घाघ और भण्डरी पर मैंने पहले भी तीन ब्लाॅग बनाये थे, जिनमें एक घाघ भण्डरी की कहावतें, दूसरा था घाघ व भण्डरी की कृषि व मौसम संबंधी कहावतें तथा तीसरा था घाघ व भण्डरी की मिश्रित कहावतें, इन तीनों आलेखों में मैंने घाघ की विभिन्न कहावतों को संग्रहित किया था। आज मैं आपके लिए घाघ व भण्डरी की खेती से संबंधित कहावतों का संग्रह लेकर आया हूं जो निश्चित ही आपके ज्ञान में वृद्धि करेगा। आइये देखते हैं, घाघ भड्डरी की खेती के संबंध में कहावतेें-
बाॅंध कुदारी खुरपी हाथ, लाठी हॅंसिया राखै साथ।
काटै घास और खेत निरावै, सो पूरा किसान कहलावै।।
घाघ कहते हैं कि वही किसान वास्तव में सच्चा किसान है जो खुरपी और फावड़ा हाथ में रखता है। लाठी और हंसिया हाथ में रखे और साथ-साथ खेत में उपजी घास काटता रहे और खेत निराता रहे।
धान पानी उखेरा, तीनों पानी के चेरा।
सांक, आलू और खीरा, तीनों पानी के कीरा।।
घाघ कहते हैं कि धान, पान, ईख, सांक, आलू और खीरे की खेती के लिए अधिक पानी चाहिए। अतः यदि किसान के पास पानी की पर्याप्त व्यवस्था है तभी इनकी खेती करनी चाहिए।
गहिर न जोते बोवे धान, सोघर कुठिला भरै किसान।
भड्डरी कहते हैं कि धान के खेत का गहरा नहीं जोतना चाहिए, धान बो देनी चाहिए, इससे अच्छी फसल होती है।
गेहूं बोवे चना दरारे, धान गहे मक्की निराये।
ऊख कसाये पानी दिखाये।।
भड्डरी व घाघ आगे कहते हैं कौन सी खेती को कैसे बोने से अच्छी खेती होती है, गेहूं का खेत अधिक जोतने से, चने का खेत खोंटने से, धान को बार-बार पानी देने से, मक्का निराने से, ईख बोने (गोड़ने) तथा पानी देने से अच्छी उपज होती है।
घाघ व भड्डरी बताते हैं कि कौन सी फसल को कब काटना चाहिए-
चना अधपका जौ पका काटै, गेहूं बाली लट के काटै।
चना अधपका होने पर काटे लें, जौं भली भांति पकने पर कांटे और गेहूं को जब कांटे जब उसकी बाली लटक जायें।
पछुआ हवा उसावे जोई, घाघ कहै घुन कबहूं न होई।
घाघ-भड्डरी कहते हैं कि जो भी अनाज पछुआ हवा में ओसाया जाता है, उस अनाज में घुन नहीं लगता।
एक हर हत्या दो हर काज, तीन हर खेती चार हर राज।
घाघ व भड्डरी बताते हैं कि एक हल की खेती बवाल है, दो हल की खेती काम चलाने वाली होती है, तीन हल की खेती से अच्छी खेती होती है और चार हल की खेती से किसान राजसुख प्राप्त करता है।
जौ गेहूं बोवै सेर पचीसौ, मटर के बीघा सेर तीसौ।
बोवे चना पसेरी तीन तीन सेर बीघा जुवारी कीन।
दो सेर मेंथी अरहर मास डेढ़ सेर बिगहाबीज कपास।
पांच पसेरी बिगहा धान तीन पसेरी जड़हन आन।
सवा सेर सावां का मान तिल्ली सरसों अंजल जान।
बर्रे कोदो सेर बुआवै, डेढ़ सेर लै तीसी नावै।
डेढ़ सेर बजरा बजरी सावां, कोदों काकुनि सवैया बोवा
यहि विधि खेती करै किसान, दूने लाभ की खेती जान।
घाघ व भड्डरी बताते हैं कि किसान को एक बीघा खेत में कितने बीज डालने चाहिए-एक बीघा खेत में गेहूं जौ पच्चीस सेर, मटर तीस सेर, चना पन्द्रह सेर, ज्वार तीन सेर, अरहर, मेथी, उर्द दो सेर, कपास डेढ़ सेर, धान पच्चीस सेर, जड़हन पन्द्रह सेर, साॅंवा सेर भर, तिल्ली और सरसों मुट्ठी भर, बर्रे और कोदौ काकुनि एक सेर के हिसाब से बोने वाले किसान को ही दूना लाभ होता है।
क्वार कातिकै हल को जोते। भरै कोठार आय वह सोते।
घाघ व भड्डरी कहते हैं कि जो किसान क्वार और कार्तिक माह में हल जोतता है उसके भंडार अवश्य ही अनाज से भर जायेंगे।
बीघा बायर होय, बांध जो होय बंधाए।
भरा भुसैला होय, बबुर जो होय बुवाए।
बढ़ई बसै समीप, वसूला बाढ़ धराए।
पुरखिन होय सुजान, विया बोउनिहा बनाए।
बरद बगौघा होय, बदिरया चतुर सुहाए।
बेटवा होय सपूत, कहे बिन करे कराए।।
घाघ व भड्डरी बताते हैं कि कौन सा किसान भाग्यशाली होता है। जिस किसान के पास खेत का पूरा चक हो, खेत की सिंचाई के लिए बांध (नहर) बंधे हुए हों, चारे की कमी न हो, बबूल के पेड़ खेतों में खड़े हों, समीप ही बढ़ई रहता हो व उसके पास औजार तेज धार लगे हों, घर की मालकिन चतुर हो, बीजों को संभाल के रखे, बढ़िया नस्ल के बैल हों, हरवाया समझदार हो, परिश्रम से काम करता हो, किसान का बेटा सुपुत्र हो, बिना कहे सुने काम में लगा रहे तथा नौकरों को भी लगाये रखे। ऐसा किसान बड़ा भाग्यशाली होता है।
संकलन-संजय कुमार गर्ग
नीति पर और आलेख पढ़िए-
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुमूल्य है!