मुसाफिर राह में हो शाम गहरी होती जाती
सुलगता है तेरी यादों का बन आहिस्ता-आहिस्ता
धुआं दिल से उठे, चेहरे तक आये नूर हो जाये
बड़ी मुश्किल से आता है ये फन आहिस्ता-आहिस्ता
सुलगता है तेरी यादों का बन आहिस्ता-आहिस्ता
धुआं दिल से उठे, चेहरे तक आये नूर हो जाये
बड़ी मुश्किल से आता है ये फन आहिस्ता-आहिस्ता
(2)
बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चैका, बासन, चिमटा, फूंकनी जैसी माँ
बांस की खुर्री खाट के ऊपर, हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी, थकी दोपहरी जैसी माँ
-निदा फाजली
याद आती है चैका, बासन, चिमटा, फूंकनी जैसी माँ
बांस की खुर्री खाट के ऊपर, हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी, थकी दोपहरी जैसी माँ
-निदा फाजली
(3)
तुम्हारी राह में मिटटी के घर नहीं आते
इसीलिए तुम्हे हम नजर नहीं आते
मोहब्बतो के दिनों की यही खराबी है
ये रूठ जाएँ तो लौट कर नहीं आते
-वसीम बरेलवी
तुम्हारी राह में मिटटी के घर नहीं आते
इसीलिए तुम्हे हम नजर नहीं आते
मोहब्बतो के दिनों की यही खराबी है
ये रूठ जाएँ तो लौट कर नहीं आते
-वसीम बरेलवी
(4)
कफन बढ़ा तो किसलिये नजर तू डबडबा गई
सिंगार क्यों सहम गया, बहार क्यों लजा गई
न जन्म कुछ, न मृत्यु कुछ बस इतनी सिर्फ बात है
किसी की आंखे खुली, किसी को नींद आ गई।
-नीरज जी
कफन बढ़ा तो किसलिये नजर तू डबडबा गई
सिंगार क्यों सहम गया, बहार क्यों लजा गई
न जन्म कुछ, न मृत्यु कुछ बस इतनी सिर्फ बात है
किसी की आंखे खुली, किसी को नींद आ गई।
-नीरज जी
(5)
अजब तेरे शहर का दस्तुर हो गया
जिसे गले लगाया वो दूर हो गया
कागज में दबके मर गये कीड़े किताब के
बन्दा बिना पढ़े ही मशहूर हो गया।
-बशीर बद्र
अजब तेरे शहर का दस्तुर हो गया
जिसे गले लगाया वो दूर हो गया
कागज में दबके मर गये कीड़े किताब के
बन्दा बिना पढ़े ही मशहूर हो गया।
-बशीर बद्र
(6)
राह में चलते हुए कारवां की बात करो,
जो साथ चले, उसी रहनुमां की बात करो
खिजां पुरानी पड़ी, कूच कर गया सैयाद,
नई बहारें नए बागवां की बात करो।
-बलबीर सिंह ‘रंग‘
राह में चलते हुए कारवां की बात करो,
जो साथ चले, उसी रहनुमां की बात करो
खिजां पुरानी पड़ी, कूच कर गया सैयाद,
नई बहारें नए बागवां की बात करो।
-बलबीर सिंह ‘रंग‘
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)
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