगर की सड़कों के किनारे अनेक छायादार व फलदार वृक्ष भी लगवा रखे थे। उस वैश्य के पांच बेटे थे। जिनके नाम सुमन, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि थे। उसका पांचवा पुत्र धृष्टबुद्धि बुरी आदतों वाला था। वह जुआ खेलता, मद्यपान करता और परस्त्री गमन में रत रहता था। उसके भाई माता-पिता उसकी बुरी आदतों से बहुत परेशान थे। अपने पुत्र के बुरे कामों से तंग होकर उसके पिता धनपाल ने धृष्टबुद्धि को घर से निकाल दिया। अब वह अपने गहने व कीमती सामान बेचकर अपना जीवन यापन करने लगा। धीरे-धीरे उसका धन समाप्त हो गया, अब उसके दोस्तों ने भी उसका साथ छोड़ दिया। भूख-प्यास से परेशान होकर धृष्टबुद्धि ने चोरी करना प्रारम्भ कर दिया। लेकिन वह चोरी करते हुए पकड़ा गया। राजा ने उसे वैश्य पुत्र होने के कारण फिर चोरी न करने की चेतावनी देकर छोड़ दिया। परन्तु भूख-प्यास से तंग आकर धृष्टबुद्धि फिर चोरी करने लगा। फिर चोरी करते पकड़े जाने पर राजा ने उसे पकड़कर नगर से निकलवा दिया।
अब नगर से भी निकाला मिलने पर धृष्टबुद्धि जंगल में चला गया। वहां उसने पशु-पक्षियों को शिकार करना शुरू कर दिया। जंगल में वह पशु-पक्षियों का शिकार करके अपना पेट भरने लगा। अब वह बहेलिया बना गया। एक दिन उसे जंगल में कोई शिकार नहीं मिला वह भूख-प्यास से व्याकुल होकर जंगल में भटकते-2 कौडिन्य ऋषि के आश्रम पहुंच गया। उस समय वैशाख का माह चल रहा था। महर्षि गंगा स्नान करके अपने आश्रम में लौट रहे थे। महर्षि कौडिन्य के भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़े। छींटे पड़ने से उसे कुछ ज्ञान की प्राप्ति हुई। तब उसने महर्षि से हाथ जोड़कर कहा हे महर्षि! मैंने जीवन में बहुत पाप किये हैं, आप मुझे उन पापों से मुक्ति का कोई मार्ग बताइये। महर्षि कौडिन्य ने प्रसन्न होकर उसे मोहनी एकादशी का व्रत करने को कहा और बताया कि इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो जायेंगे। तब धृष्टबुद्धि ने महर्षि की बतायी विधि के अनुसार मोहनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गये और अंत में वह भगवान विष्णु के धाम वैकुंठ को चला गया। इस व्रत की महिमा पढ़ने व सुनने मात्र से एक हजार गोदान करने का फल प्राप्त होता है।
बोलों लक्ष्मी नारायण भगवान की जय!
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