वास्तु के अनुसार मंदिर की दिशा क्या हो?

वास्तु के अनुसार मंदिर की दिशा क्या हो?

आज के तनाव भरे जीवन में पूजा घर
बहुत अधिक महत्व रखता है। जहां बैठकर हमें ईश्वर का सामिप्य प्राप्त होता है और हमें मानसिक शान्ति प्राप्त होती है। परन्तु कभी-कभी देखने में आता है कि अक्सर पूजा घर में बैठकर हमारा मन पूजा में नहीं लगता ना ही हमें मानसिक शान्ति का अहसास होता है। यदि आपके मन कोई टेन्शन है तो हो सकता है उस समय आपका मन पूजा में ना लगे, परन्तु टेन्शन कुछ ना कुछ कम तो जरूर होनी चाहिए, बशर्ते आपका पूजा घर वास्तु नियमों का पालन करके बनाया गया हों। मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि यदि आपका पूजा घर वास्तु नियमों के अनुकूल बनाया गया है तो वह आपको मानसिक शान्ति अवश्य प्रदान करेगा। यदि ऐसा नहीं है तो आप अपने मन्दिर की दिशा और अपने बैठने की दशा की जांच अवश्य कर लें।


वास्तु के अनुसार मंदिर की दिशा क्या हो? Mandir direction as per vastu 

ईशान दिशा (नोर्थ-ईस्ट)-

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में मंदिर बनाने के लिए सबसे उत्तम दिशा ईशान कोण है। इस दिशा के स्वामी गुरू ग्रह हैं। यह दिशा सभी नौ दिशाओं में सबसे श्रेष्ठ व पवित्र मानी जाती है। ईशान कोण में मन्दिर बनाने से, पूर्व और उत्तर दिशाओं के लाभ भी स्वतः प्राप्त हो जाते हैं। यदि आप चाहते हैं कि मन्दिर से हमारे घर में एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो, हमें ईश्वरीय आशीर्वाद मिले और वहां बैठने से मानसिक शांति का अनुभव हो तो आपको अपने घर में मन्दिर का निर्माण ईशान कोण में करना चाहिए। 

वास्तु के अनुसार मंदिर की दिशा क्या हो?
ईशान कोण में मन्दिर स्थापित करने से मन्दिर का मुंह नैरूत दिशा यानि साउथ वेस्ट की ओर रहता है और हमारा मुख ईशान दिशा की ओर रहता है, जो ध्यान, एकाग्रता, चिंतन, मनन के लिए अति महत्वपूर्ण स्थिति है।







वास्तु के अनुसार मंदिर की दिशा क्या हो?
पूर्व दिशा (ईस्ट)-

यदि हम किसी कारणवश ईशान दिशा में मन्दिर का निर्माण नहीं कर सकते तो घर में मंदिर बनाने के लिए दूसरी शुभ दिशा पूर्व दिशा शास्त्रों में बतायी गयी है, कहा जाता है कि इस दिशा में मन्दिर बनाने से उगते हुए सूर्य से इसका तदात्म स्थापित होता है, इस लिए यह दिशा भी मन्दिर के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिशा के स्वामी सूर्य ग्रह हैं जो जगत को प्रकाशित करने के साथ-साथ जीवन प्रदान करते हैं। इससे हमारे जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलता है और सकारात्मक विचारों का उदय होता है। 


वास्तु के अनुसार मंदिर की दिशा क्या हो?
इस दिशा में मन्दिर स्थापित करने से मन्दिर का मुंह पश्चिम दिशा की ओर रहता है और हमारा चेहरा पूर्व दिशा की ओर रहता है जो हमारे लिए अत्यंत लाभदायक है।







वास्तु के अनुसार मंदिर की दिशा क्या हो?
उत्तर दिशा (नोर्थ)-

यदि हम किसी कारणवश या स्थानाभाव के कारण ईशान दिशा, या पूर्व दिशा में मन्दिर का निर्माण नहीं कर सकते तो घर में मंदिर बनाने के लिए तीसरी शुभ दिशा उत्तर दिशा शास्त्रों में बतायी गयी है। इस दिशा के स्वामी वरूण और ग्रह बुध हैं। उत्तर दिशा समृद्धि और धन धान्य की दिशा मानी जाती है। इस दिशा में मन्दिर स्थापित करने से मन्दिर का मुंह दक्षिण दिशा की ओर रहता है 



वास्तु के अनुसार मंदिर की दिशा क्या हो?
इस दिशा में मन्दिर स्थापित करने से पूजा करने वाले का मुख उत्तर दिशा की ओर रहता है, इस दिशा की ओर पूजा करने से घर में धन-वैभव-सम्मान का प्रवाह तेजी से होता है।










अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि पूजा घर बनाने के लिए सबसे उत्तम दिशा ईशान दिशा है, जिसमें पूजा घर स्थापित करने से पूर्व व उत्तर दिशा, दोनों दिशाओं के लाभ प्राप्त होते हैं। यदि ईशान दिशा में मन्दिर बनाना संभव नहीं है तो वैकल्पिक रूप से पूर्व या उत्तर दिशा में मन्दिर बनाया जा सकता है।

पूजा घर में मूर्तिया रखनी चाहिए या नहीं?

