भूत?होते हैं |
बात काफी पुरानी है, जून
का महीना चल रहा था, विधालय बन्द हो गये थे। मैं अपने छोटे से विधालय में
कुछ कन्स्ट्रक्शन करा रहा था। दोपहर 1 बजे के करीब सभी लंच के लिए चले जाते
थे। मैं भी दोपहर को थोड़ी देर के लिए आराम कर लेता था। इस दिन मैं सो के
उठा, आफिस से बाहर आया, सोचा पेन्टरों को देख लूं क्या कर रहे हैं। मैंने देखा स्कूल की ''आया'' बढई
के सामान में कुछ ढूंढ़ रही हैं। ''मैंने उससे पूछा- अम्मा! तुम यहां क्या
रही हो?, मेरी चाय बना दो!'' मैं यह कहकर गैलरी कर तरफ चला गया, जहां
पेन्टर काम कर रहे थे। वहां पहुंचा तो देख कर एकदम चौंक गया, देखा ''आया'' तो यहां बैठी है। मैंने कहां अम्मा! तुम यहां बैठी हो तो फिर वहां
कौ????????????????????????? है?
-लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
मैंने अपनी आवाज को दबा लिया, और जल्दी से भागकर वापस आया देखा, वहां पर कोई नहीं था।
मैं आफिस में जाकर चुपचाप बैठ गया, मेरे दिमाग में स्कूल के चौकीदार और बच्चों की बातें गूंज उठी। चौकीदार ने मुझसे कई बार कहां था, कि रात को कोई मेरा दरवाजा बजाता है, कभी घुंघरू की आवाजें आती हैं, जब बाहर आता हूँ, तो कोई भी दिखाई नहीं देता। मैंने उसे डांट दिया था कि तुम शायद ड्रिंक करके डयूटी करते हो, तुम्हे इसलिए ऐसा लगता है! मैं तो कभी-कभी यहां देर रात तक काम करता हूँ, मुझे आवाजें क्यों नहीं आती! बच्चों व अध्यापिकाओं ने भी मुझसे कहा था, कि गैलरी में जहां बच्चों के टायलेट बने हैं। वहां पर कई बच्चों ने शिकायत की है कि वहां कभी-कभी दोपहर में एक ''बुढि़या'' दिखाई देती है। मैंने टीचर्स व बच्चों को भी बहुत डांटा था। कि तुम अपने 'वहम' की वजय से स्कूल को बदनाम कर रहे हों। परन्तु उस दिन, मेरे सामने वह ''बुढि़या'' प्रत्यक्ष हो गई थी मानों मुझे 'चैंलेज' कर गयी हो।
-लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
मैंने अपनी आवाज को दबा लिया, और जल्दी से भागकर वापस आया देखा, वहां पर कोई नहीं था।
मैं आफिस में जाकर चुपचाप बैठ गया, मेरे दिमाग में स्कूल के चौकीदार और बच्चों की बातें गूंज उठी। चौकीदार ने मुझसे कई बार कहां था, कि रात को कोई मेरा दरवाजा बजाता है, कभी घुंघरू की आवाजें आती हैं, जब बाहर आता हूँ, तो कोई भी दिखाई नहीं देता। मैंने उसे डांट दिया था कि तुम शायद ड्रिंक करके डयूटी करते हो, तुम्हे इसलिए ऐसा लगता है! मैं तो कभी-कभी यहां देर रात तक काम करता हूँ, मुझे आवाजें क्यों नहीं आती! बच्चों व अध्यापिकाओं ने भी मुझसे कहा था, कि गैलरी में जहां बच्चों के टायलेट बने हैं। वहां पर कई बच्चों ने शिकायत की है कि वहां कभी-कभी दोपहर में एक ''बुढि़या'' दिखाई देती है। मैंने टीचर्स व बच्चों को भी बहुत डांटा था। कि तुम अपने 'वहम' की वजय से स्कूल को बदनाम कर रहे हों। परन्तु उस दिन, मेरे सामने वह ''बुढि़या'' प्रत्यक्ष हो गई थी मानों मुझे 'चैंलेज' कर गयी हो।
-लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
