सूर्य ग्रह का भौतिक-पौराणिक-वास्तु-ज्योतिषीय-हस्तरेखीय वर्णन

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सूर्य ग्रह का भौतिक वर्णन-

सूर्य सबसे अधिक तेजस्वी, प्रबल प्रकाशवान ग्रह है। समस्त ग्रह इसके चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं। पृथ्वी से इसकी दूरी 9,30,00,000 मील तथा इसका व्यास लगभग 27 लाख मील है। यह पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है। सूर्य का तापमान लगभग 5600 डिग्री सेल्सियस है यदि हम पृथ्वी का तापमान देखें तो यहां का औसम तापमान 15 डिगी सेल्सियस है। सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक आने में 8 मिनट का समय लगता है। जो लगभग एक लाख छियासी हजार मील प्रति सेकेण्ड की गति से पृथ्वी तक पहुंचता है। सूर्य हमें ऊर्जा और जीवन शक्ति प्रदान करता है साथ ही यह विटामिन डी का भी अच्छा स्रोत है। सूर्य पच्चीस दिन में एक बार अपनी परिक्रमा कर लेते हैं। 24 घण्टे के दिन में सूर्य की भचक्र में भ्रमण गति एक अंश होती है। सारे भचक्र की परिक्रमा ये 375 दिन 6 घण्टे में करते हैं। पृथ्वी पर जो वस्तु 1 किलो भार की है उसका सूर्य पर भार 29 किलो होगा।

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सूर्य का पौराणिक वर्णन-

ऋग्वेद के अनुसार सूर्य का एक नाम सविता भी है जिसका अर्थ है सृष्टि करने वाला। आदित्य-मण्डल के अन्तः स्थित सूर्य देवता सबके प्रेरक, अन्तर्यामी तथा परमात्मस्वरूप हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य ब्रह्म स्वरूप हैं, सूर्य से जगत उत्पन्न होता है और उन्हीं में स्थित है। यहीं भगवान भास्कर ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र बनकर जगत का सृजन पालन और संहार करते हैं। सूर्य नवग्रहों में सर्वप्रमुख देवता हैं।

सूर्य भगवान का रंग लाल है, इसलिए पुराणों में इन्हें ‘‘जपाकुसुम संकाशं’’ कहकर इनकी स्तुति की गयी है। ये रथ पर आरूढ़ रहते हैं। इनके रथ में एक ही पहिया हैं, जो कि संवत्सर का प्रतीक है, इनके रथ में मास का प्रतिनिधित्व करने वाले 12 अरे लगे हैं, ऋतु के लिए छः नेमियां हैं तथा तीन चैमासे के रूप में तीन नाभियां हैं। इनके साथ साठ हजार ऋषि, गन्धर्व, नाग, यक्ष, राक्षस व देवता इनकी उपासना करते हुए चलते हैं। इनके हाथों में चक्र, शक्ति, पाश और अंकुश शस्त्र हैं।

पौराणिक कथा-

एक बार दैत्यों व राक्षसों ने मिलकर देवताओं के विरूद्ध युद्ध कर दिया और देवताओं को पराजित करके उनके राज्य व अधिकार छीन लिये। देवमाता अदिति इस संकट से मुक्ति पाने के लिए भगवान सूर्य की उपासना करने लगीं। भगवान सूर्य ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता अदिति के गर्भ से जन्म लिया। उसके पश्चात राक्षसों को पराजित कर पुनः देवताओं को राज्य दिलाया और सनातन वेदमार्ग की स्थापना की। इसलिए इनका एक नाम आदित्य भी पड़ा।

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सूर्य का वास्तु के अनुसार वर्णन-

सूर्य वास्तु में पूर्व दिशा के प्रतिनिधि ग्रह हैं, यह कालपुरूष का मुंह हैं। जिसके घर का मुख्य द्वार बड़ा होता है, पूर्व दिशा की ओर बड़ी-बड़ी खिडकियां होती हैं व उनमें से सूर्य का पर्याप्त प्रकाश आता हो, ऐसे घर के स्वामी का लग्न सिंह होता है या फिर लग्न में सूर्य होते हैं। यह दिशा वास्तु में धन, वैभव, संतान का प्रतिनिधित्व करती है। साथ ही ग्रहस्वामी के मुख के रोगों का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। घर में इस दिशा को साफ-स्वच्छ रखना चाहिए, टाॅयलेट का निर्माण इस दिशा में नहीं कराना चाहिए। पूर्व दिशा को पश्चिम दिशा से नीचा रखना चाहिए। पूर्व दिशा की चार दिवारी पश्चिम दिशा से नीची होनी चाहिए।

