चाणक्य सूत्र
7 अध्यायों व 339 श्लोकों का ”नीति-विषयक” एक अदभूत ग्रन्थ है, जो आज भी
प्रासंगिक है। स्त्रियों के संबंध में उनके कुछ श्लाेंको से मैं असहमत
हूँ। मुनिवर ने जहां ”आहारो द्विगुण………” (1-17) कहकर स्त्रियों के अनेक
गुणों को पुरूषों से श्रेष्ठ बताया है, वही वे लिखते हैं ”विश्वासों नैव
कर्त्तव्य स्त्रीषु……….” (1-15) इसी प्रकार उनके स्त्री संबंधी अनेक श्लोक
आपस में टकराते हुए प्रतीत होते हैं। ये महान भारतीय साहित्यिक परम्परा
के प्रति कोई ”साहित्यिक-षडयंत्र” है या फिर ईसा पूर्व लिखे गये इस
ग्रन्थ में ”श्रुत-परम्परा” के कारण आने वाला ”शब्दों-श्लोको” का
अस्वभाविक बदलाव मात्र है। इसका निर्णय मैं विद्वान पाठकों पर छोड़ता हूँ,
इस आशा के साथ कि वे अपने बहुमूल्य विचारों से हम सब को अवगत करायेगें,
क्योंकि ऐसे अनेक परस्पर विरोधी विचार हमारे माननीय ग्रन्थों में भरे पड़े
हैं, जिन्हें पढ़कर पाठक ग्रन्थ व रचनाकार को शंका की द्रष्टि से देखते
हैं।
षष्ठोSध्याय में ‘चाणक्य’ बताते हैं किसी को कैसे वश में करें-”लोभी को धन देकर वश में करना चाहिए, मूर्ख को कहे अनुसार नाच कर खुश रखना चाहिए, घमण्डी मनुष्य को हाथ जोड़कर और पणिडत को सत्य वचन कहकर अपने वश में करना चाहिए।”(6-12)
कौवे से पांच बाते सींखने की सलाह ‘चाणक्य’ देते हैं-”छिपकर मैथुन करना, छिपकर चलना, किसी पर विश्वास न करना, सदा सावधान रहना, समय-समय पर संग्रह करना, ये पांच बातें हमें कव्वे से सीखनी चाहिए।” (6-19)
छह गुण कुत्ते से सीखने की सलाह ‘चाणक्य’ देते हैं-”बहुत खाने की शक्ति होना, गाढ़ी निद्रा मेें रहना, शीघ्र जाग उठाना, थोड़े से ही संतोष कर लेना, स्वामी की भक्ति करना और शूरवीरता ये छह गुण कुत्ते से सीखने चाहिए।”(6-20)
गधे से भी तीन गुण सीखने की सलाह ‘मुनीवर’ देते हैं-अत्यंत थक जाने पर बोझ को ढोते रहना, कभी गर्मी-सर्दी का ध्यान ही न करना, सदा संतोष के साथ विचरण करना ये तीन गुण गधे से सीखने चाहिए।(6-21)
‘चाणक्य’
ने निम्न कार्यो में लज्जा न करने की सलाह दी है-”धन संग्रह में और अन्न
के व्यवहार में, विधा के प्राप्त करने में, आहार में और व्यवहार में लज्जा
नहीं करनी चाहिए।”(7-2)
निम्न
के बीच में कभी न आने की चेतावनी ‘चाणक्य’ देते हैं-” पति और पत्नी,
ब्राह्मण और अग्नि, नौकर और स्वामी, हल और बैल, और दो ब्राहमण, इनके बीच
होकर कभी नहीं चलना चाहिए।”(7-4)
‘चाणक्य’ का मानना है, “निम्न को पैरों से स्पर्श नहीं करना चाहिए-अग्नि, गुरू, ब्राह्मण, गौ, कन्या, वृ़द्ध, और बालक इनको पैराें से नहीं छूना चाहिए।”(7-5)
अत्यंत सरल सीधा न बनने की सलाह ‘महात्मा चाणक्य’ देते हैं- “अत्यंत सीधे स्वभाव से नहीं रहना चाहिए, क्योंकि वन में जाकर देखो जितने सीधे वृक्ष हैं काटे जाते हैं और जितने टेढ़े हैं वे खड़े रहते हैं।” (7-11)
‘मुनिवर’ कहते हैं जो जितना साहसी होता है, उतना ही लाभ पाता है-”यदि सिंह की मांद के पास कोई जाता है तो हाथी के गाल की हडडी का मोती पाता है और यदि गीदड़ की मांद के पास जाता है तो बछड़े की पूंछ और गधे के चमड़े का टुकडा पाता है।” (7-17)
आत्मा
कहां रहती है ‘चाणक्य’ का विचार है-”जैसे फूल में गन्ध, तिल में तेल, काठ
में आग, दूध में घी, ईख में गुड़ रहता है वैसे ही देह में आत्मा है।
विचार करके देखों।”(7-20)
