चाणक्य नीति |
चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को अपने अच्छे बुरे कर्मो का फल भोगना ही पड़ता है-"जैसे हजारों गायों में भी वत्स अपनी माता के पास ही जाता है वैसे ही प्रारब्ध बन कर हमें खोज ही लेती है।" ।।14/12।।
चाणक्य कहते हैं कि-"मनुष्य को अपनी स्त्री, भोजन और धन इन तीनों में संतोष करना चाहिये, अध्ययन, जप, और दान इन तीनों में कभी संतोष नहीें करना चाहिये।"।।18/12।।
चाणक्य साधुजनों की प्रशंसा करते हुये लिखते हैं कि-"युग के अन्त में सुमेरू चल पड़ता है, कल्प के अन्त में सातों समुद्र भी मर्यादा को छोड़ देते हैं परन्तु साधुजन कभी भी विचलित नहीं होते।"।।20/13।।
महात्मा चाणक्य शरीर की महिमा का वर्णन करते हुये कहते हैं कि-"स्वस्थ शरीर की महिमा बहुत बड़ी है, क्योंकि वह बार-बार नहीं मिलता। मित्र, स्त्री, धन और जायदाद चाहे तो कई हजार मिल सकते हैं।"।। 3/14।।
चाणक्य कहते हैं कि निम्न कार्य थोड़ा करने पर भी बहुत फैल जाते हैं-"दुर्जन मनुष्य से एकांत में वार्ता, सुपात्र को दान देना, जल में तेल, और बुद्धिमान में शास्त्र ज्ञान, यदि थोड़ा भी हो तो भी वह अधिक फैल जाता है।"।।5/14।।
चाणक्य कहते हैं कि निम्न ज्ञान स्थायी नहीं होता-"धर्म कथा के अन्त में और श्मशान में मनुष्य को जो ज्ञान होता है यदि वह सदा बना रहे तो कौन संसार के बन्धनों में बंधा रह सकता है अर्थात सब मुक्त हो जाये, अर्थात ये ज्ञान स्थायी नहीं होता।"।।5/14।।
चाणक्य मनुष्य की मानसिक स्थिति का सुन्दर वर्णन करते हुये कहते हैं-जोे जिसके मन में समाया हुआ है वह दूर रहते भी दूर नहीं रहता और जो जिसके मन में नहीं बसता वह अति निकट रहता हुआ भी दूर ही रहता है।"।। 9/14।।
कौटिल्य अपनी कुटिल नीति पर श्लोक लिखते हुये कहते हैं कि जिसका अप्रिय करना हो उसके साथ कैसा व्यवहार करें-"जिसका अप्रिय करने की इच्छा हो उससे सदा प्रिय वचन बोलना चाहिये। शिकारी मृग का शिकार करने के लिये प्रिय गीत गाकर ही उसका शिकार करता है।"।।10/14।।
निम्न के अधिक निकट न अधिक दूर जाने की सलाह चाणक्य देते हैं-"आग, स्त्री, राजा और गुरू, इनसे दूर रहने पर ये कुछ फल नहीं देते और बहुत समीप आने पर ये नाश कर देेते हैं, अतः इनसे न निकट ही रहना चाहिये और न अधिक दूर ही जाना चाहिये।"।।11/14।।
निम्न से सदा सावधान रहने की सलाह महात्मा चाणक्य देते हैं-"आग, पानी, स्त्री, मूर्ख, सांप और राजा इन छहों का सदा ध्यान रखना चाहिये, अर्थात इनसे सदा सावधान रहना चाहिये, क्योंकि ये सेवा करते-करते ही उल्टे फिर जाते हैं, अर्थात प्रतिकूल होकर प्राण हर लेते हैं।"।।12/14।।
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)
-संकलन-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
कौटिल्य अपनी कुटिल नीति पर श्लोक लिखते हुये कहते हैं कि जिसका अप्रिय करना हो उसके साथ कैसा व्यवहार करें-"जिसका अप्रिय करने की इच्छा हो उससे सदा प्रिय वचन बोलना चाहिये। शिकारी मृग का शिकार करने के लिये प्रिय गीत गाकर ही उसका शिकार करता है।"बढ़िया संकलन लेकर आये हो संजय जी !!
जवाब देंहटाएंआदरणीय योगी जी, कमेंट्स करने के लिए सादर धन्यवाद!
हटाएं