मैंने कुछ पोस्ट में पढ़ा है कि कुछ वास्तु शास्त्री पूजा घर में पत्थर की मूर्तियों का निषेध करते हैं। परन्तु वास्तव की पूजा घर में मूर्तिका निषेध नहीं है, मत्स्य पुराण में बताया गया है कि घर के पूजा घर में एक बित्ते (बारह अंगुल एक बित्ता होता है, लगभग 9 इंच के बराबर) के परिणाम से बड़ी मूर्ति नहीं लगानी चाहिए अर्थात हम पूजा घर में 9 इंच के साइज तक की मूर्तियां स्थापित कर सकते हैं। यदि इससे बड़ी यानि 9 इंच से बड़ी पत्थर की मूर्ति घर में स्थापित करने से गृह स्वामी को सन्तान नहीं होती।


वृद्धपाराशर शास्त्र में लिखा है कि-‘‘पत्थर, काष्ठ, सोना या अन्य धातुओं की मूर्तियों की प्रतिष्ठा घर या प्रासाद (मन्दिर) में करनी चाहिए।" इसका तात्पर्य है कि घर में पत्थर, काष्ठ, सोना या अन्य धातुओं की एक बित्ते तक की मूर्तिया स्थापित की जा सकती हैं।

वास्तु के अनुसार मंदिर की दिशा क्या हो?
घर में मन्दिर स्थापना से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण व आवश्यक बातें-

1-घर में भूलकर भी दक्षिण दिशा में मन्दिर की स्थापना नहीं करनी चाहिए। इससे घर में भूत-प्रेतों का वाश होने लगता है और घर का स्वामी दरिद्र होता चला जाता है। क्योंकि इससे पूजा करने वाले का मुख दक्षिण दिशा की ओर हो जाता है। जो कि यम की दिशा है।

2-आचारप्रकाश ग्रन्थ में लिखा है कि घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो द्वारका के (गोमती) चक्र और दो शालग्राम का पूजन करने से गृह स्वामी को उद्वेग यानि अशांति प्राप्त होती है।

3-पूजा करते समय हमारा मुख या तो ईशान दिशा यानि नोर्थ ईस्ट की ओर होना चाहिए या फिर पश्चिम दिशा यानि वेस्ट की ओर होना चाहिए।

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4-शौचालय और पूजा घर साथ-साथ नहीं बनवाने चाहिए। यदि मन्दिर के आसपास बाथरूम भी है तो उसका दरवाजा बन्द रखना चाहिए। मन्दिर के दरवाजे पर परदा लगाये रखना चाहिए।

5-अपने घर के मन्दिर में खंडित मूर्ति नहीं रखनी चाहिए, खंडित होने के बाद उन्हें जल्द से जल्द किसी जलाशय में प्रवाहित कर देना चाहिए।

6-मन्दिर के अंदर लाल, गुलाबी, बल्ब नहीं लगाने चाहिए, केवल सफेद या हल्का पीला बल्ब ही लगाना चाहिए।

7-पूजा घर में झाडू, जूता-चप्पल आदि ले जाना या रखना पूरी तरह से वर्जित है।

8-घर में बनाये गये मन्दिर में रोज सुबह शाम जोत-बत्ती करनी चाहिए। जिससे घर में पवित्र व पाॅजिटिव वातावरण बना रहे।

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9-पूजा घर मे नित्य पूजा करने से पहले सफाई जरूर करनी चाहिए यह सफाई कामवाली बाई से न कराके, इसे अपने आप करें तो और अच्छा है।

10-पूजा का सामान, धूप, बत्ती, आरती आदि की किताबें, ये सभी चीजे पूजा घर में ही रखनी चाहिए।

कुछ लोग यह भी जानना चाहते हैं-


वास्तु के अनुसार मंदिर की दिशा क्या हो?

मकान में मंदिर का मुंह किधर होना चाहिए?

मकान में मंदिर यदि ईशान दिशा में है तो नैरूत दिशा यानि साउथ वेस्ट में मन्दिर का मुंह होगा और यदि पूर्व दिशा में मन्दिर है तो मंदिर का मुंह पश्चिम दिशा में होगा।

क्या हम मंदिर को बालकनी में रख सकते हैं?

वास्तु के अनुसार बालकनी में मन्दिर बनाना वर्जित है, स्थानाभाव के कारण यदि बनाना मजबूरी है तो वह ऊपर व साइडों से कवर्ड होना चाहिए।

वास्तु के अनुसार पूजा रूम किधर होना चाहिए?

वास्तु के अनुसार पूजा रूम ईशान दिशा यानि नोर्थ ईस्ट में होना चाहिए परन्तु हम इसे पूर्व या उत्तर दिशा में भी बनवा सकते हैं।


क्या हम दीवार पर मंदिर लटका सकते हैं?

लटका सकते हैं परन्तु केवल ईशान, पूर्व या उत्तर दिशा में।

घर में पूजा करते समय मुंह किधर होना चाहिए?

पूजा करते समय हमारा मुंह या तो ईशान में या पश्चिम दिशा में होना चाहिए।

पूजा घर कहाँ नहीं होनी चाहिए?

वास्तु शास्त्र हमें बेसमेन्ट में पूजा घर बनाना वर्जित करता है परन्तु मेरी राय में बेसमेन्ट में ध्यान कक्ष बनाया जा सकता है। उसमें हमारी अच्छी एकाग्रता बनती है।

क्या बेडरूम में पूजा कर सकते हैं?/क्या हम मंदिर को बेडरूम में रख सकते हैं?

बेडरूम में पूजा घर बनाना वर्जित है, परन्तु विशेष परिस्थितियों में बेडरूम में मन्दिर बना सकते हैं, परन्तु उस पूजा घर में एक परदा ढका रहना चाहिए जो केवल पूजा करते समय ही उठाया जाये।

मृत व्यक्ति के फोटो किस दिशा में रखना चाहिए?

मृत व्यक्ति की फोटो दक्षिण दिशा में लगानी चाहिए। कभी भी मृत व्यक्तियांे की फोटो पूजा घर में नहीं लगानी चाहिए। 
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app

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