ऐसे ही वाकये मेरे साथ सिविल परीक्षा की तैयारी के समय घटे थे। रात को 12 ये 2 बजे के बीच में मुझे अपने एक 'मृतक मित्र' की आवाजें सुनायी देती थीं, जो करीब 10 साल पहले 'सुसाईड' कर गया था। वह अदृश्य रूप में मुझसे ऐसे बातें करता था, जैसे बिल्कुल मेरे सामने खड़ा हो, विशेष रूप से उस 'नाम' से पुकारता था, जिस नाम से 'वह' कभी मुझे जीवित अवस्था में पुकारता था। पाठकगण सोचेंगे-''शायद मैं उस समय, उस के बारे में सोच रहा होऊंगा'' पाठकगण सोचें रात में मैं 3-4 बजे तक पढ़ता था, क्या मैं उसके बारे में सोचने के लिए जागूंगा। जबकि 10 साल के लम्बे समय में व्यकित का चेहरा भी याद नहीं रहता, आवाज तो बहुत दूर की बात है। उसकी आवाज भी मैं तब पहचाना जब उसने मुझे अपना 'नाम' बताया। -लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
ऐसे ही वाकये मेरे साथ सिविल परीक्षा की तैयारी के समय घटे थे। रात को 12 ये 2 बजे के बीच में मुझे अपने एक 'मृतक मित्र' की आवाजें सुनायी देती थीं, जो करीब 10 साल पहले 'सुसाईड' कर गया था। वह अदृश्य रूप में मुझसे ऐसे बातें करता था, जैसे बिल्कुल मेरे सामने खड़ा हो, विशेष रूप से उस 'नाम' से पुकारता था, जिस नाम से 'वह' कभी मुझे जीवित अवस्था में पुकारता था। पाठकगण सोचेंगे-''शायद मैं उस समय, उस के बारे में सोच रहा होऊंगा'' पाठकगण सोचें रात में मैं 3-4 बजे तक पढ़ता था, क्या मैं उसके बारे में सोचने के लिए जागूंगा। जबकि 10 साल के लम्बे समय में व्यकित का चेहरा भी याद नहीं रहता, आवाज तो बहुत दूर की बात है। उसकी आवाज भी मैं तब पहचाना जब उसने मुझे अपना 'नाम' बताया। -लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
भूत?होते हैं |
पहले दिन
तो मैं घबराकर अपने तीसरी मंजिल के स्टडी रूम से नीचे, अपने बेडरूम में आकर
सो गया। परन्तु उसका रोज-रोज का नियम सा बन गया था, वह मुझे परेशान तो
नहीं करता, केवल उन परिसिथतियों को बताने की कोशिश करता जिसमें उसने 'सुसाईड' किया था। मेरी पढ़ाई डिस्टर्ब होने लगी, अन्त में मैंने इस वजय का गहराई से अध्ययन करने की ठानी। मैंने ज्योतिष, वास्तु, मन्त्र विज्ञान, परामनोविज्ञान आदि की पुस्तकों को पलटा, तब मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा-
भूत?होते हैं |
''हम जितना स्थूल में देख रहे हैं, उससे लाखों-करोड़ों गुना सूक्ष्म में
व्याप्त है। भूत-प्रेत होते हैं इसमें दो राय नहीं! क्योंकि ये सूक्ष्म
शरीर धारी होते हैं, अत: उन्हें केवल सूक्ष्म आंखों से देखा व सूक्ष्म
कानों से सुना जा सकता है। ध्यान-पूजा के समय, सोकर उठते समय, या एकाग्रता
से कोई कार्य या अध्ययन करते समय, हमारी ''सूक्ष्म ज्ञानेनिद्रयां'' हमारी
''क्षमतानुसार'' जाग्रत हो जाती हैं, और उसी जाग्रति की अवस्था में, हम
सूक्ष्म सत्ताओं को अनायास ही ''प्रत्यक्ष'' (देख लेना) कर जाते हैं। अचानक
उन्हें देखकर घबराहट में, या ध्यान भंग होने पर वे हमें गायब दिखाई देती
हैं। जबकि वे गायब नहीं होती, वरन हमारी सूक्ष्म ज्ञानेनिद्रयां अपना काम करना बन्द कर देती हैं।''
-लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
मेरा मानना है कि 'प्रेत योनि' में केवल उद्विग्न, विक्षुब्द, अशांत,
कामनाग्रस्त, अतृप्त लोगों को ही प्रेत बनना पडता है, उपरोक्त प्रकृति के
विपरित मनुष्यों को केवल जन्म-मरण की प्रक्रिया पूरी करनी होती है।
