वह उसकी बेटी ही थी! |
कुछ करती-धरती नहीं है, बस हमेशा खाने के पीछे पड़ी रहती है, पढ़ाई में जीरो-काम में जीरो-बस खाने में सबसे आगे...नीलेश अपनी बेटी को डांटे जा रहा था, बेटी रो रही थी। नीलेश की पत्नि भी अपने पति का ही साथ दे रही थी।
नीलेश की दो बेटियों में उसकी छोटी बेटी कुछ सीधी थी या कहो प्रीमैच्योर थी, 13 साल की होने के बाद भी उसका मन 7-8 साल के बच्चों जैसा था, जबकि शारीरिक विकास सामान्य था, पढ़ाई में भी ज्यादा अच्छी नहीं थी। उसके कारण पति-पत्नि दोनों चितिंत रहते थे। आध्यात्मिक प्रवृत्ति का निलेश वैसे अपनी दोनो बेटियों को बहुत प्यार करता था, परन्तु कभी-कभी गुस्से में आपा खो देता था। आफिस से आते ही पत्नि द्वारा छोेटी बेटी की शिकायत करने पर वह गुस्से से पागल हो गया था।
तुमने ये चाकलेट बिना पूछे क्यों खायी? जवाब दो? अब आगे से ऐसा करोगी। बेटी रो रही थी, परन्तु पीटने के बाद भी ढीट बनी कोई उत्तर नहीं दे रही थी। इससे नीलेश और ज्यादा आगबबूला हो गया और खड़ी हुई बेटी को पीछे की ओर धक्का दे दिया, पीछे पड़े हुये डबल बैड से उसका सर टकरा गया और बेटी चीख कर बेहोश हो गयी। नीलेश का सारा गुस्सा हवा हो गया, जल्दी से डाक्टर के पास बच्ची को ले जाया गया, परन्तु ब्रेन हैमरेज हो जाने के कारण बच्ची ना बच सकी। घर वालों ने जल्दी-जल्दी बच्ची का अन्तिम संस्कार कर दिया, परन्तु नीलेश डिप्रेशन में चला गया, उसे अपनी छोटी बेटी को खोने का गहरा सदमा लगा, अनेक डाक्टरों व साइक्लोजिस्ट से उसका महिनों इलाज चला, कहा भी जाता है, वक्त का मरहम बड़े से बड़े जख्म को भर देता है, व 10-11 महीनों में सामान्य हो गया।
वह अपनी बेटी के मरने के बाद 10-11 महीनों के बाद आज रात्रि में अपने अध्ययन कक्ष में गया था। कमरे का ताला खोलकर, कमरे की थोड़ी सफाई की और एक किताब लेकर पढ़ने लगा। पढ़ते-पढ़ते उसे रात्रि का एक बज गया था। अचानक हवा का एक हल्का झौंका उसके शरीर से टकराया, पहले तो उसने ध्यान नहीं दिया परन्तु जब बार-बार एक ठंडी हवा का झौंका उसके शरीर से टकराने लगा तो उसने अपने कमरे की खिडकियों व दरवाजे की ओर देखा वे सब बन्द थे, पंखा भी नहीं चल रहा था, उसका ध्यान भंग हो गया, तभी उसे लगा कि कोई उसे पुकार रहा है-
पापाऽऽऽऽऽऽ पापाऽऽऽऽऽ।
नीलेश बुरी तरह घबरा गया और उसने उठने का प्रयास किया।
पापाऽऽ प्लीज डरनाऽऽऽ मत, जाना.... मत मैं आपकी ही बेटी हूं! नीलेश को केवल आवाजें आ रही थी, उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, वह आवाज को पहचान गया, ये उसकी मृत बेटी की आवाज थी।
पापाऽऽऽ ये आपने मुझे किस दुनिया में भेज दिया, मैं ना तो जिन्दा हूं ना मर ही पायी हूं। किसी से बोलने की कोशिश करती हूं तो वो सुन नहीं पाता, छूती हूं तो हाथ से निकल जाता है, हवा में उड़़ती रहती हूं, खाने की सारी चीजें मेरे सामने होती हैं परन्तु खा नहीं पाती, केवल उनकी खूशबू आती रहती है।
पिता का डर समाप्त हो गया और उसकी आंखों में आंसू आँसू आ गये।
पापाऽऽऽऽ आप तो कहते थे ”every girl’s may not be queen to her husband, but she is always princess to her father!”
पापाऽऽऽ आपने अपनी राजकुमारी को ये कहा भेज दिया?