‘चाणक्य’
का मानना था, निम्न कार्यो के बाद स्नान अवश्य करना चाहिए-”चिता का धुआं
लग जाने पर, स्त्री प्रसंग करने पर, तेल लग जाने पर, बाल बनाने पर, तब तक
आदमी चाण्डाल ही बना रहता है, जब तक वह स्नान न कर चुके।”(8-6)
‘कौटिल्य’
कहते हैं, निम्न व्यक्ति नष्ट हो जाते हैं-”सन्तोषी राजा नष्ट होता है और
असंतोषी ब्राह्मण नष्ट होता है, शर्मीली वेश्या नष्ट होती है और बेशर्म
कुलवधु नष्ट हो जाती है।” (8-18)
‘चाणक्य’ कहते हैं, इन सब को सोते से जगा देना चाहिए-”सेवक, पथिक, भण्डारपति, द्वार रक्षक, भूख से पीडि़त, भय से व्याप्त, और विधार्थी को सोता देखकर जगा देना चाहिए।”(9-6)
"चाणक्य’ कहते हैं इनकोे सोते से नहीं जगाना चाहिए-”सांप, भेडि़या, शेर, राजा, बालक, मूर्ख और दूसरों का कुत्ता, इन सातों को नहीं जगाना चाहिए।”(9-7)
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अपने
परिवार के बारे में बताते हुए ‘चाणक्य’ कहते हैं-”सत्य मेरी माता है,
ज्ञान मेरा पिता, दया मेरा मित्र, धर्म मेरा भाई, शान्ती मेरी स्त्री और
क्षमा मेरा पुत्र, ये छह मेरे बन्धु है।”(12-11)
‘चाणक्य’ ने दूसरे की स्त्री व धन के विषय में बहुत सुन्दर लिखा है-”पराये धन को पत्थर समान, पर स्त्री को माता समान और सब जीवों को अपने समान जो मनुुष्य देखता है और समझता है वही मनुष्य चतुर व पण्डित है।”(12-14)
‘कौटिल्य’ बताते हैं कि कौन सी वस्तु जिन्दगी में एक बार मिलती है-”मित्र, स्त्री, धन, और जायदाद बार-बार मिल सकती है, लेकिन ये शरीर बार-बार नहीं मिलता।”(14-3)
निम्न
से सम दूरी रखने की सलाह ‘चाणक्य’ देते हैं-”आग, स्त्री, राजा और गुरू,
इनसे दूर रहने पर ये फल नहीं देते हैं और बहुत समीप आने पर ये नाश कर देते
हैं, अत: इनके न ज्यादा निकट रहना चाहिए और न ही अधिक दूर।”(14-11)
निम्न
बातों को हमेशा गुप्त रखने की सलाह ‘चाणक्य’ देते हैं-”अपने घर को दोष,
धर्म विधि से सिद्ध की गई औषधी, कुभोजन, मैथुन और बुरी बात, इन सबको
बुद्धिमान प्रकट नहीं करते।”(14-17)
प्रीति
के बंधन को ‘कौटिल्य’ सबसे मजबूत बताते हैं-”संसार में बंधन तो और भी हैं
परन्तु प्रीति का बंधन सबसे बुरा होता है, क्योंकि काठ को छेदने वाला काठ
का दुश्मन भौंरा कमल में बन्द होेकर भी उसको नहीं छेदता, क्योंकि कमल से
उसकी प्रीति है।” (15-17)
‘मुनिवर’ कहते हैं निम्न दूसराें का दुख नहीं जानते- “राजा, वेश्या, अग्नि, यम याचक, बालक, चोर और कण्टक ये आठों दूसरे के दुखों को नहीं जानते।”(17-19)
-संकलन-संजय कुमार गर्ग
(चित्र गूगल-इमेज से साभार!)
very very nice
जवाब देंहटाएंआदरणीय अंगद जी, ब्लॉग पर आने व कॉमेंट्स करने के लिए सादर धन्यवाद!
हटाएंसीधे वृक्ष हैं काटे जाते हैं और जितने टेढ़े हैं वे खड़े रहते हैं।” (7-11)
जवाब देंहटाएं‘मुनिवर’ कहते हैं जो जितना साहसी होता है, उतना ही लाभ पाता है-”यदि सिंह की मांद के पास कोर्इ जाता है तो हाथी के गाल की हडडी का मोती पाता है और यदि गीदड़ की मांद के पास जाता है तो बछड़े की पूंछ और गधे के चमड़े का टुकडा पाता है।”
सौ आना सच संजय जी
कमेंट्स के लिए धन्यवाद! आदरणीय योगी जी!
हटाएंअच्छा है....बहुत ही बढ़िया है.....नित्य काम आने योग्य.........
जवाब देंहटाएंआदरणीय जी! कमेंट्स के लिए सादर आभार!
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