यह एकादशी वर्ष की चौबीस एकादशियों में सब से महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इस ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत करने से वर्ष भर की एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। कलयुग में यह व्रत सारे सुख-वैभव देने के साथ-साथ अंत में मौक्ष देने वाला कहा गया है क्योंकि निर्जला एकादशी में एकादशी के सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन यानि द्वादशी के सूर्योदय तक यदि जल का त्याग किया जाये तो यह व्रत पूर्ण होता है। उदया तिथि के अनुसार, यह व्रत 31 मई 2023 बुधवार को रखा जाएगा।
एकादशी की कथा-
एक बार महाबली भीम ने व्यास जी से पूछा हे पितामह! मेरे भाई युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल सहदेव और भाभी द्रोपदी के साथ-साथ माता कुंती मुझसे एकादशी का व्रत रखने के लिए कहती हैं। परन्तु पितामह मैं भगवान की पूजा-जप-पाठ सब कर सकता हूं और दान भी दे सकता हूं परन्तु भोजन के बिना नहीं रह सकता। मैं क्या करूं ?
व्यास जी बोले-हे महाबली भीम यदि तुम नरक नहीं जाना चाहते, स्वर्ग जाना चाहते हो तो तुम्हे दोनों पक्षों की एकादशियों को भोजन नहीं करना चाहिए।
भीम बोले-हे पितामह। मैं एक बार भोजन करके भी नहीं रह सकता तो फिर माह की दोनों एकादशियों का व्रत कैसे रख सकता हूं। मेरे उदर में वृक नाम की अग्नि हमेशा प्रज्वलित रहती है, जब मैं भोजन करता हूं तभी वह अग्नि शांत होती है इसलिए पितामह! मैं बहुत ज्यादा वर्ष में एक बार ही उपवास रख सकता हूं? अब मुझे वह मार्ग दिखाइये जिससे मैं नरकगामी न बनूं और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सके।
व्यास जी ने कहा-हे भीम ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो। केवल कुल्ला या आचमन के लिए ही मुख में जल डाल सकते हों, इसके अलावा किसी भी प्रकार से जल ग्रहण न करें, नही तो तुम्हारा व्रत भंग हो जायेगा। एकादशी के सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन द्वादशी के सूर्योदय तक व्रती को जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। तब यह व्रत पूर्ण होता है। अगले दिन यानि द्वादशी को प्रातःकाल में स्नानादि से निवृत होकर ब्राह्मणों को जल आदि यथाशक्ति दान दें, फिर ब्राह्मणों के साथ भोजन ग्रहण करें। वर्ष की समस्त एकादशियों के व्रत का फल इस निर्जला एकादशी से मनुष्य को प्राप्त होता है इसमें संदेह नहीं करना चाहिए। है कौन्तेय! जिस किसी ने श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है उन्होंने अपनी पिछली सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान श्री हरि के धाम पहुंचा दिया है ऐसा मानना चाहिए। हे भीमसेन! जो इस प्रकार पूर्ण रूप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है वह सब पापों से मुक्त होकर श्रीहरि के धाम स्वर्ग चला जाता है।
यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत किया, इसी कारण इसे भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। बोलो लक्ष्मी नारायण भगवान की जय।
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