पिता की सुबकियां बंध गयी, वह गिरने ही वाला था कि उसने कुर्सी को पकड़ लिया और बोला, बेटी! मैं तेरा गुनाहगार हूं..., तू.....मुझे माफ कर दे।
पापाऽऽ एक रात मैंने मम्मी से बोलने का प्रयास किया तो वो मुझे देख कर डर गयी थी, और आपने यज्ञ-हवन करा कर मुझे मेरे घर से ही बाहर कर दिया? प्लीज पापाsss अब मैं इस तीसरी मंजिल पर आपके स्टडी रूम में रहती हूं, प्लीज!!! मुझे यहां से बाहर मत निकालना? मैं आपकी कोई चीज नहीं छेडूंगी, पक्काss प्रामिश! पापाऽऽ!!!!
नहीं...नहीं....मेरी बेटी! मैं अपने किये पर बहुत शर्मिदा हूं, उसने हवा में अपने हाथों को बांध कर अपनी बेटी को अपनी छाती से लगाने का असफल प्रयास करते हुये कहा! पिता की आंखों से आंसू नहीं रूक रहे थे।
तुम्हे मुझसे कोई अलग नहीं करेगा!! तुम इसी कमरे में रहो-पिता अपने आप को बहुत मुश्किल से संभाले कुर्सी पर बैठा रोये जा रहा था।
लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
पापाऽऽ प्लीज...... आप रोइये मत! मुझे बहुत दुःख हो रहा है, मैं आपके आंसू भी नहीं पौंछ सकती? एक ठन्डी हवा का झौंका पिता के चेहरे से टकराया।
पापा!!! मुझे आपके मोबाइल पर गाने सुनने और चाकलेट खाने का बहुत मन कर रहा है, प्लीजऽऽ डांटना मत!
परन्तु मेरी बच्ची!! तुम चाकलेट कैसे खाओगी? पिता ने रोते हुये कहा?
अचानक नीलेश के मस्तिष्क में कुछ आया, वह भागकर नीचे की मंजिल पर गया और छोटा सा हवन कुंड व चाकलेट और टांफिया ले आया। उसने टांफिया-चाकलेट इकट्ठा कर के उनमें आग लगा दी और बोला बेटी तुम खा तो नहीं सकती, परन्तु इनके जलने से आने वाली खुशबू तुम्हारी कुछ तृप्ति तो कर ही सकती है-पिता ने सुबकते हुये अपने आंसुओं को पौंछते हुये कहा।
बेटी!! मैं तुम्हारी आत्मा की शांति के लिये व तुम्हें अपने घर में वापस बुलाने के लिये चन्द्रायण व्रत व मां गायत्री का महापुश्चरण करूंगा, और ईश्वर से अपने पापकृत्य की क्षमा मांगते हुये प्रार्थना करूंगा, कि तुम्हे पुनः मेरे घर में मेरी बेटी बनाकर भेजें!
नीलेश ने मोबाइल पर गाना चलाकर उसे मेज पर रख दिया और अपने अध्ययन कक्ष से रोते व लड़खड़ाते हुये नीचे चला गया।
टांफिया-चाकलेट की खुश्बू से पूरा स्टडी रूम महक रहा था, मन्दी-मन्दी आवाज में गाने चल रहे थे और आराम कुर्सी धीरे-धीरे अपने आप हिल रही थी, नीलेश की राजकुमारी उस पर आराम जो कर रही थी!
-लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
(प्रस्तुत कथा काल्पनिक घटनाक्रम पर आधारित है, मृतका से बातचीत व उसके अनुभव प्लेन चिट के विशेषज्ञों, परामनौवेज्ञानिकों व गरूण पुराण के दृष्टातों पर आधारित हैं , कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय अमेरिका की साइकिकल रिसर्च फाउडेशन के शोधों व प्रसिद्ध पश्चिमी पामिस्ट कीरो के अनुभवों को भी इसमें शामिल किया गया है)
मौत के कुएं में अपनी जान पर खेलता सवार, कभी हाथ छोड़कर, कभी हाथ जोड़कर और आपके हाथ में से पैसे भी ले जाता है, दर्शक डर रहें हैं परन्तु ये नहीं डरता! अवश्य देखिये!
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बहुत अच्छी तरह लिखी गयी है।यह सच भी हो सकता है।मुझे उसे दुनिया मे यकीन है।मुझे interest है और books पढ़ी हैं ।
जवाब देंहटाएंमंजू जी, सादर नमन! कहानी सत्य और असत्य के बीच की एक कड़ी होती हैं, कमेंट्स के लिए धन्यवाद!
हटाएंSanjay ji, acche lekhan ke liye aap badhaai ke paatr hen.
जवाब देंहटाएंआदरणीय गुप्ता जी, कमेंट्स करने के लिए धन्यवाद!
हटाएंBahut acchi kahani hai
जवाब देंहटाएंटिप्पणी करने के लिए सादर आभार! सिद्धार्थ झा जी!
हटाएंBahut acchi kahani hai
जवाब देंहटाएंटिप्पणी करने के लिए सादर आभार! सिद्धार्थ ओझा जी!
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