मैंने इससे पहले भी चार पोस्ट विदुर नीति पर प्रकाशित की हैं जिनका लिंक नीचे दिया गया है। इस आलेख में मैंने नीतिज्ञ, महात्मा विदुर के अन्य श्लोकों को सम्मिलित किया है जो पहले प्रकाशित पोस्ट में नहीं है। चलिए पढ़ते हैं महात्मा विदुर का महान नीति संबंधी ज्ञान-
किन मनुष्यों के सारे काम सिद्ध होते हैं!
विदुर कहते हैं कि "मनुष्य अकेला पाप करता है और उस पाप की कमायी ये बहुत से लोग सुख भोगते हैं, सुख भोगने वाले तो पाप से छूट जाते हैं परन्तु उसका कर्ता यानि करने वाला उस पाप का भागी होता है।" (1, 47)
विदुर बताते हैं कि कौन सी व्यक्तियों की रात्रि में क्या स्थिती होती है ‘‘सौतवाली स्त्री, जूए में हारे हुए जुआरी और भार ढोने से व्यथित शरीर वाले मनुष्य की रात में जो स्थिति होती है, वहीं स्थिति उल्टा निर्णय करने वाले व्यक्ति (न्यायाधीश) की भी होती है।"(3, 31)
विदुर कहते हैं कि "जैसे-जैसे व्यक्ति कल्याण के कार्यों में मन लगाने लगता है, वैसे-वैसे उसके सारे अभिष्ट सिद्ध होने लगते हैं, इसमें जरा भी संदेह नहीं है।" (3, 42)
विदुर बताते हैं कौन सा मनुष्य कष्ट को प्राप्त होता है-"गुणों में दोष देखने वाला, मर्म पर आघात करने वाला, निर्दयी, शत्रुता करने वाला और शठ मनुष्य पाप का आचरण करता हुआ शीघ्र ही महान कष्ट को प्राप्त करता है।" (3, 64)
विदुर बताते हैं कि ‘अपने मन और इन्द्रियों को वश में करने वाले शिष्यों के शासक गुरू हैं, दुष्टों के शासक राजा हैं और छिपे-छिपे पाप करने वालों के शासक सूर्य पुत्र यमराज हैं।’’(3, 71)
ऋषिवर आगे कहते हैं कि "ऋषि, नदी, महात्माओं के कुल तथा स्त्रियों के दुष्चरित्र का मूल नहीं जाना जा सकता।" (3, 72)
विदुर बताते हैं कि "दूसरों से गाली सुनकर भी स्वयं गाली न दें, क्षमा करने वाले को रोका हुआ क्रोध ही गाली देने वाले को जला डालता है और उसके पुण्य को भी हर लेता है।’’(4,5)
विदुर कहते हैं कि "जैसे वस्त्र जिस रंग में रंगा जाये वैसा ही हो जाता है, उसी प्रकार यदि कोई सज्जन, असज्जन, तपस्वी अथवा चोर की सेवा करता है तो वह उसी के वश में हो जाता है, उस पर उन्हीं का रंग चढ़ जाता है।" (4, 10)
वाणी के संबंध में विदुर कहते हैं कि "बोलने से न बोलना अच्छा बताया गया है, किन्तु सत्य बोलना वाणी की दूसरी विशेषता है, यानि मौन की अपेक्षा भी दूना लाभप्रद है। सत्य भी यदि प्रिय बोला जाये तो यह तीसरी विशेषता है और वह भी यदि धर्मसम्मत कहा जाय जो यह वचन की चैथी विशेषता है।"(4, 12)
विदुर बताते हैं कि कौन हर्ष-शोक से परे हो जाता है "जो न तो स्वयं किसी से जीता जाता, न दूसरों को जीतने की इच्छा करता है, न किसी के साथ बैर करता और न दूसरों को चोट पहुंचाना चाहता है, जो निन्दा प्रशंसा में समान भाव रखता है, वह हर्ष-शोक से परे हो जाता है।"(4, 15)
विदुर सेवा करने के विषय में बताते हैं "जो अपनी उन्नति चाहता है, वह उत्तम पुरूषों की ही सेवा करें, समय आ पड़ने पर मध्यम पुरूषों की भी सेवा कर ले, परन्तु अधम पुरूषों की सेवा कदापि न करें।" (4, 20)
विदुर आगे कहते हैं कि "मनुष्य बार-बार मरता है और जन्म लेता है, बार-बार हानि उठाता है और बढ़ता है, बार-बार स्वयं दूसरों से याचना करता है और दूसरे उससे याचना करते हैं तथा बार-बार वह दूसरों के लिए शोक करता है और दूसरे उसके लिए शोक करते हैं। सुख-दुख, उत्पत्ति-विनाश, लाभ-हानि, और जीवन-मरण-ये बारी-बारी से सबको प्राप्त होते रहते हैं, इसलिए धीर पुरूष को इनके लिये हर्ष और शोक नहीं करना चाहिए।’’(4, 46-47)
विदुर बताते हैं कि "सम्यक अध्ययन, न्यायोचित युद्ध, पुण्य कर्म और अच्छी तरह से की गयी तपस्या के अंत में सुख की वृद्धि होती है।" (4, 54)
विदुर बताते हैं "नित्य सींचकर बढ़ायी हुई पतली लताऐं बहुत होने के कारण बहुत वर्षों तक नाना प्रकार के झोंके सहती हैं, यह बात सत्पुरूषों के विषय में भी समझनी चाहिए। वे दुर्बल होने पर भी सामूहिक शक्ति से बलवान हो जाते हैं। भारतश्रेष्ठ! धृतराष्ट्र! जलती हुई लकड़ियां अलग-अलग होने पर धुआं फेंकती हैं और एक साथ होने पर प्रज्ज्वलित हो उठती है। इसी प्रकार जातिबन्धु भी फूट होने पर दुःख उठाते हैं और एकता होने पर सुखी रहते हैं।" (4, 59-60)
एकता के संबंध में विदुर आगे कहते हैं कि "यदि वृक्ष अकेला है तो वह बलवान, दृढ़भूत तथा बहुत बड़ा होने पर भी एक क्षण में आंधाी के द्वारा बलपूर्वक शाखाओं सहित धराशायी किया जा सकता है। किन्तु जो बहुत से वृक्ष एक साथ रहकर समूह के रूप में खड़े हैं, वे एक दूसरे के सहारे बड़ी से बड़ी आंधी को भी सह सकते हैं।" (4, 62-63)
विदुर बताते हैं कि कौन अवध्य (न मारने योग्य) होते हैं "ब्राह्मण, गौ, कुटुम्बी, बालक, स्त्री, अन्नदाता और शरणागत ये सभी अवध्य होते हैं।"
संकलन-संजय कुमार गर्ग
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