वास्तु के अनुसार कैसा हो उत्तरमुखी भवन ! Vastu shastra for North facing House

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साथियों! इस लेख से पूर्व, मैं पूर्वमुखी मकान का वास्तु और ईशान दिशा (नार्थ-ईस्ट) वाले मकान का वास्तु कैसा हो पर भी आलेख लिख चुका हूं आप चाहे तो इस आलेख का पढ़ कर यहीं उपरोक्त लिंक क्लिक करके उन लेखों पर जा सकते हैं। साथियों, यदि घर से बाहर निकलते समय हमारे दायें हाथ की ओर सूर्य निकलते हुए दिखाई दें तो वह भवन उत्तरमुखी भवन कहलाता है। 

उत्तर दिशा कुबेर तथा बुध ग्रह से प्रभावित होती है, इस दिशा से कालपुरूष के हृदय और सीने का विचार किया जाता है। यदि जन्मकुण्डली की बात करें तो यह जन्मकुण्डली के चौथे भाव का प्रतिनिधित्व करती है, अर्थात जन्मकुण्डली में जो स्थिति   भाग की होगी वहीं समान स्थिति आपके घर की भी होगी ऐसा शास्त्र सम्मत मत है। इस घर में रहने वाले स्वामी का लग्न बुध  होता है या फिर लग्न में बुध  बैठे होते हैं। ऐसा भी ज्योतिषिय मत है।

अब देखते हैं उत्तरमुखी मकान के लिए कुछ वास्तु टिप्स-
1-भूखण्ड के उत्तरी भाग में दक्षिण भाग की अपेक्षा अधिक खाली स्थान होना चाहिए। इससे सभी प्रकार की ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

2-उत्तरी भाग से होकर यदि घर व वर्षा का जल ईशान यानि नार्थ-ईस्ट दिशा की ओर से बाहर जाये तो यह अत्यंत शुभ माना जाता है।

3-उत्तरी दिशा का मुख्य दरवाजा यदि ईशान मुखी (नार्थ-ईस्ट) हो तो उस घर में मेधावी बच्चे जन्म लेते हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।

4-उत्तरी दिशा में खाली स्थान व घर के अन्य भाग से नीचा हो तो उस घर में धन की वृद्धि होती है तथा यह घर की स्त्री व लड़कियों की प्रगति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

5-यदि घर की उत्तरी दिशा में पूजा घर, अतिथि कक्ष-गेस्ट हाउस, आफिस हो तो यह अत्यंत शुभ माना जाता है।


6-यदि उत्तर दिशा में कुआं या जल संग्रह स्थल (अंडरग्राउंड वाटर स्टोरेज) है तो घर के किसी सदस्य की छठीं इन्द्रिय जागृत होगी, उसे पूर्वाभास होगा साथ ही उसे प्राचीन साहित्य पढ़ने का शौक होगा।

7-उत्तर दिशा में कुंआ नहीं होना चाहिए नहीं तो घर की स्त्रियों विस्मित परिस्थियों का शिकार होगी।

8-उत्तर दिशा में रसोई का निर्माण भी नहीं होना चाहिए, ऐसी रसोई दिन भर चलती रहती है और उस घर में कलह का वातावरण बना रहता है।

9-यदि उत्तर दिशा में रसोई के साथ स्नानघर है तो उस घर के भाईयों में तो प्रेम होगा परन्तु उस घर की स्त्रियां आपस में झगड़ती रहती हैं।

10-इस दिशा में अनुपयोगी सामग्री, गन्दगी के ढ़ेर या टीले हों तो निश्चित ही धन की हानि होती है। अतः इस दिशा को साफ स्वच्छ रखें।

11-यदि घर की उत्तर दिशा ऊंची हो तो परिवार की संपदा नष्ट होने व स्त्रियों के  बिमार होने की पूरी संभावना रहती है।

12-यदि उत्तरी भाग के द्वार वायव्यमुखी (नोर्थ-वेस्ट फेसिंग) हो तो उस भवन में चोरी का भय रहता है।

13-उत्तरी दिशा में खाली स्थान जरूर छोड़े तथा चार दिवारी से सटाकर भवन न बनवायें। दक्षिणी दिशा में खाली स्थान न छोडे़ इस दिशा में भवन निर्माण चार दिवारी से सटाकर करें।

14-यदि आपके भवन की उत्तरी दिशा नीची है और दक्षिणी दिशा ऊंची है तो ये वास्तु की दृष्टि से अत्यंत शुभ है, परन्तु यदि आपके भवन के बराबर में उत्तरी दिशा में कोई ऊंचा मकान बना हो या कोई ऊंचा टीला-पहाड़ हो, तो पड़ोस में बना मकान भी आपको आर्थिक हानि पहुंचायेगा, ये ध्यान रखें ऐसा स्थिति होने पर किसी वास्तुविद् की सलाह लेनी चाहिए।

15-यदि उत्तरी दिशा विकृत है तो गृहस्वामी की कुंडली का चौथे भाव भी निश्चय ही खराब होगा। ऐसे जातक को मां का सुख नहीं मिलता तथा नौकर चाकर का सुख भी कमजोर होता है।

16-उत्तर व पूर्वी दिशा में बालकनी अवश्य रखें।

उत्तरमुखी मकान के दोष व उपाय-
1-उत्तर दिशा से संबंधित दोषों का दूर करने के लिए पूजा में ‘बुध यंत्र’ की स्थापना करायें। बुधवार का व्रत रखें।
 2-घर की दीवारों पर हरे रंग की सजावट करायें
3-घर में तोता पालें।
4-घर के प्रवेश स्थल पर संगीतमय घंटिया लगवायें।
5-घर की कालबेल घंटी में तोते की आवाज वाला संगीत लगवायें।

तो साथियों आपको ये आलेख कैसा लगा कमैंटस करके बताना न भूले, अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए नमस्कार जयहिन्द।
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, वास्तुविद्, एस्ट्रोलोजर   

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