विदुर नीति |
महात्मा
विदुर कहते हैं समझदार व्यक्ति को ये कार्य करने से बचना चाहिये-न करने
योग्य काम करने से व करने योग्य काम में प्रमाद करने से बचना चाहिए तथा कार्य के सिद्ध
होने से पहले ही मन्त्र को प्रकट नहीं करना चाहिये और जिससे नशा हो ऐसा पेय
नहीं पीना चाहिये। ।। 43/2।।
दरिद्र
और धनियों के संबंध में विदुर ने बहुत सुन्दर बात कही है-दरिद्र (निर्धन) पुरूष सदा
स्वादिष्ट भोजन ही करते हैं, क्योंकि भूख उनके भोजन में खाद उत्पन्न कर
देती है और वह भूख धनियों के लिये सर्वदा दुर्लभ है। संसार में धनियों में
प्रायः भोजन करने की शक्ति नहीं होती, किन्तु दरिद्रों के पेट में काठ भी
पच जाता है। ।। 50,51/2।।
भय के विषय में विदुर महाराज बहुत गहरी बात लिखते हैं-अधम पुरूषों को जीविका न होने का भय होता है, मध्यम श्रेणी के मनुष्यों में मृत्यु का भय होता है, परन्तु उत्तम श्रेणी के पुरूषों को तो अपमान से ही महान भय होता है। ।। 52/2।।
मनुष्य
के शरीर, मन, बुद्धि के विषय में विदुर कितना सुन्दर उदाहरण देते
है-मनुष्य का शरीर रथ है, बुद्धि सारथी है और इन्द्रियां उसके घोड़े हैं।
इनको वश में करके सावधान रहने वाला चतुर एवं धीर पुरूष काबू में किये हुये
घोड़ों से रथी की भांति सुखपूर्वक यात्रा करता है। शिक्षा न पाये हुये तथा
काबू में न आने वाले घोड़े जैसे मूर्ख सारथी को मार्ग मे मार गिराते हैं,
वैसे ही ये इन्द्रियां वश में न रहने पर पुरूष को मार डालने में भी समर्थ
होती हैं। ।।59,60/2।।
महात्मा विदुर वाणी का प्रयोग सोच समझ कर करने की सलाह देते हैं- वाणों से बींधा हुआ तथा फरसों से काटा हुआ वन भी पनप जाता है, किन्तु कटु वचन कह कर वाणी से किया हुआ भयानक घाव नहीं भरता। ।। 78/2।।
विदुर
महाराज कहते हैं कि निम्न कार्यो को त्याग देना चाहिये-शराब पीना, कलह,
समूह के साथ वैर, पति-पत्नि में भेद उत्पन्न करना, कुटुम्ब वालों में
भेदबुद्धि उत्पन्न करना, राजा के साथ द्वेष, स्त्री-पुरूष में विवाद और
बुरे रास्ते-ये सब त्यागने योग्य हैं। ।। 43/3।।
विदुर महाराज इन सातों को गवाह न बनाने की सलाह देते हैं-हस्तरेखा देखने वाला, चोरी करके व्यापार करने वाला, जुआरी, वैद्य, शत्रु, मित्र, और नर्तक-इन सातों को कभी भी गवाह न बनाये। ।। 44/3।।
विदुर
महाराज ने ये कार्य ब्रह्म हत्या के समान बताये हैं- घर में आग लगाने
वाला, विष देने वाला, जारज संतान की कमाई खाने वाला, शराब बेचने वाला,
शस्त्र बनाने वाला, चुगली करने वाला, मित्रद्रोही, परस्त्री लम्पट, गर्भ की
हत्या करने वाला, गुरूस्त्रीगामी, ब्राह्मण होकर शराब पीने वाला, अधिक
तीखे स्वभाव वाला, कौए की तरह कांय-कांय करने वाला, नास्तिक, वेद की निन्दा
करने वाला, घूसखोर, पतित, क्रूर तथा शक्ति रहते हुए रक्षा करने की
प्रार्थना करने पर भी जो हिंसा करता है-ये सब के सब कार्य ब्रह्म हत्या के
समान हैं। ।। 46 से 48/3।।
महात्मा विदुर ने व्यक्ति की पहचान के लिये कितने उत्तम उपाय बताये हैं-जलती हुई आग से सोने की पहचान होती है, सदाचार से सत्पुरूष की, व्यवहार से साधु की, भय आने पर शूर की, आर्थिक कठिनाई में धीर की, और कठिन आपत्ति में शत्रु और मित्र की परीक्षा होती है। ।। 49/3।।
संकलन-संजय कुमार गर्ग
(सभी चित्र गूगल-इमेज से साभार!)
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महात्मा विदुर का ज्ञान सार्थक है आज के युग में भी ... गूढ़, गहरी बातें ...
जवाब देंहटाएंआभार आपका इन्हें साझा करने के लिए ...
आदरणीय दिगम्बर जी, ब्लॉग को पढ़ने व् कमेंट्स करने के लिए सादर धन्यवाद!
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संस्कार जी ! मैं प्रयास करूंगा, कमैंट्स के लिए धन्यवाद!
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