हिन्दी की 4 बेस्ट गजलें!

हिन्दी की 4 बेस्ट गजलें!

                        {1}

चोटों पे चोट देते ही जाने....................


https://jyotesh.blogspot.com/2024/10/hindi-ki-4-best-ghazal .html
चोटों  पे  चोट  देते  ही  जाने   का  शुक्रिया
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया।

आतीं न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियां
दीवारों मेरी राह में आने का शुक्रिया।

जागा रहा तो मैंने कई काम कर लिये
ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया।

मिलते हैं गम तो और निखरती है शायरी
यह बात हैे तो सारे जमाने का शुक्रिया।

सूखा पुराना जख्म तो नए को जगह मिली
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया।

अब मुझको आ गये हैं मनाने के सब हुनर
यूं मुझसे ‘‘कुंअर’’ रूठ के जाने का शुक्रिया।।
                                    -कुंअर बैचेन

                         {2}
                                                                    

बेसन की सोंधी रोटी पे खट्टी.....................


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बेसन की सोंधी रोटी पे खट्टी चटनी जैसी मां
याद आती है चैका बासन चिमटा फुकनी जैसी मां

बांस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे
आधी सोयी आधी जागी थकी दोपहरी जैसी मां

चिड़ियों के चहकार में गूंजे राधा-मोहन अली अली
मुर्गे की आवाज से खुलती घर की कुंडी जैसी मां

बीबी बेटी बहन पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में
दिन भर एक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां

बांट के अपना चेहरा, माथा, आखें जाने कहां गयी
फटे पुराने एक अलबम में चंचल लड़की जैसी मां
                                     -निदा फाजली
                            
                         
                         {3}

दूर से दूर तलक एक भी दरख्त............


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दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था,
तुम्हारे घर का सफर इस कदर सख्त न था।

इतने मसरूफ थे हम जाने की तैयारी में,
खड़े थे तुम और तुम्हे देखने का वक्त न था।

मैं जिस की खोज में खुद खो गया था मेले में,
कहीं वो मेरा ही एहसास तो कमबख्त न था।

उन्हीं फकीरों ने इतिहास बनाया है यहां पे,
जिन पे इतिहास को लिखने का वक्त ही न था।

जो जुल्म सह के भी चुप रह गया ना खौल उठा,
वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था।

शराब कर के पिया उस ने जहर जीवन भर,
हमारे शहर में ‘‘नीरज’’ सा कोई मस्त न था।
                          -गोपाल दास नीरज

                        {4}

मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूं............


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मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूं,
वो गजल आपको सुनाता हूं।

एक जंगल में तेरी आंखों में
मैं जहां राह भूल जाता हूं।

तू किसी रेल सी गुजरती है,
मैं किसी पुल सा थरथराता हूं।

मैं तुझे भूलने की कोशिश में,
आज कितने करीब पाता हूं।

कौन ये रिश्ता निभायेगा,
मैं फरिश्ता हूं सच बताता हूं।
            -दुष्यंत कुमार 

  

संकलन-संजय कुमार गर्ग 

मुक्तक/शेरों-शायरी के और संग्रह 

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