चाणक्य के अनुसार निम्न कार्याे में लज्जा न करें!

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निम्न कार्याे में लज्जा न करें
महात्मा चाणक्य मित्र की सुन्दर परिभाषा देते हुये कहते हैं-"परदेश में विद्या मित्र है, घर में स्त्री मित्र है, रोगी की औषध ही मित्र है और धर्म जगत का सार है और मरने पर धर्म ही मित्र है ।। 17/12।।

नर-नारी-जानवर में कौन चतुर है, चाणक्य बताते हैं कि-"स्त्रियों में मालिन चालाक होती है, पक्षियों में काग धूर्त है और पशुओं में गीदड़ और मनुष्यों में नाई धूर्त (चालाक) होेता है।" ।। 21/5।।

चाणक्य बताते हैं कि निम्न विशेष व्यक्तियों से उनके विशेष गुण सीखने चाहिये-"शिष्टाचार की शिक्षा राजा के पुत्रों से, प्रिय वचन पंडितों से, असत्य वचन जुआरियों से और छल कपट स्त्रियों से सीखना चाहिये।"।।18/12।।

निम्न व्यक्ति शीघ्र नष्ट हो जाते हैं ऐसा चाणक्य का मानना है-"बिना देखे खर्च करने वाले, बिना सहायक लड़ने वाला और सब जाति की स्त्रियों से भोग करने वाला व्यक्ति शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।" ।। 19/12।।

चाणक्य कहते हैं कि-"मेघ के जल के समान दूसरा जल पवित्र नहीं होता। आत्मबल के समान दूसरा बल नहीं। नेत्र के समान दूसरा प्रकाश करने वाला नहीं और अन्न के समान कोई अन्य पदार्थ प्रिय नहीं है।" ।।17/5।।

चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को कभी आहार की चिन्ता नहीं करनी चाहिये-"बुद्धिमान को आहार की चिन्ता नहीं करनी चाहिये, एक धर्म को ही सोचना चाहिये, क्योंकि आहार मनुष्य के जन्म के साथ ही उत्पन्न होता है। (जिस तरह बच्चे के जन्म होते ही ईश्वर मां के आंचल में दूध भेज देता है।)" ।। 20/12।।

मनुष्य लगातार कर्मरत रहने पर ही आगे बढ़ सकता है, ऐसा महात्मा चाणक्य का मानना था-"लगातार एक-एक बूंद से घड़ा भर जाता है और फिर एक-एक बूंद से घट भी सकता है, इसी प्रकार विद्या, धन और धर्म भी थोड़ा-थोड़ा करके ही बढ़ सकते हैं और वैसे ही घट भी जाते हैं।"।22/12।।

चाणक्य कहते हैं-"मनुष्य अकेला ही सुख-दुख भोगता है-यह यथार्थ है कि मनुष्य अकेला ही मोक्ष पाता है, वह अकेला ही जन्म लेता है और सुख-दुख भोगकर अकेला ही मर जाता है और अधिक पाप करने पर वह नरक को भी अकेला ही भोगता है।" ।।13/5।।

चाणक्य कहते हैं, निम्न कार्यो में कभी भी लज्जा नहीं करनी चाहिये-"अन्न धन के प्रयोग में कभी भी लज्जा नहीं करनी चाहिये, विद्या के संग्रह में भी लज्जा को छोड़ देना चाहिये तथा आहार और व्यवहार में जो लज्जा नहीं करता वही सुखी रहता है "।।21/12।।

चाणक्य समझाते हैं कि निम्न व्यक्तियों को किस प्रकार संतुष्ट करना चाहिये-"देवता, पिता, उत्तम पुरूष व सन्त, ये अच्छे व प्रिय स्वभाव से, बन्धु लोग खानपान से तथा पंडितों (विद्वानों) को प्रिय वचन से संतुष्ट करना चाहिये" ।। 03/13।।
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)
संकलन-संजय कुमार गर्ग 

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