यदि इसे अंधविश्वास न बनाया जाये, तो भूत-प्रेतों का अस्तित्व यह साबित करता है कि, आत्मा का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है, एक अवस्था विशेष है, जो ''विशेष मानसिक सिथती''
के साथ मरने वाले और पुन: जन्म लेने के बीच की सिथती है। भूत-प्रेत के
यथार्थ होते हुए भी यह तथ्य स्मरणीय है कि भूत-प्रेत के किस्से-कहानियों
में लगभग तीन-चौथाई गप्प होती है।
भूत?होते हैं |
भूत-प्रेत केवल कमजोर इच्छा शक्ति वाले, या इष्ट (ईश्वर) के प्रति अविश्वासी व्यक्तियों को ही डरा सकते हैं, इससे अधिक कर गुजरने वाली आत्माएं देव-स्तर की होती हैं और वे मनुष्यों का अधिकतर भला ही करता चाहती हैं। ये बातें मैं नहीं कह रहा मेरा तजुर्बा कह रहा है, क्योंकि जब मैं टेन्शन या कुछ परेशानी में होता हूँ तो ''श्मशान घाट'' में ही जाकर बैठता हूँ, क्योंकि वहां जाकर मुझे आत्मिक शान्ति प्राप्त होती है। वहां जलती चिताएं शरीर की नश्वरता का, व सूक्ष्म से आने वाली आवाजें व चीखें आत्मा की अमरता का, व कर्मफल की अटलता के सिद्धांत को प्रस्तुत करती प्रतीत होती हैं।
अन्त में एक शेर के साथ ब्लॉग समाप्त करता हूँ-
ऐश की छाव हो या गम की धूप,
जिन्दगी को कही पनाह नहीं,
एक वीरान राह है दुनिया
जिसमें कोई कयामगाह* नहीं।
ऐश की छाव हो या गम की धूप,
जिन्दगी को कही पनाह नहीं,
एक वीरान राह है दुनिया
जिसमें कोई कयामगाह* नहीं।
(कयामगाह-विश्रामग्रह)
-लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)
भूत-प्रेत केवल कमजोर इच्छा शक्ति वाले, या इष्ट (ईश्वर) के प्रति अविश्वासी व्यक्तियों को ही डरा सकते हैं, इससे अधिक कर गुजरने वाली आत्माएं देव-स्तर की होती हैं और वे मनुष्यों का अधिकतर भला ही करता चाहती हैं। ये बातें मैं नहीं कह रहा मेरा तजुर्बा कह रहा है, क्योंकि जब मैं टेन्शन या कुछ परेशानी में होता हूँ तो ''श्मशान घाट'' में ही जाकर बैठता हूँ, क्योंकि वहां जाकर मुझे आत्मिक शान्ति प्राप्त होती है।
जवाब देंहटाएंद्वारा के ही मानोगे संजय जी ? हहहाआ बेहतर ज्ञानवर्धक
हा! हा!आदरणीय योगी जी, सादर नमन! आपका कॉमेंट्स पढ़कर हसी आ गयी, पोस्ट पर कॉमेंट्स करने के लिए सादर आभार!
जवाब देंहटाएंगांव में छोटे में भूत प्रेत से बहुत डर लगता था....लेकिन शहर में भूत प्रेत से ज्यादा खतरनाक लोगों की वजह से भूत प्रेत दीखते ही नहीं ,,,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जानकारी है मेरा मन भी कभी कभी गांव के भूतों पर लिखने का होता है ...आपका ब्लॉग पढ़कर कभी ब्लॉग पर लिखने का हो रहा है ...
आदरणिया कविता जी, सादर नमन! आप भी भूत-प्रेतों पर अवश्य लिखिए! मेरा ये ब्लॉग निजी अनुभवों पर आधारित है, पहली बार ब्लॉग पर आने का हार्दिक धन्यवाद!
हटाएंमेरा कहना है कि भूतों का मुंह छोटा और पेट बड़ा होता है के मेरे स्वामी जी महाराज कहते हैं जब भूतों को उनका भोजन यानी सुगंधी जब उनको नहीं मिलती है तब वह लोगों को परेशान करना शुरु करते हैं
जवाब देंहटाएंकमेंट्स के लिए धन्यवाद! सचिन जी!
हटाएंEk controversial vishay par ek rochak prastutikaran!!!!!!
जवाब देंहटाएंआलेख को संज्ञान में लेने के लिए सादर धन्यवाद! सुनील जी!
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