प्रिय पाठकों! घाघ व भड्डरी की प्रसिद्ध कहावतें पुराने लोगों को कठंस्थ हैं, भड्डरी ने ज्योतिष, वर्षा आदि से संबंधित कहावतें कहीं हैं, वहीं घाघ ने नीति, खेती व स्वास्थ्य संबंधी कहावतें कहीं हैं। आज के आलेख में हम भड्डरी की शकुन संबंधी कहावतों पर चर्चा करेंगे। आशा करता हूं "घाघ भड्डरी की यात्रा शकुन पंर कहावतें" भी आपके ज्ञान में वृद्धि करेगी।
सन्मुख छींक लड़ाई भाखै, पीठ पाछिली सुख अभिलाषै
छींक दाहिनी धन को नाशै, बाई छीक सुख सदा प्रकाशै
ऊंची छींक सदा शुभजानो, नीची छींक अधिक भय मानो
आपनु छीक महादुखदाई, कहें भड्डरी ज्योतिष बनाई।
भड्डरी कहते हैं कि सामने की छींक लड़ाई, पीछे की छींक सुखदाई, दाहिनी छींक से धन का नाश, बाएं छींक से सुख, ऊंची से लाभ, नीची से हानि और अपनी छींक से महादुख मिलता है।
नारि सुहागिन जल भर लावे दधि मछली सन्मुख सों आवे
समुहैं गाय पियावे बाछा यही सगुन है सबसे आछा।
भड्डरी कहते हैं कि यदि यात्रा करते समय सुहागिन स्त्री सामने से घड़ा भर के लाती हुई दिखाई दे, (आज के संदर्भ में कोई भी सामान लाने से लगा सकते हैं) या सामने से दही या मछली आ रही हो, या गाय बछड़े को दूध पिला रही हो तो यात्रा को जाते समय यह अच्छा शगुन है इसका मतलब है आपका काम सिद्ध होगा।
चलत समय नेउरा मिलि जाये बाम भाग चारा चखुं खाय
काग दाहिने खेते सुहाय, सफल मनोरथ समझहु भाय।
भड्डरी कहते हैं कि यदि यात्रा के समय नेवला मिल जाये या बाई ओर नीलकंठ चारा खा रहा हो या दाहिने हाथ की ओर कौवा खेत में दिखाई दे तो कार्य अवश्य सिद्ध हो जायेगा।
रवि ताम्बूल, सोम का दर्पन, भौमवार गुड़ धनिया चर्बन
बुद्ध मिठाई बीफै राई, शुक्र कहै मोहि दही सुहाई।
शनि को बाय विरंगहि खावे इन्द्रहुजीति पुत्र घर आवै।
भड्डरी कहते हैं कि किसी शुभ कार्य के लिए जाते समय रविवार के दिन पान खाकर, सोमवार को दर्पण देखकर, मंगल के दिन गुड़ और धनिया खाकर, बुद्ध के दिन मिठाई खाकर, गुरूवार को राई खाकर, शुक्रवार को दही खाकर तथा शनिवार को घृत खाकर यात्रा करें तो सफलता अवश्य मिलती है।
तीन गाय तज सात प्रमान चलत मिलें मत करौ पयान।
भड्डरी कहते हैं कि यदि यात्रा के समय पांच भैंस या छह कुत्ते या एक बैल या एक बकरी या तीन गाय या सात हाथी दिखायी दें तो यात्रा पर नहीं जाना चाहिए।
सोम शनीचर पुरूबन चालू, मंगलबुद्धउत्तर दिशि कालू
जो बीफै को दक्खिन जाय निरपराधहू जूता खाय
बुद्ध कहै मैं बड़ो सयाना मोरे दिन जिनकरो पयाना
कौड़ी से नहिं भेंट कराऊं किन्तु कुशल से घर पहुंचाऊं
इक्का सुक्का पश्चिमवार, यात्रा को करिये न विचार।
भड्डरी कवि कहते हैं कि सोमवार तथा शनिवार को पूर्व दिशा में, मंगल व बुद्ध को उत्तर दिशा में, गुरूवार को दक्षिण दिशा में और रविवार शुक्रवार को पश्चिम दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए।
इकली हिरनी दुजै स्यार, भैंस चढ़न्ता पावे ग्वार।
तीन को सतक मिलि जाये तेली, तौ फिर मौत शीश पै खेली।
भड्डरी कवि कहते हैं कि यदि यात्रा के समय अकेली हिरनी मिले, दो स्यार मिले, ग्वाला भैंस पर चढ़ कर सामने से आ रहा हो और तेली भी मार्ग में मिल जाये तो यात्रा में निश्चित ही मृत्यु की संभावना होती है। अतः ऐसे में यात्रा को स्थगित कर देना चाहिए।
दिशा शूल ले जाओ बायें राहु योगिनी पूठ।
सम्मुख लेवे चन्द्रमा लावें लक्ष्मी लूट।
भड्डरी कवि कहते हैं कि दिशा शूल बांये राहु यामिनी पीठ पीछे और चंद्रमा को संमुख रखकर जो यात्रा करेगा उसे अधिक धन प्राप्त होगा।
पूरब मंगल कारी, अगिन कोन शुभ भारी
दखिनै छींक निडर हो जारी वायु कोन विरधै कै हारी।
पश्चिम छींक भोजन मिले, नैरित छींक विवादे करे।
उत्तर खूबै झगड़ा होय, ईशान धन प्रापति होय।
भड्डरी कवि छींक सगुन की पहचान पर कहते हैं कि छींक की पहचान यह है कि पूरब, अग्नि कोण और दक्षिण दिशा में होने वाली छींक शुभ है। वायव्य कोण, नैरूत कोण और उत्तर दिशा में होने वाली छींक अशुभ है तथा कलह कराने वाली होती है। पश्चिम दिशा की छींक से स्वादिष्ट भोजन प्राप्त होता है। ईशान दिशा की छींक से धन प्राप्त होता है।
ऊंची छींक महासुखकारी, नीची छींक महाभयकारी।
अपनी छींक महादुखकारी, कह भड्डर जोसी समझाई
अपनी छींक राम बन गउऊं, सीता हरन तुरन्तै भयऊॅं।
भड्डरी कवि कहते हैं कि ऊंची छींक अच्छी होती है, नीची छींक अत्यंत भय को देने वाली है। अपनी छींक यात्रा के समय आ जाये तो महादुख को देने वाली होती है। भडडरी कहते हैं कि अपनी छींक आने के कारण ही राम का वनगमन हुआ था, जहां सीता जी का हरण होने के कारण उन्होंने अत्यंत कष्ट सहने किये।
संकलन-संजय कुमार गर्ग
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