बरगद या वट वृक्ष का पेड़ वातावरण में सबसे अधिक आक्सीजन छोड़ने वाले पेड़ों में शामिल है। बरगद के साथ बांस, नीम और तुलसी के पेड़ में भी अधिक मात्रा में आक्सीजन छोड़ते हैं। क्योंकि इनकी पत्तियों में कार्बन डाइआक्साइड को सोखने की सबसे ज्यादा क्षमता होती है। यही कारण है कि पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने के लिए यह पेड़ बहुत जरूरी है इस लिए इसे पर्यावरण के सबसे अच्छे मित्रों में एक कहा जाता है।
प्राचीन काल में प्रकृति को संरक्षित करने वाले चिकित्सीय गुणों वाले पेड़-पौधों को धार्मिक आस्था से जोड़ दिया जाता था, जिससे मनुष्य उन्हें नुकसान न पहुंचाये। देश भर में वट सावित्री का व्रत रखने वाली महिलाएं इसकी पूजा करती हैं। हिन्दू संस्कृति में माना जाता है कि बरगद के पेड़ की जड़ें ब्रह्मा का प्रतिनिधित्व करती हैं, बरगद का तना विष्णु भगवान का प्रतिनिधित्व करता है, तथा स्वयं भगवान शिव बरगद के पेड़ के ऊपरी हिस्से पर निवास करते हैं। माना जाता है कि बरगद के पेड़ की छाया में पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस वृक्ष की जड़ों को घर में रखने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है। साथियों! रविवार के दिन बरगद में पानी नहीं देना चाहिए।
बरगद के पेड़ की एक विशेषता यह भी है कि इसमें पूरी जैव विविधता पनप सकती है। इसमें चींटी से लेकर अलग-अलग प्रकार के पक्षी अपना बसेरा बना लेते हैं। मनुष्यों के लिए ये पेड़ किसी वरदान से कम नहीं हैं।
बरगद के पेड़ में अनेक रोगों को दूर करने के गुण भी होते हैं-
-बरगद के पत्तों की कलियां पुराने दस्त और पेचिश के रोग में फायदेमंद होती हैं।
-बरगद के पेड़ के रस का सेवन करने से गठिया के रोग में लाभ होता है।
-बरगद के पेड़ की छाल इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए फायदेमंद होती है।
-बरगद के फल का सेवन करने से वजन बढ़ाने और घटाने दोनों में सहायता मिलती है।
-बरगद के पेड़ के पत्तों से निकलने वाले दूध को चोट, मोच व सूजन पर दिन में दो तीन बार लगाकर मालिश करने से लाभ मिलता है। या कोई जख्म हो या खूली चोट हो तो बरगद के पेड़ के पत्तों से निकलने वाले दूध में हल्दी मिलाकर चोट वाले स्थान पर बांधने से घाव जल्द भर जाता है।
साथियों आपको भी बरगद के वृक्ष से मिलने वाले किसी लाभ के बारे में पता हो तो कमैंटस करके बताना न भूलें, जिससे श्रोता लाभ उठा सकें। अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए नमस्कार जयहिन्द।
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग
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