ऋतुओं के प्रकार एवं उनका वैज्ञानिकता
वैसे तो ऋतुयें तीन मानी जाती हैं शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु और वर्षा ऋतु, किन्तु आयुर्वेद, ज्योतिष एवं संवत्सर काल गणना हमें छः ऋतुओं के बारे में अपने-अपने सिद्धातों के अनुसार बताते हैं। आयुर्वेद के महान ग्रन्थ सुश्रुत संहिता एवं चरक संहिता में छः ऋतुओं का वर्णन मिलता है, वहीं ज्योतिष का प्रसिद्ध सूर्य सिद्धांत ग्रंथ हमें सूर्य के राशि परिवर्तन से काल की गणना के संबंध में बताते हैं, संवत्सर की काल गणना से ऋतुओं के छः प्रकार है यथा वसन्त ऋतु- चैत्र एवं वैशाख में, ग्रीष्म ऋतु- ज्येष्ठ एवं आषाढ़ में, वर्षा ऋतु-सावन एवं भादों, शरद ऋतु-आश्विन एवं कार्तिक में, हेमन्त ऋतु- अगहन एवं पौष में, शिशिर ऋतु-माघ एवं फाल्गुन हैं। वहीं आयुर्वेद के सुश्रुत एवं चरक संहिता में इस वर्गीकरण में कुछ परिवर्तन किये गये हैं वहां महिनों में भी परिवर्तन है वहां पर शिशिर ऋतु नहीं है उसके स्थान पर प्रावृट ऋतु को सम्मिलित किया गया है।
अब हम ज्योतिष की बात करें तो ज्योतिष में ऋतु परिवर्तन सूर्य के राशियों में प्रवेश से लगाया जाता है। जैसे सूर्य यदि गोचर में मीन और मेष राशि में रहेंगे तो वसन्त ऋतु होगी, उसके बाद सूर्य जब वृष और मिथुन राशि में रहेंगे तो ग्रीष्म ऋतु रहेगी, इसी तरह वर्षा ऋतु में सूर्य को गोचर कर्क और सिंह राशि में होगा, शरद ऋतु में कन्या एवं तुला राशि में होगा, हेमन्त में वृश्चिक एवं धनु राशि में तथा शिशिर ऋतु में सूर्य मकर एवं कुम्भ राशि में रहेंगे।
ये भी ध्यान रखें कि सूर्य अपनी राशि का परिवर्तन अंग्रेजी माह की 14-15 तारीख में करते हैं इसी लिए 14 जनवरी में मकर संक्राति मनायी जाने की परंपरा है। इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करके शिशिर ऋतु के आगमन का संकेत देते हैं।
शीत ऋतु में आहार
इस ऋतु में जठराग्नि काफी प्रबल रहती है इसी कारण से हमारी पाचन शक्ति भी प्रबल होती है। क्योकि ठण्डी हवा का प्रभाव हमारी शरीर पर पड़ता है जिसके कारण शरीर की ऊर्जा बाहर नहीं निकल पाती, वो शरीर के अंदर ही इकट्ठा होकर हमारी जठराग्नि को प्रदीप्त करती रहती है, इसी कारण खाया गया भारी भोजन भी ठीक प्रकार से पच पाने में समर्थ होता है। इसी कारण इस ऋतु में जो शारीरिक रूप से सबल हों उन्हें शक्तिवर्द्धक आहार लेना चाहिए। ताकि उनका शरीर पुष्ट व सबल बन सके। इस मौसम में शुद्ध घी से बने आहार जैसे लड्डू, सूखे मेवे, दूध घी, मूंग की दाल का हलवा, उड़द की खीर, रबड़ी आदि का सेवन करना चाहिए। जो शारीरिक रूप से या आर्थिक रूप से इस महंगे पदार्थों का सेवन नहीं कर सकते वे रात को पानी में भिगोये हुए देशी काले चने सुबह नाश्ते में खायें। केले, मूंगफली, शहद को ठण्डे दूध के साथ रात को सोते समय लें। दिन में आंवला, गाजर, शकरकंदी, अमरूद आदि का सेवन करें। जिनको कब्ज की समस्या है उन्हे रात को सोते समय 2-3 चम्मच छोटी हरड़ का चूर्ण ठण्डे पानी से 3-4 दिन लेना चाहिए, पेट का समस्या दूर हो जायेगी।
शीत ऋतु में विहार
विहार यानि हमारा रहन-सहन कैसा हो? सर्दी में अपने शरीर को ठण्डा से बचा कर रखना चाहिए। ज्यादा सर्दी हो तो गर्म पानी से ही स्नान करें। इस ऋतु में सर्दी से बचने के लिए हमें योग-व्यायाम अवश्य करना चाहिए, शरीर पर तेल मालिश करें, धूप में जरूर बैठें, अपने शरीर पर यथा योग्य गर्म कपड़ों से ढक कर रखें जिससे सर्दी न लगने पाये। यदि गर्म पानी से स्नान करना है तो पानी ज्यादा गर्म नहीं होना चाहिए, साथ गर्म पानी को सीधा सिर व पेडू पर नहीं डालना चाहिए।
पथ्य (क्या खाना चाहिए)
खाने के बारे में ऊपर चर्चा हो चुकी है उसी के अनुसार अपना आहार रखें। मौसमी फलों का सेवन जरूर करें, साथ ही मौसमी साग सब्जी भी अवश्य खायें। प्रयास करें कि लहसून की तीन चार कलियां ताजे पानी के साथ खाली पेट लें यदि संभव हो तो चबा चबा कर खा लें।
अपथ्य (क्या नहीं खाना चाहिए)
इस ऋतु में अधिक ठण्ड से बचना चाहिए, और पेट को खाली नहीं रखना चाहिए। कुछ ना कुछ पेट में जरूर हो, खाली पेट होने से सर्दी लगने की ज्यादा संभावना होती है, शीत ऋतु में दिन में सोना भी वर्जित होता है दिन में सोने से कफ की वृद्धि होती है। जिससे हमारे बीमार होने की संभावनाऐं बढ़ जाती हैं।
इस प्रकार हमने देखा कि हमें शीत ऋतु में किस प्रकार का आहार-विहार करना चाहिए और हमारे लिये क्या पथ्य और क्या अपथ्य है। शीत ऋतु हमारे लिए हमारे शरीर को पुष्ट, सबल और स्वस्थ बनाने के लिए एक अवसर लेकर आती है ताकि हम आने वाली ग्रीष्म और वर्षा ऋतु का प्रभाव झेल सकें। दूसरे शब्दों में कहे तो छः ऋतुओं में यहीं ऋतु है जिसमें हम आने वाली अन्य ऋतुओं के प्रभाव को झेलने के लिए अपने शरीर को समर्थवान बना सकते हैं।
प्रस्तुति- संजय कुमार गर्ग, sanjay.garg2008@gmail.com Whats-app 8791820546
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