मैं अकेला ही चला था जानिबे-मंजिल....मुक्तक और रूबाइयां-11

MAIN AKELA HI CHALA THA JANIBE MANJIL....
मैं अकेला ही चला था..

 (1)
शरहे-गम1 तो मुख्तसर2 होती गयी उनके हूजुर3
लफ्ज   जो मुंह से न  निकला दास्तां बनता गया
मैं अकेला   ही  चला  था  जानिबे-मंजिल4  मगर
 लोग  साथ  आते  गये  और  कारवां बनता गया।

1गम की व्याख्या 2संक्षिप्त 3सामने 4मंजिल की ओर
-मजरूह सुल्तानपुरी  

(2) 
गढ़  के रह जाये  नदिल में वो  निशानी क्या है
जिसको  दोहराये न  दुनिया वो कहानी क्या है
हौसला  दिल  में, नीयत साफ औ मकसद ऊंचा
गर  जवानी  में  नही  ये  तो  जवानी  क्या  है।

-रामानन्द दोषी

(3)
किसी   की  याद  मेरे आसपास  रहती  है
बहुत  दिनों से  तबियत  उदास   रहती है
छुड़ाके   हाथ   चल   दिये   तो हैरत क्यों
खुशी  हमेशा  कहां किसके पास रहती है।

-बशीद बद्र

(4)
अगर मरते  हुए  लब  पर  ना तेरा नाम  आयेगा
तो मैं मरने से दर गुजरा मेरे किस काम आयेगा
शबे-हिज्रां* की सख्ती हो तो हो लेकिन ये कम है
कि लब पर रात भर रह-रह के तेरा नाम आयेगा
गली  में  यार  की  ऐ  शाद  सब  मुश्ताक  बैठे  हैं
खुदा  जाने  वहां से  हुक्म  किसके नाम आयेगा।
*गम की रात
-शाद साहब

  (5)
दिल के सुनसान जजीरों1 की खबर लायेगा
दर्द   पहलू   से  जुदा  होकर  कहां   जायेगा
कौन  होता  है  किसी  का  शबे-तनहाई2  में
गमे-फुर्कत3  ही  गमे-इश्क  को बहलायेगा।
1टापुओं की 2रात का अकेलापन 3विछोह का गम
-राही

(6)
अहले-महशर1   देख  लूं,  कातिल  को  तो  पहचान  लूं
भोली-भाली  शक्ल  थी  और  कुछ  भला  सा  नाम  था
मेहतसिब2   तसबीह3   के   दानों   पे   ये  गिनता  रहा
किन ने पी, किन ने न पी, किन-किन के आगे जाम था

1प्रलय क्षेत्र में जमा लोग  2रसाध्यक्ष 3माला
-साइल देहलवी

संकलन-संजय कुमार गर्ग 
 (चित्र गूगल-इमेज से साभार!)

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2 टिप्‍पणियां :

  1. बेहतरीन संकलन। आभार।

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    1. आदरणीय अंकुर जैन जी, पॉस्ट को पढ़ने व् कमेंट करने के लिए सादर धन्यवाद!

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