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सूर्य का ज्योतिषीय वर्णन-

नवग्रहों में सूर्य को ग्रहराज कहा जाता है। सूर्य को फारसी में आफताब और अंग्रजी में सन और हिन्दी में रवि, विस्वान, भानु, भास्कर, सविता, दिवाकर आदि नामों से भी जाना जाता हैं। यह पूर्व दिशा के स्वामी हैं, पुरूष रूप है और पाप व क्रूर ग्रह माने जाते हैं। ये जन्म कुंडली में जिस भाव में बैठते हैं वहां से सातवें घर पर पूर्ण दृष्टि रखते हैं। ये चंद्र, मंगल और गुंरू को अपना मित्र मानते हैं, तथा शनि, राहु व केतू का शत्रु मानते हैं, बुध से समभाव रखते हैं। सूर्य की स्वराशि मेष है। मेष राशि में ये उच्च के होते हैं और तुला राशि में नीच के कहलाते हैं। जाति से ये क्षत्रिय हैं, इनका स्वभाव उग्र होता है, और ये मध्यान्ह में बलि होते हैं। रिश्तों में ये पिता का प्रतिनिधित्व करते हैं, राजपाठ में ये राजा के पद को सुशोभित करते हैं। सूर्य अग्नि तत्व प्रधान ग्रह हैं अतः पित्त प्रकृति वाले ग्रह हैं। कुण्डली में इनसे नेत्र ज्योति, सिरदर्द, पाचन संस्थान, मन्दाग्नि, बुखार, तापप्रधान रोगों व सरकारी नौकरी आदि का विचार किया जाता है। यह आत्मा के कारक ग्रह हैं तथा शरीर में अस्थियों का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। सुवर्ण इनकी प्रिय धातु है एवं ‘माणिक्य’ में निवास करते हैं। इसीलिये माणिक्य के लिए अंगूठी सोने की ही बनायी जाती है। इनकी महादशा 6 वर्ष की होती है।

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हस्तरेखा में सूर्य का वर्णन / स्थान-

हथेली में अनामिका यानि रिंग फिंगर के मूल में {1} सूर्य पर्वत का स्थान होता है। पामिस्ट्री में इसे सूर्य पर्वत कहते हैं, यदि यह पर्वत उभार लिये हुये हो, दबा हुआ न हों, साथ ही इस पर आड़ी तिरछी लाइनें न हो तो यह पर्वत उन्नत माना जाता है यदि सभी उंगलियों के नीचे स्थित पर्वतों से ये ऊंचा हो तो ऐसा जातक सूर्य प्रधान कहा जाता है। यदि सूर्य की उंगली यानि अनामिका बेडौल या छोटी है तो यह सूर्य के गुणों में न्यूनता ला देती है।

सूर्य रेखा या भाग्य रेखा-

जो रेखा {2} सूर्य पर्वत पर आये वह रेखा भाग्य रेखा या सूर्य रेखा कहलाती है। अनेक हाथों में यह रेखा नहीं होती। सूर्य रेखा का सूर्य पर्वत पर आना आवश्यक होता है। जिनके हाथों में यह रेखा पूर्ण होती है कटी-फटी नहीं होती वे अत्यंत भाग्यवान होते हैं, उनके जीवन में किसी भी चीज का अभाव नहीं होता।

सूर्य ग्रह के जपनीय मंत्र-


वैदिक मंत्र-  

ऊं आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मत्र्यं च।

हिरण्ययेन सविता रथेना देवो  याति भुवनानि पश्यन्।।

पौराणिक मंत्र-

जपाकुसुमसंकाशं   काश्यपेयं   महाद्युतिम्।

तपोऽरिं सर्वपापघ्रं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्।।

बीज मंत्र-

 ॐ ह्नां ह्नीं ह्नौं सः सूर्याय नमः

सामान्य मंत्र-

 ॐ घृणि सूर्याय नमः

इनमें से किसी एक मंत्र का श्रद्धापूर्वक एक निश्चित संख्या में नित्य जाप करना  चाहिए। जप की कुल संख्या 7000 तथा समय प्रातःकाल है।

प्रिय पाठकों आपको ये आलेख कैसा लगा कमैंटस करके बताना ना भूलें, कोई त्रुटि, कमी या रह गयी हो तो अवश्य बतायें ताकि इस श्रृंखला  के नये आलेख में, मैं वह कमी दूर कर सकूं।  

प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app

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