Ekadashi ki kahani : देवोत्थान एकादशी व्रत कथा!

https://jyotesh.blogspot.com/2024/11/dev-uthani-ekadashi-katha.html


कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान-देवउठनी एकादशी कहते हैं। देवउठनी एकादशी का दूसरा नाम प्रबोधनी एकादशी भी हैं इस संबंध में कथा है कि भाद्रपद की एकादशी को ही भगवान विष्णु शंखासुर नामक राक्षस से युद्ध करके उसेे मारकर भारी थकान महसूस करते हैं। इसलिए भगवान विष्णु शयन करने चले गये थे, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु की तद्रा टूटी थी, सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की पूजा की इसलिए यह तिथि देवोत्थान एकादशी नाम से प्रसिद्ध है।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को शालिग्राम व तुलसा जी का विवाह भी किया जाता है, देवोत्थान एकादशी के संबंध में यह कथा प्रसिद्ध है। आइये जानते हैं देवउठनी एकादशी की कहानी क्या है?


शिवमहापुराण में यह कथा आयी है-पौराणिक काल में दैत्यों का एक राजा था जिसका नाम दंभ था। वह असुर होकर भी विष्णु भक्त था। काफी समय तक उसके कोई संतान नहीं हुई तो उसने दैत्य गुरू शुक्राचार्य से परामर्श किया। दैत्य गुरू शुक्राचार्य ने उन्हें कृष्ण महामंत्र दिया, और पुष्कर सरोवर में जाकर तप करने का आदेश दिया। दैत्यों के राजा दंभ ने पुष्कर में घोर तपस्या की, जिससे करूणामयी भगवान श्री विष्णु प्रसन्न हुये, और दंभ को पुत्र प्राप्ति का वरदान देकर वहां से अंर्तध्यान हो गये। भगवान विष्णु के आशिर्वाद से राजा दंभ को पुत्र की प्राप्ति हुई। उसने पुत्र का नाम शंखचूड़ रखा। धीरे-धीरे समय बीतता गया, शंखचूड़ भी बड़ा हो गया। शंखचूड़ ने ब्रहमा जी की पुष्कर जाकर घोर तपस्या की। उसकी तपस्या से ब्रहमा जी प्रसन्न हो गये और उससे महचाहा वरदान मांगने के लिए कहा।

शंखचूड़ ने कहा-वह हमेशा अजर-अमर रहे व कोई भी दानव-देवता या मनुष्य उसे मार न पाये। ब्रहमा जी ने उसे तथास्तु कहा और साथ ही कहा कि वह बदरीवन में जाकर धर्मध्वज की पुत्री तुलसा जी से विवाह कर ले, बदरीवन में तुलसा जी तपस्या कर रही थीं। शंखचूड़ ने ऐसा ही किया और बदरीवन जाकर तुलसा जी से विवाह कर लिया और तुलसा जी के साथ प्रसन्नतापूर्वक रहने लगा।


शंखचूड़ ने अपने वरदान के बल से समस्त देवताओं, असरों, गंधर्वों, नागों, मनुष्यों आदि सहित तीनों लोकों में रहने वाले प्राणियों पर विजय प्राप्त कर ली और उन पर तरह-तरह से अत्याचार करने लगा।
उसके अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास गये, तब भगवान विष्णु ने बताया कि शंखचूड़ की मृत्यु भगवान शिव के हाथों होगी। तब सभी देव भगवान शिव के पास गये, भगवान शिव ने उनकी बातों को समझा और अपना दूत दैत्य के पास भेजा दिया, परन्तु शंखचूड़ ने देवों के राज्य को लौटाने से इंकार कर दिया और भगवान त्रिनेत्र से युद्ध करने के लिए कहा। 


भगवान शिव को जब दूत ने दैत्य शंखचूड़ का संदेश दिया तो भगवान शिव युद्ध के लिए तैयार हो गये और अपनी सेना को लेकर युद्ध के चल दिये, परन्तु तभी आकाश वाणी हुई कि जब तक शुखचूड़ के पास भगवान विष्णु का कवच है और उनकी पत्नि का सतीत्व अखण्डित है तब तक शंखचूड़ का वध नहीं किया जा सकता। तब भगवान विष्णु एक बूढ़े ब्राहमण का वेश बनाकर दैत्य शंखचूड़ के पास गये और उससे उसका कवच मांग लिया, दैत्य शंखचूड़ ने अपना कवच बूढ़े ब्राहमण का वेश धारण किये भगवान विष्णु को दे दिया। 

अब भगवान विष्णु ने अपनी माया से दैत्य शंखचूड़ का रूप धारण कर लिया और तुलसा जी के पास गये। उन्हें देखकर तुलसी बहुत प्रसन्न हुई, क्योंकि तुलसी ने उन्हें शंखचूड़ ही समझा। तुलसी ने उनकी चरण वंदना की व उनके साथ रमण किया। जिससे तुलसी का सतीत्व भंग हो गया।

उसके पश्चात भगवान शिव ने दैत्य शंखचूड़ के साथ युद्ध किया और युद्ध में उसे पराजित करके उसका वध कर दिया।
https://jyotesh.blogspot.com/2024/11/dev-uthani-ekadashi-katha.html

तुलसी को अपने साथ हुये धोखे का पता चला कि वे उसके पति नहीं थे, और उन्होंने छलपूर्वक उसका सतीत्व नष्ट किया है। क्रोध में आकर तुलसी ने भगवान विष्णु का श्राप दिया कि आप पाषाण होकर धरती पर रहोगे। तब भगवान विष्णु पाषाण (शालिग्राम) बनकर पृथ्वी पर अवतरित हुए। क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु की अन्नय भक्त थी इसलिए भगवान विष्णु ने तुलसी को आशीर्वाद दिया कि तुम वृक्षों में श्रेष्ण वृक्ष तुलसी बनकर पृथ्वी पर जन्म लोगी और सदैव मेरे साथ रहोगी।

तभी से यह परंपरा है कि भगवान विष्णु व तुलसी के विवाह संपन्न होने के बाद ही समस्त मांगलिक कार्य प्रारम्भ होते हैं। तो ये थी देवोत्थान एकादशी व्रत कथा!

जब मैं था हरि नहीं,  अब  हरि   है  मैं  नाय,
प्रेम गली अति सांकरी, तां मैं दो ना समाय।

बोलो लक्ष्मी नारायण भगवान की जय। हरि नमः हरि नमः हरि नमः


तो  साथियों आपको ये कथा कैसी लगी, कमैंटस करके बताना न भूले, यदि कोई जिज्ञासा हो तो कमैंटस कर सकते हैं, और यदि आप नित्य नये आलेख प्राप्त करना चाहते हैं तो मुझे मेल करें। अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए नमस्कार जयहिन्द।
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, एस्ट्रोलाॅजर, वास्तुविद् 8791820546

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुमूल्य है!