स्वप्न-संसार |
लेखक -संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
स्वप्न-संसार |
लेखक -संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
'स्वजनों' के प्रति हमारी संवेदनशीलता की उपरोक्त बातें मेरे तथ्य की पुष्टि करती हैैं, परन्तु 'भविष्यानुभूति' हमारे 'आत्मिक स्तर'
के अनुसार होती है। किसी स्वजन को कोई हानि (मृत्यु-दुर्घटना आदि) होती
है तो हमें अनहोनी घटना के पहले से ही बुरे-बुरे स्वप्न दिखाई देने लगते
हैं।
स्वप्न गहरी निद्रा में नहीं दिखाई देते। बल्कि ये जाग्रत और निद्रा के बीच की अवस्था में दिखाई देते हैं। गहरी निद्रा को 'सुषप्ति' भी कहते हैं, यह इतनी गहरी होती है कि इसमें 'मस्तिष्कीय तन्तु' पूरी तरह निश्चेष्ट हो जाते हैं। इस स्थिति में कोई स्वप्न नहीं आता। 'तंद्रावस्था' या 'बीच की अवस्था' में ही 'अंर्तमन' सक्रिय रहता है और हम स्वप्न देखते हैं।
हम सपनों को तीन भागों में बांट सकते हैं-1-शारीरिक दशाओं के स्वप्न। 2-मानसिक स्थिति के स्वप्न। 3-आध्यात्मिक स्वप्न।
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बुखार,
नजला, अपच, शीतोष्ण का आधिक्य तथा सोते समय का वातावरण आदि के समय देखे
गये स्वप्न, प्रथम श्रेणी के स्वप्न के अन्तर्गत आते हैं। बुखार आने से
पहलेे शरीर में दर्द प्रारम्भ हो जाता है, उल्टी से पहले जी मिचलाता है,
प्रसव से पहले पेट में पीड़ा होती है, फल आने से पहले फूल आने लगता है। इसी
प्रकार कोई 'घटना' अपने 'वास्तविक स्वरूप' में आने से पहले 'अंतरिक्ष'
में विकसित होने लगती है। इसी प्रकार स्वप्न में भी 'घटना विशेष' का मानसिक
खाका पहले ही तैयार होने लगता है। इन स्वप्नों के बार-बार दिखने पर 'योग्य
चिकित्सक' से परामर्श लेना चाहिए।
दूसरी श्रेणी के स्वप्न स्वयं की मानसिक स्थिति के अनुसार दिखते हैं, जो मन के विकार मात्र हैं। इनका स्वप्न द्वारा ज्ञान तो हो सकता है, परन्तु निदान, मनोचिकित्सक द्वारा, उसके स्वप्नों का अध्ययन करके ही किया जा सकता है। 'स्वप्न द्रष्टा' को जब यह ज्ञात हो जाता है कि उसका ''रोग'' स्वयं उसकी मानसिक विकृतियों का परिणाम हैं, तो यदि वह प्रयास करें तो उसे दूर करने में ज्यादा समय नहीं लगता।
तीसरे प्रकार के आध्यात्मिक स्वप्न वे होते हैं जो 'अतीन्द्रिय अनुभूतियों' से संबंधित होते हैं। जिनका वर्णन में प्रारम्भ में ही कर चुका हूं। ''गायत्री-मंत्र'' साधकों के स्वप्न इसी स्तर के हो सकते हैं।
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'स्वप्न मनौवैज्ञानिकों' का कहना है कि, सर्दी-जुकाम, फोड़े-फुन्सी जैसे शारीरिक विक्षेभों की सूचना 1-2 दिन पूर्व, तपैदिक, कैंसर जैसे भयानक रोगों के आगमन की सूचना 2-3 माह पूर्व स्वप्नों द्वारा मिल जाती है। परन्तु सामान्यत: रोगी इन ''प्रतिकात्मक'' सूचनाओं को समझ नहीं पाता, या फिर जागने पर भूल जाता है।
जिस
प्रकार 'स्थूल जीवन' अनेक ज्ञान-विज्ञान की जटिलताओं से भरा हुआ है। उसी
प्रकार हमारा 'सूक्ष्म-शरीर' अनेक रहस्यों को अपने में समेटे हुए है।
स्वप्नों का संसार भी ऐसा ही जटिल और उलझा हुआ विषय है, जैसा कि स्थूल
जीवन।
''जिंन्दगी'' की समस्याऐं सुलझाने के लिए संसार क्षेत्र में विचरण करना पडता है, वहीं ''अंतर्जगत'' की गुथियाँ हम ''स्वप्न के संसार'' में प्रवेश करके ही सुलझा सकते हैं और अपने जीवन को उन्नत व सफल बना सकते हैं।
अंत में 'मुनीर' साहब की एक 'रूबाई' के साथ 'ब्लॉग' समाप्त करता हूं-
कोई है शीशा व शराब में मस्त,
कोई है लज्जते-शबाब में मस्त
मुब्तला हैं सभी कहीं न कहीं
मैं भी हूं अपने एक 'ख्वाब' में मस्त।
लेखक -संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
कोई है शीशा व शराब में मस्त,
कोई है लज्जते-शबाब में मस्त
मुब्तला हैं सभी कहीं न कहीं
मैं भी हूं अपने एक 'ख्वाब' में मस्त।
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bahut sunder!
जवाब देंहटाएंआदरणीय हरीश जी! सादर नमन! कमेंट्स करने के लिए सादर आभार, सहयोग व् मार्गदर्शन बनायें रखें!
जवाब देंहटाएंस्वप्न गहरी निद्रा में नहीं दिखार्इ देते। बल्कि ये जाग्रत और निद्रा के बीच की अवस्था में दिखार्इ देते हैं। गहरी निद्रा को 'सुषप्ति' भी कहते हैं, यह इतनी गहरी होती है कि इसमें 'मस्तिष्कीय तन्तु' पूरी तरह निश्चेष्ट हो जाते हैं। इस स्थिति में कोर्इ स्वप्न नहीं आता। 'तंद्रावस्था' या 'बीच की अवस्था' में ही 'अंर्तमन' सक्रिय रहता है और हम स्वप्न देखते हैं। सटीक जानकारी
जवाब देंहटाएंआदरणीय योगी जी, सादर नमन! पोस्ट पर कॉमेंट्स करने के लिए सादर आभार व धन्यवाद!
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